चीन सरकार अमेरिका की आलोचना करने का शायद ही कोई मौका छोड़ती है। चीन सरकार अमेरिका पर सैन्य दुस्साहसवाद और आधिपत्य का आरोप लगाती रही है। वह अफगानिस्तान में युद्ध की आलोचक भी रही है। परंतु, अब जब अमेरिका ने अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया है तो चीन का स्वर बदल गया है। उसने अमेरिका पर अफगानिस्तान में अपनी दो दशकों की लड़ाई को जल्दबाजी में खत्म करने का आरोप लगाया है।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस महीने बीजिंग में एक कार्यक्रम में कहा कि अमेरिका ने ही पहले अफगान की समस्या पैदा की थी। उसे अफगानिस्तान में सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। उसे दूसरों पर भार डालकर और अफगानिस्तान को बेसहारा छोड़कर नहीं जाना चाहिए।
हालांकि, चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से सैनिकों की वापसी का आदेश वापस लेने के लिए नहीं कहा है। परंतु, चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के बयानों से यह स्पष्ट हो गया है कि क्षेत्र में किसी भी तरह की असुरक्षा पैदा होने पर वह अमेरिका को जिम्मेदार ठहराएगा।
भारत और अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया
मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच कनेक्टिविटी स्थापित करने के मुद्दे पर ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में आयोजित सम्मेलन में भारत और अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जहां पाकिस्तान पर कनेक्टिविटी में रोड़े अटकाने का आरोप लगाया तो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने देश में बढ़ रही ¨हसा के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया।
कनेक्टिविटी की राह में रोड़े अटकाने से किसी को फायदा नहीं
सम्मलेन में जयशंकर ने अपने भाषण में इस समूचे क्षेत्र में कनेक्टिविटी की कोशिशों को भारत की तरफ से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया, लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए मानसिकता बदलनी होगी। एक तरफ कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की बात कहना, लेकिन वास्तविक तौर पर कनेक्टिविटी की राह में रोड़े अटकाने से किसी को फायदा नहीं होगा। कहने की जरूरत नहीं कि जयशंकर का इशारा पाकिस्तान की तरफ था जिसकी वजह से भारत और अफगानिस्तान के बीच कनेक्टिविटी स्थापित नहीं हो पाई। वहीं, चीन पर निशाना साधते हुए जयशंकर ने यह भी कहा कि कनेक्टिविटी परियोजनाओं को इस तरह आगे बढ़ाया जाना चाहिए जिससे कोई देश कर्ज के जाल में नहीं फंसे।
अफगानी राष्ट्रपति गनी ने कहा- पाक तालिबान को शांति वार्ता के लिए तैयार नहीं कर पाई
इसी सम्मेलन में अफगानी राष्ट्रपति गनी ने अपने देश में बढ़ रही हिंसा के मद्देनजर पाकिस्तान पर परोक्ष तौर पर आरोप लगाया कि वहां की सरकार तालिबान को शांति वार्ता के लिए तैयार नहीं कर पाई। गनी ने कहा कि पाकिस्तान सरकार और वहां की सेना ने कहा था कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा उनके हित में नहीं है, लेकिन हालात इसके विपरीत हैं। तालिबान का समर्थन करने वाले संगठन और नेटवर्क खुलेआम अफगानिस्तान की बर्बादी का जश्न मना रहे हैं। पिछले महीने पाकिस्तान से 10 हजार जिहादी तालिबान का समर्थन करने आए हैं। पाकिस्तान को अब क्षेत्रीय शांति की तरफ देखना चाहिए। गनी जब भाषण दे रहे थे तब वहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी मौजूद थे।
गनी ने कहा- हम देश का अस्तित्व बनाए रखने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ
प्रेट्र के मुताबिक, गनी ने कहा कि विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के बीच इस बात पर सहमति है कि तालिबान ने आतंकी संगठनों के साथ अपने संबंधों को तोड़ने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। उन्होंने कहा, ‘हम अफगानिस्तान के लोग और सरकार पूरी तरह वर्तमान पर केंद्रित हैं और एक देश के तौर पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं। हम तालिबान और उसके समर्थकों का तब तक सामना करने के लिए तैयार हैं जब तक उन्हें यह अहसास नहीं हो जाता कि राजनीतिक समाधान ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।’
गनी-इमरान मुलाकात के बाद आज से होने वाली शांति वार्ता रद
गनी की ओर से आरोप लगाए जाने के कुछ घंटे बाद उनकी प्रधानमंत्री इमरान खान से द्विपक्षीय मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बाद पाकिस्तान ने अफगान शांति वार्ता रद होने की बात कही। समाचार एजेंसी ‘एएनआइ’ के मुताबिक, काबुल में पाकिस्तान के राजदूत मंसूर अहमद खान ने ट्वीट कर कहा, ’17-19 जुलाई तक इस्लामाबाद में होने वाला अफगान शांति सम्मेलन स्थगित कर दिया गया है। नई तारीखें ईद के बाद तय की जाएंगी।’ खबरों के मुताबिक, इस वार्ता में शीर्ष अफगान नेताओं को आमंत्रित किया गया था। इसमें तालिबान को नहीं बुलाया गया था।