श्रीलंका के बाद अब पेरू में भी महंगाई आर्थिक संकट से हाहाकार मचा हुआ है। लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कई शहरों में आगजनी और तोड़फोड़ की खबरें सामने आईं। इसके बाद राष्ट्रपति ने राजधानी लीमा और कलाओ में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया गया है।

पेरू के राष्ट्रपति पेड्रो कैस्टिलो ने मंत्रिपरिषद के साथ बैठक के बाद कर्फ्यू की भी घोषणा की। वहीं, कुछ बुनियादी अधिकार भी फिलहाल रद्द कर दिए गए हैं। अब लोग एक जगह जुटकर सभा नहीं कर सकेंगे और ना ही रैली निकाल सकेंगे। देश के करीब एक करोड़ लोग इससे प्रभावित होंगे।

कई देशों की तरह पेरू पहले ही महंगाई से जूझ रहा था। लेकिन रूस-यूक्रेन जंग के बाद हालात और बिगड़ गए। मार्च में, इंफ्लेशन पिछले 26 साल की तुलना में सबसे ज्यादा था। दरअसल, यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण रूस को कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। रूस पोटाश, अमोनिया, यूरिया और अन्य मिट्टी के पोषक तत्वों का बड़ा एक्सपोर्टर है। रूस पर लगे प्रतिबंधों के बाद दुनिया भर में ऊर्जा, खाद्य और उर्वरक की कीमतों में इजाफा हुआ है। पेरू में भी इनके दाम आसमान छू रहे हैं। सरकार कीमतों को कम करने में असमर्थ नजर आ रही है।

लोगों के गुस्से को देखते हुए सरकार कीमतों को कम करने की कोशिश कर रही है। सरकार ने हाल ही में कहा था कि फ्यूल के दाम कम करने के लिए टैक्स को हटाया जाएगा। साथ ही न्यूनतम वेतन को लगभग 10 प्रतिशत बढ़ाकर 1,205 सोल्ज यानी 332 डॉलर (करीब 24,990 रुपए) प्रति माह किया जाएगा। लेकिन देश के मुख्य ट्रेड यूनियन, जनरल कन्फेडरेशन ऑफ पेरुवियन वर्कर्स ने वेतन वृद्धि को अपर्याप्त बताते हुए खारिज कर दिया। यहां डीजल की कीमत 0.47 डॉलर प्रति गैलन (1 गैलन = 1.5 लीटर) तक कम होने वाली थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

पिछले हफ्ते किसानों और ट्रक ड्राइवरों ने लीमा के मुख्य राजमार्गों को ब्लॉक कर दिया। जिससे खाद्य कीमतों में अचानक उछाल आया। इतना ही नहीं दक्षिणी शहर इका के पास प्रदर्शनकारियों ने टोल बूथों को जला दिया और पुलिस से भिड़ गए। कई अन्य शहरों में भी हिंसक प्रदर्शन होने की भी खबरें हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इन घटनाओं में 4 लोगों की मौत हुई है।

पेरू पहले से ही महंगाई की मार झेल रहा है। सरकार वादे पूरे नहीं कर पा रही है। नतीजा, लोग विरोध कर रहे हैं। वहीं, राष्ट्रपति की लोकप्रियता भी कम हो रही है। वामपंथी नेता पिछले साल मामूली बहुमत से जीत हासिल कर सत्ता में आए थे। लेकिन उन्हें ग्रामीण गरीबों का भारी समर्थन मिला था। ऐसे में विरोध प्रदर्शन अब राष्ट्रपति कैस्टिलो के लिए एक मुसीबत बन गए हैं। ओपिनियन पोल की मानें तो उनकी अप्रूवल रेटिंग 25 प्रतिशत तक कम हो गई है। आठ महीने के कार्यकाल में उन पर महाभियोग के दो बार प्रयास हुए हैं।