लक्ष्मीकांत द्विवेदी
समाचार संपादक
तीन तलाक़ के खिलाफ कानून जुलाई में बना यह कानून भी ऐतिहासिक कदम रहा। मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक़ की प्रथा एक अरसे से विवादों में घिरी रही है।
2014 के पहले की सरकारें एक खास तबके को ही मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधि स्वीकार करने और यथास्थिति बनाए रखने में ही अपनी कुशल मानती थीं। लेकिन 2017 में जब सायरा बानो मामले में उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक़ को अवैध करार देते हुए सरकार से इस कानून बनाने को कहा, तो केन्द्र की मोदी सरकार ने इसे संज्ञेय और दंडनीय अपराध करार देने वाला कानून अध्यादेश के जरिए लागू कर दिया। अपेक्षानुसार कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसका कड़ा विरोध शुरू कर दिया। इसी वजह से संबंधित कानून को राज्य सभा की मंजूरी नहीं मिल पाने से काम अटका हुआ था। लेकिन इस साल सरकार इसे दोनों सदनों में पारित कराने में सफल रही। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून अस्तित्व में भी आ गया। अपेक्षानुरूप इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर हुई, लेकिन अदालत ने तत्काल कोई रोक लगाने से इनकार करते हुए मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है।