अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान के लिए पंजशीर की घाटी अब भी अबूझ पहेली बनी हुई है। पंजशीर प्रांत में पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और अहमद मसूद के नेतृत्व में तालिबानी राज का मुकाबला कर रहे नेशनल रेसिस्टेंस फोर्स ने तालिबान के उस दावे का खंडन किया है, जिसमें आतंकी संगठन ने कहा था कि उसके लड़ाके कई दिशाओं से घाटी में प्रवेश कर गए।

टोलो न्यूज के मुताबिक, अहमद मसूद के समर्थकों ने पंजशीर की ओर तालिबान के आगे बढ़ने के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि किसी ने भी प्रांत में प्रवेश नहीं किया है। रेसिस्टेंस फोर्स डेलिगेशन के प्रमुख मोहम्मद अलमास जाहिद ने कहा कि पंजशीर में कोई लड़ाई नहीं हुई है और ना ही कोई घाटी में दाखिल हुआ है।

बता दें कि इससे पहले तालिबान ने दावा किया था कि उसके लड़ाके पंजशीर प्रांत में दाखिल हुए हैं। तालिबान सांस्कृतिक आयोग के एक सदस्य अन्नामुल्लाह समांगनी ने कहा कि पंजशीर प्रांत में कोई लड़ाई नहीं हुई, मगर अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के मुजाहिदीन बिना किसी प्रतिरोध का सामना किए विभिन्न दिशाओं से आगे बढ़े। इस्लामिक अमीरात की सेना विभिन्न दिशाओं से पंजशीर में प्रवेश कर चुकी है।

बता दें कि पंजशीर में अहमद मसूद (प्रसिद्ध अफगान कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे और तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध के नेताओं में से एक) और अमरुल्ला सालेह (पूर्व अफगान सरकार के पहले उपराष्ट्रपति) मोर्चा संभाले हुए हैं और तालिबान को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। पंजशीर एकमात्र वह प्रांत है जिसे तालिबान अभी तक कब्जा नहीं सका है, जिसने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बीच 15 अगस्त को तालिबान में प्रवेश के साथ देश को अपने नियंत्रण में ले लिया है।

लंबे समय से अहमद मसूद और सालेह के नेतृत्व में पंजशीर में लड़ाकों ने चट्टानी पहाड़ की चोटी से एक गहरी घाटी में एक भारी मशीनगन से फायरिंग करके तालिबान आतंकवादियों से क्षेत्र पर कब्जा करने से रोका है। ये लड़ाके नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट के हैं, जो तालिबान द्वारा काबुल की पर कब्जा करने के बाद से एक मजबूत ताकत के रूप में यहां बने हुए हैं।

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