पदम पति शर्मा
नई दिल्ली | आज यानी बुधवार को केंद्र और आंदोलन कर रहे किसान संगठनों के बीच ठहरी हुई सातवें दौर की बातचीत होगी। हालांकि, प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने कहा कि चर्चा केवल तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीकों एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने पर ही होगी। वामपंथियों के प्रभुत्व वाले किसान मोर्चा का पहले से ही तय यह एजेंडा इस बात का द्योतक है कि यह वार्ता भी नाकाम होगी।
दरअसल अब यह स्पष्ट हो चुका है कि इस किसान आंदोलन के पीछे वामपंथी दल और काग्रेस की मुख्य भूमिका है। ये दोनो दल इस बहाने नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि यह कहा जाए कि इसमे चीन की भी शह है तो गलत नहीं होगा।
दरअसल भारत की ओर से लगाए कई प्रतिबंधों से आर्थिक क्षति उठा चुका चीन इस समय भारत से बदला लेने की फिराक में है। उसके देश से जो कंपनियां अपना बोरिया बिस्तर बांध कर भारत आ रही हैं उससे ड्रैगन और भी तिलमिला उठा है। कर्नाटक में आई फोन की फैक्ट्री में तोडफोड और पंजाब में 1600 मोबाइल टावरों को नुकसान पहुंचाना, पतंजली के सामानों के बहिष्कार का आह्वान कभी भी किसान नहीं कर सकता।
सिंधु बार्डर पर कम्युनिस्टों के संगठन किसान मजदूर सभा के लहराते लाल झंडे देख कर समझ में आ जाएगा सारा माजरा समझ में। हाय हाय मोदी मर जा मोदी जैसे नारे यही चीख चीख कर कहते हैं कि यह आंदोलन कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं नरेन्द्र मोदी के खिलाफ है।
पता चला है कि वामपंथी पिछले पांच महीनों से इसकी तैयारी कर रहे थे। इसके कैडर पंजाब के गावों में घूम घूम कर किसानों को कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए सिखी की, गुरु गोविंद सिंह जी की दुहाई देते रहे हैं। यह भी ज्ञात हुआ है कि पंजाब के किसानों से आंदोलन के नाम पर प्रति एकड़ दौ सौ रुपये की वसूली भी की गई है। किसानों को वाहनों में भर भर कर दिल्ली बॉर्डर पर लाया गया है। उनके खाने पीने, रहने, सोने, मालिश आदि की व्यवस्था की गई है। पंजाब के जिन बिचौलियों की मंडी से हर वर्ष चार हजार करोड़ की आमदनी होती है, वे इसके बंद हो जाने की आशंका से कृषि कानून रद कराने के लिए जी जान से लगे है। पूरा पैसा इनका लगा है।
किसान मोर्चा की अगुवाई चीन के पिट्ठू और सीपीएम के पांच बार के सांसद हन्नान मुला कुलहिन्द कर रहे हैं। हन्नान पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वार्ता से कुछ हल नहीं निकलेगा। इसलिए यदि आज भी बातचीत नाकाम होती है तो सरकार को कड़ाई से पेश आना होगा। सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉडर्र और गाजीपुर बॉर्डर लगा इनका डेरा तम्बू चेतावनी के बाद उखाड़ फेकना ही विकल्प होगा। यह आन्दोलन देश के किसानों का नहीं पंजाब का ही है।