Dr Rohini Singh
Clinical psychologist, (Guidance and counselling)
Access practitioner and Energy healer.

दीपावली दीयों का त्योहार है, खुशियों की झिलमिलाती लड़िया, हर तरफ उमंग और उत्साह। मन पुलकित होकर खिल जाता है। मिठाई से जी भरा, तो कुछ तीखा-चटपटा हो जाए। परिवार में सबके एकजुट होने का लंबा सिलसिला, परम आत्मीयता यह एक आदर्श छवि है। इस पूरे दृश्य में एक बात सबसे महत्वपूर्ण है कि हम अपने आपसे कितने जुड़े है, क्या हमारा मन भी दीए की तरह जगमग कर रहा है ? त्योहार की चमक और खुशियां क्या मन में भी प्रतिबिंबित हो रही है ? निश्चित तौर पर नहीं ? 

कभी आपने सोचा कि ऐसा क्यों है कि त्योहार के बहाने जीवन को एक नई ऊर्जा और स्फूर्ति देने का उद्देश्य खोकर रह गया है ? क्यों रीति रिवाज़ बहुत मशीनी हो गये है ? आनन-फानन में रस्में निभाई जाती है, सब कुछ बोझिल लगता है। मनोवैज्ञानिक भाषा में यह एक लम्बी उदासी (Chronic Sadness) की स्थिति है जिसमें हम कितना भी चाहे भरपूर खुश नहीं हो सकते। चिंता, तनाव, डर और तमाम नकारात्मक विचार दिमाग में चलते रहते है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हम एक ऐसी निराशा और नकारात्मकता में जीने के लिए मानसिक रूप से प्रशिक्षित हो जाते है, जहां किसी भी तरह के उत्साह का ज्यादा असर नहीं होता।

यह स्थिति बहुत है घातक होती है, नैराश्य और चिंता के बीच हम पीसकर रह जाते है इसका सीधा असर जीवन पर पड़ता है। यहां पैसा और तमाम भौतिक सुविधाएं भी बेमानी लगने लगती है। क्या ऐसा नहीं हो सकता जैसे हम दीपावली की सफाई करते है, घर का कोना-कोना साफ करते है ठीक वैसे ही अपने ‘मन’ को भी साफ कर सके। कोई तकनीक, कोई विधा ऐसी हो जो हमारे टूटे जीवन को फिर से जोड़ दे ? 

छूटा सिरा फिर से पकड़ सकें ? आधुनिक समय में बहुत सी ऐसी तकनीक विकसित हो चुकी है जिनकी मदद से हम अपने को पुनः तरोताज़ा और खुशहाल कर सकते है। तो आईये ! इस दीपावली अपने मन की सफाई करे। नए संकल्प के साथ जीवन की खुशियों का आनंद लें, ऐसा करके हम खुद और अपने परिवार को भी तनाव मुक्त दीपावली की सौगात दे सकते है।

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