अशोक कुमार शर्मा
नई दिल्ली। पिछले 12 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को कायदे से हड़काया है। बाढ़ को लेकर केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के हमले को नीतीश हल्के में ले रहे थे। लेकिन जब भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने पटना में बाढ़ के लिए सरकार की नाकामी को जिम्मेवार ठहराया तो नीतीश दबाव में आ गये। पटना में बाढ़ के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को दोषी ठहराया गया है। भाजपा ने नीतीश को अल्टीमेटम दिया है कि वह 10 दिनों के अंदर दोषी अधिकारियों की पहचान कर उनके खिलाफ एक्शन लें। प्रशासन के नाकारापन को इस बात से समझा जा सकता है कि पटना के राजेन्द्र नगर, कदमकुआं, लोहानीपुर, पाटलिपुत्र कालोनी, इंदिरा नगर, न्यू बाईपास के दक्षिणी मोहल्लों से सात दिन बाद भी पानी नहीं निकाला जा सका है। यहां पानी सड़ कर काला हो गया है जो महामारी को बुलावा दे सकता है।
अफसरों की मनमानी पर भाजपा सख्त
नगर विकास विभाग चूंकि भाजपा के पास है इसलिए उसने सबसे पहले अपने मंत्री सुरेश शर्मा को जवाब के लिए तलब किया। सुरेश शर्मा ने बताया कि वे अपने विभाग में बिल्कुल लाचार हैं। विभाग के आला अफसर उनकी नहीं सुनते। वे सीधे मुख्यमंत्री सचिवालय से निर्देश प्राप्त करते हैं और उन्ही को रिपोर्ट करते हैं। सचिव स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति में उनकी राय भी नहीं ली जाती। पटना नगर निगम की मेयर भी भाजपा की हैं। उनसे भी सफाई ली गयी। नगर निगम राजनीति का अड्डा है। यहां काम कम, झगड़ा अधिक है। नगर निगम के आयुक्त की तैनाती भी सीएम सेक्रेटेरियट से होती है। हाल ही में नये नगर आयुक्त बहाल किये गये हैं। नाला उड़ाही की निगरानी उनकी जिम्मेवारी थी। पटना नगर निगम और नगर विकास विभाग ही पटना में बाढ़ के लिए जिम्मेवार हैं। जब भाजपा को अफसरों की मनमानी का पता चला तो उसने नीतीश पर सीधे हमला बोल दिया।
आईना दिखाने पर नीतीश को गुस्सा
पटना साहिब, पाटलिपुत्र के सांसद भाजपा के हैं। पटना में चार विधानसभा क्षेत्र आते हैं। सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। बचाव और राहत कार्य में लापरावही से आक्रोशित लोगों ने भाजपा के सांसदों और विधायकों का विरोध करना शुरू कर दिया। भाजपा ने महसूस किया कि अगर अभी उसने सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो यहां की राजनीति जमीन खिसक जाएगी। इसलिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने मोर्चा संभाला। उन्होंने बताया कि सांसद, विधायक की नाला उड़ाही में कोई भूमिका नहीं होता। अगर पानी निकालने के लिए संप हाउस काम नहीं कर रहे तो इसके लिए संबंधित सरकारी कर्मचारी और अधिकारी दोषी हैं। ऐसे अधिकारियों पर अगर कार्रवाई नहीं हुई तो बिहार भाजपा चुप नहीं बैठेगी। भाजपा ने जब नीतीश को आधिकारिक रूप से हड़काया तो सरकार हरकत में आ गयी। नीतीश को टारगेट करने पर जदयू भड़क गया। नाराज नीतीश जब बाढ़ का जायजा लेने पानी में उतरे तो भाजपा के किसी मंत्री को अपने साथ नहीं रखा। अब बाढ़ के मुद्दे पर भाजपा और जदयू में खुल्लमखुल्ला लड़ाई चल रही है।
व्यवस्था की अंधेरगर्दी
पटना शहर से पानी निकालने के लिए 28 संप हाउस बने हुए हैं। पहले यह बिहार राज्य जल पर्षद के अधीन थे। अब इसके संचालन की जिम्मेवारी बिहार राज्य शहरी विकास निगम यानी बुडको पर है। अधिकांश संप हाउस के ऑपरेटर अप्रशिक्षित और अयोग्य हैं। अधिकांश जगहों पर मैकेनिकल या इलेक्ट्रिकल जानकार नहीं हैं। एक संप हाउस का ऑपरेटर तो इंटर का छात्र है। इनके पास कोई तकनीकी जानकारी नहीं है। बिजली और मोटर के बारे में ये इतना ही जानते हैं कि कौन सा बटन दबाना है और किसे बंद करना है। ये सभी ऑपरेटर ठेके पर बहाल किये गये हैं। हैरानी की बात ये है कि बुडको के प्रबंध निदेशक को भी नहीं मालूम कि किसके आदेश पर संप हाउस का संचालन ठेका पर दिया गया है।
इंटर का छात्र संभाल रहा संप हाउस
पहाड़ी संप हाउस का ऑपरेटर मैट्रिक पास है। यहां के ठेकेदार ने उसे 10 हजार रुपये महीना पर बहाल किया है। जोगीपुर संप हाउस के तीन पंप फेल हैं। कंकड़बाग के ड्रेनेज प्रोजेक्ट में दो पंप हा काम कर रहे हैं। यहां दैनिक कर्मचारी व्यवस्था संभाल रहे हैं। मंदिरी संप हाउस का जिम्मा एक छात्र संभाल रहा है, जिसको ठेकेदार से आठ हजार रुपये महीना मिलता है। पटना के कई संप हाउस के मोटर फेल हैं या जल गये हैं। जो मोटर काम कर रहे हैं वे बिजली का लोड नहीं ले पा रहे। इसकी देखरेख वैसे लोग कर रहे हैं जिन्हें तकनीक की कोई जानकारी नहीं है। इसकी वजह से ही पटना के कई इलाकों में सात दिन बाद भी पानी नहीं निकल पाया है। पानी निकालने के लिए छत्तीसगढ़ से बड़ी मशीनें मांगायी गयीं हैं लेकिन इसके बाद भी नर्क से मुक्ति नहीं मिल पा रही।