भारत के साथ सीमा पर तनाव पैदा करने की वजह से चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अलग-थलग पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जहां चीन वीटो पावर के साथ चार अन्य देशों के साथ स्थायी सदस्य है, वहां भी समर्थन भारत के पक्ष में ज्यादा है। अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन सीमा मसले पर भारत की समझ के ज्यादा करीब हैं।

फ्रांस का समर्थन भारत के लिए लगभग उस तरह का है, जैसे कभी रूस का भारत के लिए होता था। रूस की मित्रता चीन से भी है लेकिन अहम मौकों पर भारत का साथ देने की वजह से दोनों देशों का परंपरागत भरोसा बरकरार है। रूस ने मौजूदा विवाद में भी भारत के रुख को समझा है। अमेरिका भारत का बड़ा सामरिक सहयोगी बनकर उभरा है। 

सूत्रों ने कहा कि ये सभी देश चीन के भारत विरोधी एजेंडे को बार-बार ध्वस्त करते रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में अस्थायी सदस्यता हासिल करने के बाद से भारत अन्य स्थायी व अस्थायी सदस्य देशों से आपसी समझ बढ़ा रहा है, ताकि संयुक्त राष्ट्र में उसकी भूमिका प्रभावी हो सके।

सूत्रों के अनुसार भारत ने बारी-बारी से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों से मौजूदा ज्वलंत मुद्दों पर बात कर उन्हें अपने करीब लाने की कोशिश की है। वैश्विक मुद्दों पर भी भारत आपसी समझ बढ़ाने में जुटा है। सोमवार को फ्रांस और भारत के विदेश सचिव स्तर की बातचीत में भी आपसी समझ के कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इसमें मौजूदा सीमा विवाद भी शामिल है। विदेश सचिव की पिछले हफ्ते जर्मनी के विदेश सचिव से भी बात हुई थी।

सूत्रों ने कहा कि भारत अपने साथ चुने गए अन्य अस्थायी सदस्यों से भी सहयोग हासिल कर विश्व मंच पर एजेंडा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा। कोविड संकट और अब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद ने विश्व मंच पर भारत की आवाज को ताकत दी है। अधिकतर देश इस क्षेत्र में सीधे सैन्य टकराव के पक्ष में नहीं हैं लेकिन चीन की घेरेबंदी विभिन्न स्तरों पर तेज हुई है। जल्द भारत दुनिया का एजेंडा तय करता हुआ नजर आएगा। चीन के साथ कूटनीतिक स्तर पर दिक्कतों के बावजूद भारत की वैश्विक कूटनीति ज्यादा प्रभावी होगी।

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