कोविड-19 के चलते पर्यावरण में परिवर्तन पर बसंत कालेज राजघाट में दो दिवसीय वेबिनार

कोरोना महामारी के इस दौर में आये प्राकृतिक बदलावों पर चर्चा के लिए वेबिनार का आयोजन किया गया।

वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट में इतिहास विभाग द्वारा इस दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया जिसका विषय “पर्यावरण और कोविड19 से उत्पन्न चुनौतियां:वर्तमान भारतीय इतिहास का बदलता परिप्रेक्ष्य” था।

इस वेबिनार में लगभग 200 प्रतिभागियों ने देश के विभिन्न भागों से जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, उत्तराखंड, महाराष्ट्र आदि से भाग लिया। इस मौके पर कार्यक्रम के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने जलवायु परिवर्तन की बात करते हुए कहा कि किसी ने स्वच्छ नदी,वायु की स्वच्छता के बारे में कोविड-19 के दौरान सोचा नहीं था। लेकिन गंगा, यमुना, कावेरी, सतलुज,दामोदर सभी साफ़ सुन्दर दिख रही हैं। वर्तमान पीढ़ी ने ऐसा देखा नहीं होगा। जहाँ वन नहीं हैं वहां कोरोना का विस्तार दिखाई देता है। अमरीका तथा यूरोप के औद्योगिक प्रदुषण वाले इलाके में भी इसका फैलाव देखा जा सकता है। हम सबों को कोविड19 के मद्देनजर सतत परिवर्तन करने की आवश्यकता है। विश्व की सभी सरकारें “सामान्य” जीवन की ओर लौटना चाहती हैं लेकिन जहाँ तक प्रकृति और पर्यावरण का सवाल है यह “सामान्यता” समस्या बन गयी है।हमें इस हेतु मार्ग प्रशस्त करने पर विचार करना होगा।

प्राचार्या डॉक्टर अलका सिंह ने विशिष्ट अतिथियों तथा प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह समय रुकावटों का नहीं रूपांतरण का है।

विषय स्थापना करते हुए विभागाध्यक्षा डॉक्टर दीप्ति पांडेय ने पर्यावरण के महत्व को बताते हुए कोविड-19 की चुनौतियों के बारे में बताया साथ ही अतिथियों का परिचय भी दिया।

विशिष्ट अतिथि के रूप में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शेखर पाठक ने अपने उद्बोधन में कहा कि कोरोना ने आधुनिक मानव की सीमाओं को बता दिया। इसने संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया है।उन्होंने कोविड 19 से उपजे सामजिक ,सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव को इंगित किया। सामाजिक दूरी को आज के समाज की नयी परिभाषा बताते हुए कहा कि इस काल में अनेक साहित्यिक गतिविधियाँ हो रही हैं। यह समय सृजन का है।इस बीमारी ने मानव और मानवीयता की शिक्षा दी है।वैश्विक रुप से यह काल राजनीतिज्ञों के लिए तथा शाषण व्यवस्था के प्रारूप के लिए परीक्षा का काल है। पर्यावरणीय स्तर पर अनेक रिपोर्ट ने बताया है कि प्रदूषण का स्तर सबसे निम्न स्तर पर है,नदी नाले ,वायु स्वच्छ हो गए हैं। यह समय समानता के बारे में विचार का है और उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों से विमुख होने का भी है। गाँधीजी की प्रसिद्ध उक्ति की प्रकृति के पास सबको देने के लिए सब कुछ है लेकिन किसी के लालच को पूरा करने के लिए नहीँ है।

अंतिम वक्ता के रूप में अम्बेडकर विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रोफेसर सलिल मिश्र ने कहा कि हमें भविष्य से बहुत आशाएँ हैं। कोविड 19 ने आशा के विपरीत मनुष्यता को असहज किया है। हालाँकि इससे पहले 9/11जैसी आतंकवादी घटनाएं और द्वितीय विश्व युद्ध भी हुए लेकिन विश्व गतिशील रहा लेकिन कोविड 19 मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़े प्रभाव को लेकर आया है। इस समय राष्ट्र राज्य के मध्य ऐक्य की भावना ही हमें उबार सकती है लेकिन अन्तर्वर्ग की सीमाएं और अधिक ताकतवर और तीक्ष्ण होती जाएंगी। नीति निर्माताओं के लिए त्रिआयामी बिंदुओं चिकित्सा,सामाजिक आर्थिक और महामारी विषयक नीति बनाने की बात की। सरकारी नीतियां इस अंतराल को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं।

कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों ने विशेषज्ञ विद्वान् से कई सवाल पूछे जिसका उन्हें समुचित उत्तर मिला।

कार्यक्रम का समन्वय वेबिनार की संयोजन सचिव डॉ श्रेया पाठक ने किया। डॉ संजीव ने इस वेविनार को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

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