जय प्रकाश मिश्र
कोरोना महामारी के चलते दुनिया एक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो रहे हैं और मजदूर जीवन यापन के लिए शहर छोड़कर अपने गांव की ओर लौट रहे हैं। उद्योग-धंधे और व्यापार सब ठप पड़े है। केंद्र व राज्य सरकारें राजस्व कमी के गंभीर संकट का सामना कर रही हैं। सरकारों ने राजस्व प्राप्ति के लिये लॉक डाउन में भी शराब बिक्री का सहारा लिया जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों लोगों की भीड़ शराब की दुकानों के सामने लग गई और सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेनसिंग) की धज्जियाँ उड़ गईं। इससे कोरोना संक्रमण का गंभीर खतरा पैदा हो गया है जिसके गंभीर परिणाम जून-जुलाई में देखने को मिल सकते हैं। कुछ सरकारों ने तो 70-75% तक शराब की कीमतों में वृद्धि कर दी है। राजस्व के लिये डीजल व पेट्रोल के दाम बढ़ाये गए। इस समय डीजल, पेट्रोल पर लगभग 250% टैक्स सरकार ले रही है। जिसके चलतेआवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे। जनता पहले ही आर्थिक संकट से त्रस्त है, ऐसे में वह टैक्स और महंगाई की दोहरी मार सहने की स्थिति में नहीं है।
नये नोट छापना भी इस आर्थिक संकट के दौर में एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है लेकिन इससे महंगाई बढ़ने और रुपये के अवमूल्यन का बड़ा खतरा सामने आने का अंदेशा है। सरकार यदि आर्थिक स्थिति को संभालने के लिये विदेशी बैंकों से ऋण लेती है तो रुपये के अवमूल्यन का खतरा बढ़ेगा जिसके दूरगामी गंभीर परिणाम होंगे।
मुख्य प्रश्न यह है कि वर्तमान आर्थिक संकट का समाधान क्या है?
इस पर विचार व शोध करने के पश्चात अर्थक्रान्ति संस्थान ने सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा है और दावा किया है कि इसे लागू कर सरकार वर्तमान आर्थिक संकट पर विजय प्राप्त कर सकती है। इस प्रस्ताव के अनुसार सरकार को केंद्र/राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन (नगर निगम आदि) के सभी टैक्स समाप्त करके (कस्टम ड्यूटी को छोड़कर) मात्र 2% बैंक ट्रांजेक्शन टैक्स (बीटीटी) लगाना चाहिए। यह टैक्स तभी लगेगा जब किसी खाते में रुपया जमा होगा (खाते से रुपया निकलने पर कोई टैक्स नही लगेगा)। वर्ष 2018-19 के दौरान बैंक के माध्यम से कुल 2886 लाख करोड़ का लेनदेन हुआ। यदि इसपर 2% टैक्स लगता तो सरकार को 57.72 लाख करोड़ राजस्व प्राप्त हुआ होता । जबकि इसी वर्ष 2018-19 में सरकार को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष टैक्स के रूप में सिर्फ 20.8 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए।
अर्थक्रान्ति ने प्रस्ताव में दूसरा सुझाव यह दिया है कि 2000, 500 आदि के बड़े नोट चरणबद्ध तरीके से चलन से बाहर किये जाने चाहिए। शुरू मे 200 के नोट जारी रहें। इस दौरान सौ के नोटो की लगातार छपाई होती रहे और जब ये पर्याप्त मात्रा मे हो जाएँ तब 200 के नोट भी बंद कर दिए जाएँ। नकद लेन देन की सीमा दो से तीन हजार तक की हो। जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में नगद लेनदेन कम हो जाएंगे और बैंक के माध्यम से लेनदेन बढ़ जाएंगे।
टैक्स विभाग के कर्मियों को बैंक में नियोजित किया जा सकता है। क्योकि तब बैक की शाखा 50 घर वाले गावों मे भी खोलनी होगी।
ऐसा नहीं कि इस अर्थ क्रान्ति के बारे मे सरकार अनजान है। वर्तमान पीएम नरेन्द्र मोदी जी से लेकर तमाम राजनेता तक इसके बारे में वाकिफ हैं। मोदी जी जब गुजरात के मुख्य मंत्री थे तब ढाई घंटे तक उन्होंने इसके बारे मे जाना था।
अर्थक्रान्ति का अनुमान है कि सरकार को देश के लिए राजस्व की जो आवश्यकता है उसके लिए 0.7% बैंक ट्रांजेक्शन टैक्स पर्याप्त होगा।
यदि यह प्रस्ताव लागू हुआ तो सरकार कोरोना महामारी से उत्पन्न वर्तमान आर्थिक संकट पर विजय प्राप्त कर सकती है और उद्योग-धंधों को गति देने के लिए, देश के विकास के लिए तथा गरीबों की योजनाओं के लिए सरकार के पास धन का कोई अभाव नहीं होगा। देश के विकास के लिए सरकार को FDI और विदेशी बैंकों के ऋण पर निर्भर नहीं रहना होगा। आयकर सहित अन्य सभी टैक्स से जनता को मुक्ति मिल जाएगी और बड़े नोट बंद होने से भ्रष्टाचार, कालेधन, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि पर अंकुश लग जायेगा।