रतन सिंह
साठ के दशक में एक फ़िल्म आई थी, बीस साल बाद। वह 20 साल बाद लिए गए बदले की कहानी थी, जिसे छिपाने के लिए भूतिया शक्ल दी गयी थी। आज भी 20 साल पहले की एक सुनने सुनने को जी चाहा।
तब हमारी टीम अमर उजाला मेरठ से जुड़ी थी। ये खबर साउथ अफ्रीका की सिरीज़ के ठीक बाद आई। नाम तो हम सब सुनते थे कि सट्टा लगता है और दांव भी लगाए जाते हैं। संदेह था, पुष्ट नहीं था या यकीन करने का मन नहीं था, ये आज के संदर्भ में कहना खुद को तीसमार खां समझना होगा। लेकिन आदमी की छठी इन्द्रिय होती है, जो उसे अवचेतन मन जैसी सोच देती है। द्वंद्व भी इसी से उपजता है। सबकी तरह मैं भी पुराने मैचों के फ़्लैश बैक में जाने लगा। फिर उसी सीरीज का एक मैच याद आ गया। द .अफ्रीका 36 ओवरों में तीन विकेट पर 235 पर था। यहाँ स्लॉग ओवर्स थे, लेकिन क्रोनिए का बल्ला नहीं चल रहा था। मैं अपने सहयोगी हिमांशु मिश्र के साथ tv पर मैच देख रहा था। मुझे लगा कि खेल का सामान्य चलन ये नहीं है। मेरे मुंह से निकला, अब इनके बैट को क्या हो गया। हिमांशु तब मेरे ख्याल से खेल का एक चहेता भर था, बोला, गेंदवाज़ी अच्छी हो रही है तो कहां से मारेंगे? मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया कि इसे बैट्समैन व टीम का संदर्भ ( पर्सपेक्टिव) पता नहीं है फिर ये गैर क्रिकेटीय कुतर्क। मैने कहा, गेंदबाजी क्या करेगी, बैट्समैन विकेट फेंककर मारता है, पर क्रोनिए कुछ नही कर रहे हैं। मेहमान दल तीन सौ भी नहीं पहुंचा और आल आउट भी नही हुआ।
ये चर्चा इसलिए कि मेरे खेल संपादक पदमपति शर्मा और सहयोगी शैलेश चतुर्वेदी ने संदेह जताया कि ऐसा नही नही होना था। बाद में हमारा संदेह सही साबित हुआ। फिर फिक्सिंग का बम फटा और सभी चारों खाने चित थे। ये भी जानिए कि हिमांशु ने क्रोनिए की खबर पर हैडिंग लगाई, धूल में मिल गया, आसमान छूने चला था खाकसार।
बात तात्कालिक भारतीय कप्तान मोहम्मद अज़हरुद्दीन की, जो क्रोनिए के साथ फिक्सिंग के सबसे बड़े गुनाहगार थे। मैच फिक्सिंग में उन्होंने क्रिकेट को लपेटा और कालिख पोत दी। उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा, हाइकोर्ट ने दोषी माना, लेकिन उनका कुछ नही हुआ, क्योकि भारतीय दंड संहिता में कोई प्रावधान नहीं था। बाद में काग्रेस पार्टी ने मुरादाबाद से टिकट देकर उन्हें महिमामंडित करते हुए सांसद भी बनवाया।
सरकारों ने कानून बनाने की ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे अपराध के लिए देश द्रोह की सज़ा का प्रावधान होना चाहिए।
क्रोनिए इस काले अध्याय के पहले विलेन थे
क्रोनिए ने आज ही के दिन दो दशक पहले कबूल किया था कि फिक्सिंग में उनकी बड़ी भूमिका थी। शुरुआती अप्रैल में क्रोनिए के फिक्सिंग से जुड़े होने की रिपोर्ट भारत से उभरी थी। जो ज्यादातर फोन पर बातचीत से जुड़ी थी। लेकिन क्रोनिए फिक्सिंग के आरोपों को गलत बताते रहे।
क्रिकेट जगत में क्रोनिए का बड़ा सम्मान था, किसी ने सोचा न होगा यह अफ्रीकी धुरंधर ऐसा भी कर सकता है। दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट बोर्ड (UCBSA) के एमडी अली बाकर को भी क्रोनिए की ईमानदारी पर पूरा भरोसा था। लेकिन आरोप के चार दिन ही बाद क्रोनिए ने सुबह तीन बजे बाकर को फोन कर कबूल किया था, ‘मैं पूरी तरह ईमानदार नहीं। कहा गया था कि खेल साफ हो जाएगा, लेकिन कुछ नही हुआ। स्पॉट फिक्सिंग आ गई, जिसका कोई कुछ नही बिगाड़ सकता।
दागदार क्रोनिए ने नया काम शुरू किया था
आखिरकार क्रोनिए से कप्तानी छीन ली गई। बाद में सरकार द्वारा नियुक्त किंग कमीशन ने क्रोनिए को असली दागदार साबित किया। क्रिकेट से दूर, क्रोनिए ने जोहानेसबर्ग की एक कंपनी के लिए एक वित्तीय प्रबंधक के तौर में अपना नया काम शुरू किया था।
क्रोनिए की मौत एक विमान हादसे में हो गई
लेकिन दो साल बाद 2002 में क्रोनिए की मौत एक रहस्यमय विमान हादसे में हो गई। कहा गया कि माफिया सिन्डीकेट का उनकी मौत मे हाथ था। उस वक्त क्रोनिए महज 32 साल 26 महीने के थे। 2000 से अधिक लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में भाग लिया। क्रोनिए ने 68 टेस्ट और 188 वनडे खेले। 53 टेस्ट मैचों में साउथ अफ्रीका की कप्तानी की, जो ग्रीम स्मिथ (108) के बाद सर्वाधिक है।
क्या था पूरा मामला
इससे पहले 7 अप्रैल को क्या हुआ था…
मैच फिक्सिंग ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को तब हिला कर रख दिया था, जब दिल्ली पुलिस ने 7 अप्रैल 2000 को खुलासा किया कि दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोनिए मैच फिक्सिंग में शामिल थे।
बाद में हर्शल गिब्स ने खुलासा किया कि क्रोनिए ने उन्हें नागपुर में भारत के खिलाफ 5वें वनडे मैच (19 मार्च 2000) में 20 से कम रन बनाने के लिए 15,000 डॉलर की पेशकश की थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उस मैच में हेनरी विलियम्स को 50 से अधिक रन देने के लिए 15,000 डॉलर की पेशकश की गई थी।
गिब्स ने 53 गेंदों में 74 रन बनाए और हेनरी विलियम्स कंधे चोटिल हो गए। यह तेज गेंदबाज अपना दूसरा ओवर पूरा नहीं कर पाया, और उसे 15,000 डॉलर नहीं मिले।
क्रोनिए का कबूलनामा….
अपना अपराध को स्वीकार करते हुए क्रोनिए ने कहा था कि 1996 में कानपुर में तीसरे टेस्ट के दौरान मुकेश गुप्ता नाम के शख्स ने उन्हें 30,000 डॉलर दिए, ताकि आखिरी दिन उनकी टीम विकेट गंवाए और मैच हार जाए।
दक्षिण अफ्रीकी टीम ने 461 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए 127 रनों पर 6 विकेट गंवा दिए थे। क्रोनिए पहले ही आउट हो गए और उन्होंने अन्य खिलाड़ियों से बात नहीं की उन्होंने कहा था, ‘मुझे बिना कुछ किए पैसे मिले थे…जवाबी दौरे (Return Tour) पर उन्हें टीम की जानकारी के लिए मुकेश गुप्ता से 50,000 डॉलर मिले थे।
सोचा गया था कि इस कांड के बाद क्रिकेट में फिक्सिंग का खेल खत्म हो जाएगा। लेकिन ऐसा सोचना भूल थी। मैच फिक्सिंग ने उस स्पाट फिक्सिंग का चोला ओढा लिया जहाँ एक चौके और एक नो बाल पर ही आज सैकडों करोड के वारे न्यारे हो जाते हैं।