आत्म चैतन्य
इस जानलेवा वायरस ने तो कुछ महीने पहले ही पांव पसारे हैं। इससे बचने की प्रक्रिया और इसका सही उपचार, क्या है ? भारत तो इसे हजारों साल से जानता है।
कैसे ? आइए बताते है हम। आप सभी सनातनधर्म प्रेमियों ने जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा के पूर्व की सारी प्रक्रिया को ध्यान से कभी समझा,
क्या आपने कभी विचार किया कि, प्रत्येक वर्ष रथ यात्रा के ठीक पहले भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार क्यों पड़ते रहे हैं ?
उन्हें बुखार एवं सर्दी हो जाती है। बीमारी की इस हालत में उन्हें Quarantine किया जाता है जिसे मंदिर की भाषा में अनासार कहा जाता है। भगवान को 14 दिन तक एकांतवास यानी Isolation में रखा जाता है। आपने ठीक पढ़ा है 14 दिन ही।
उन्हें 15 दिनों तक केवल लौंग, इलायची, चंदन, जायफल, कालीमिर्च और तुलसी आदि से तैयार किया गया काढ़ा दिया जाता है।
15 दिनों बाद उन्हें परवल का जूस दिया जाता है जिससे कि वो पूरी तरह से स्वस्थ हो जायें। दवा के साथ ही स्वर्ण भस्म व सुदर्शन आदि का काढ़ा भी दिया जाता है। वैद्य आदि गरिष्ठ भोजन की भी मनाही कर देते है,
भगवान के लिए पुराने चावल के माड के साथ दलिया, धान का लावा, ज्वार की लाइ, मूंग की दाल आदि का भोग लगाया जाता है। मीठा, ठंडा पदार्थ 15 दिनों के लिए पूर्णतः वर्जित कर दिया जाता है।
इस आइसोलेशन यानी एकान्तवास के बाद जब जगन्नाथ भ पूर्णतः स्वस्थ होते है तो मन बहलाव तथा लोगों को दर्शाने के लिए कि अब पूर्ण स्वस्थ हैं वे निकलते है, वह दिन आषाढ़ मास की अमावस्या का होता है।
तब भगवान को राजसी वस्त्र पहनाकर भक्तों के सामने लाया जाता है और रथ यात्रा का प्रारंभ होता है।
तो….Isolation की इस अवधि में भगवान के दर्शन बंद रहते हैं एवं भगवान को जड़ीबूटियों का पानी आहार में दिया जाता है यानी Liquid diet और यह परंपरा हजारों-हजार साल से चली आ रही है।
कितनी हास्यास्पद बात है कि अब बीसवीं सदी में पश्चिमी लोग हमें पढ़ा रहे हैं कि Isolation & Quarantine का समय 14 दिन होना चाहिए।
वो हमें ऐसा पढ़ा सकते हैं क्योंकि हम स्वयं सोचते हैं कि हिंदू धर्म अन्धविश्वास से भरा हुआ अवैज्ञानिक धर्म है।क्यों है न ऐसा…? क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि हमारा सनातन हिंदू धर्म पूणतया वैज्ञानिक व प्रकृति से सामंजस्य बैठाते हुए सम्पूर्ण सृष्टि के लिए सन्देश देता है ?
कुछ और नही कहना बस यही समझिये कि जो आज हमें पढ़ाया जा रहा है हमारे पूर्वज हजारों साल पहले से जानते थे।
गर्व करिये अपनी सँस्कृति और सभ्यता पर तथा अपने ऋषि-मुनि रूपी पूर्वजों पर। ध्यान रखिये भारत की सभी संताने ऋषि मुनि की संतानें हैं जाति चाहे जिसकी जो भी हो।