विशेष संवाददाता
केंद्र के रुख का महिला सैन्य अफसरों ने किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में दिया प्रतिवेदन
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में शारीरिक सीमाओं के चलते महिला सैन्य अफसरों को कमान देने से इनकार कर दिया है। केंद्र के इस रुख को खारिज करने के लिए सेवारत महिला सैन्य अफसरों ने कोर्ट में लिखित प्रतिवेदन दिया है। महिला अधिकारियों ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे आधार उल्लेखित किए गए हैं जो कि मामले के प्रदर्शित रिकॉर्ड के पूरी तरह से विपरीत हैं।
महिला अधिकारियों ने कहा कि वे 10 कॉम्बैट सपोर्ट आर्म्स में पिछले 27 से 28 वर्षों से सेवारत हैं। साथ ही उन्होंने अपनी शूरता और साहस को साबित किया है। ऐसे में उन्हें कमान में नियुक्ति नहीं देने से उनका गौरव और साहस प्रभावित होगा।
अधिकारियों ने लिखित प्रतिवेदन में कहा कि उन्हें संगठन द्वारा उपयुक्त पाया गया और उन्होंने 10 कॉम्बैट सपोर्ट आर्म्स में शांति स्थलों के साथ ही प्रतिकूल स्थानों/अभियानों में सैनिकों और पुरुषों के प्लाटून और कंपनियों का नेतृत्व किया है। ऐसा कोई मौका सामने नहीं आया है जब सैनिकों/पुरुषों ने अपनी कथित ग्रामीण पृष्ठभूमि, प्रचलित सामाजिक मानदंडों के कारण महिलाओं की कमान से इनकार या उसे अस्वीकार किया हो। लिखित प्रतिवेदन को रिकॉर्ड में लिया गया है। इसमें कहा गया है कि महिला अधिकारियों ने प्रदर्शित किया है कि उन्हें जो भूमिका सौंपी गई है, उसमें वे किसी भी तरह से कमतर नहीं हैं।
इसमें कहा गया है कि महिला अधिकारियों को उनके उचित हकों से वंचित करने के लिए भारत संघ द्वारा दिए गए कथित आधार गलत हैं। यह 25 फरवरी 2019 के भारत के संघ के नीतिगत निर्णय के विपरीत है जिसके तहत एसएससीडब्लूओ को सभी 10 इकाइयों में स्थायी कमीशन पर सहमति जताई गई थी।
महिला अधिकारियों ने दलील दी कि 1992 में महिलाओं को पहली बार भारतीय सेना में शामिल किए जाने के बाद से किसी भी विज्ञापन या नीतिगत फैसलों में महिला अधिकारियों को केवल कर्मचारी नियुक्तियों तक ही सीमित रखने का कभी कोई उल्लेख नहीं किया गया है। शीर्ष अदालत ने गत पांच फरवरी को मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और महिला अधिकारियों एवं रक्षा मंत्रालय को अपने लिखित प्रतिवेदन देने को कहा था।