पदम पति शर्मा

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार गत पांच फरवरी को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने जिस राम जन्म भूमि न्यास तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की थी, उसके 15 सदस्यीय ट्रस्टी कौन होंगे, उनके नामों कि आधिकारिक तौर पर सरकार ने यद्यपि अभी तक घोषणा नहीं की है। लेकिन जो 13 नाम सामने आए हैं, उनको लेकर विरोध के स्वर सुनाई देने लगें हैं ।

संवादहीनता कारण हो सकता है कि सूची में महन्त नृत्यगोपाल दास का नाम न होने से अयोध्या में संतों ने आपत्ति जतायी। बाद में स्थिति स्पष्ट हो गयी कि महन्त जी और विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय के नाम 1992 में विवादास्पद ढाँचा विध्वंस के आरोपियों में हैं इसलिए इन दोनों को फिलहाल सूची से बाहर रखा गया है। आगामी मार्च तक मुकदमे का फैसला आने के बाद इनको ट्रस्ट में शामिल कर लिया जाएगा।

चाहे राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महन्त नृत्यगोपाल दास जी हों अथवा चंपत राय जी इन दोनों की राम जन्म भूमि आन्दोलन में सक्रिय भूमिका का यह नाचीज प्रत्यक्षदर्शी रहा है। इनको लेकर संतों का विरोध तो समझ मैं आता है। लेकिन ये रामालय ट्रस्ट क्या बला है ? कल इस ट्रस्ट की ओर से स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद ने काशी में प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से ट्रस्ट में नामों को लेकर जो विरोध किया वह वाकई समझ से परे रहा।

बतौर पत्रकार राम जन्मभूमि आन्दोलन से मैं प्रत्यक्ष या परोक्ष जुड़ा रहा हूँ । 1990 में यू पी के तत्कालीन मुख्यमंत्री के आदेश पर निरीह और मासूम कारसेवको का नरसंहार अर्ध सैन्य बल के हाथों होते मैंने स्वयं देखा था। मैं जहाँ खड़ा था वहां से बमुश्किल दस मीटर की दूरी पर 18 कार सेवक गोली से छलनी कर दिए गए थे। युवा कोठारी बंधुओं की लाशे हमने उठायी थी। अर्ध सैनिक बल के एक अधिकारी से मेरी झड़प लखनऊ दूरदर्शन की आर्काइज में आपको मिल जाएगी। इसके पहले 30 अक्तूबर को हुई कारसेवा भी हमारी जागरण की टीम ने देखी थी और यह भी देखा था कि किस तरह बनारस के जत्थे ने मुलायम के “परिन्दा भी पर नहीं मार सकता”के दावे को भोथरा बना कर रख दिया था। यही नहीं हमारी जागरण की टीम ने बनारस से अयोध्या कार्यक्रम से आने के दौरान कारसेवको जत्थो को सड़क से दूर खेतों में छिप
हुए पैदल अयोध्या जाते देखा था।

ये सारा संघर्ष संघ और विश्व हिन्दू परिषद के तत्वावधान में हुआ था। शिवसेना सहित और भी कुछ हिन्दूवादी संगठनों की भी इस आन्दोलन में भूमिका थी। लेकिन रामालय ट्रस्ट का तो नाम तक भी नहीं सुना था मैने। इनकी चाहत है कि उनके प्रतिनिधि को ट्रस्ट में शामिल किया जाय। क्यों भाई क्यों आपको शामिल किया जाए ?

स्वामी स्वरूपानंद के बतौर प्रतिनिधि अवमूक्तेश्वरानंद अब राम मंदिर निर्माण में अपनी भूमिका चाहते हैं । लेकिन क्या वो यह बताएँगे कि रामलला के लिए उन्होंने या उनके गुरू ने कोई आन्दोलन किया हो। कोई कुर्बानी दी हो ? 1989 में जब यह आन्दोलन अपने चरम पर था तब स्वरूपानंद जी के ये शिष्य शायद छात्र रहे होंगे । उनके गुरु सिर्फ बयानबहादुर ही रहे। कांग्रेसी शंकराचार्य के नाम से उनकी पहचान ज्यादा रही है। उस कांग्रेस की जिसकी प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने गोहत्या के विरोध मे 1967 में संसद के सामने धरनारत सैकड़ों साधु संन्यासियो पर गोली चलवा कर उनको मौत की नींद सुला दिया था। इस धरने का नेतृत्व स्वामी करपात्री जी ने किया था और जिनकी भी उस दिन हत्या की योजना थी। गंभीर तौर पर घायल करपात्री जी महाराज की एक आख भी चली गयी थी इस दौरान और उन्होंने जो श्राप दिया था श्रीमती गांधी को वह बाद में फलीभूत भी हुआ। यह कितना लज्जास्पद हैं कि शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज उनके शिष्य होकर भी कांग्रेस भक्त हो गये। हमेशा कोसते रहे हैं वो संघ, विश्व हिन्दू परिषद और उसके आन्दोलन को। आज जब भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया तो उसमें अपनी भागीदारी जताने आ गये।

मंदिर के नाम पर यह रामालय ट्रस्ट देश के हर ग्राम से एक ग्राम सोना दान में माँगने का अभियान आज से आरंभ कर चुका है। राम मंदिर निर्माण के लिए 1008 किलो सोना जुटाने का लक्ष्य…. आप सोना क्या हीरे मोती का भी मंदिर बनाइए लेकिन वो अयोध्या में प्रस्तावित राम लला का मंदिर कतई नहीं होगा।

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