आतंकियों की घुसपैठ से लेकर ठिकानों तक पहुंचाने की एवज में ट्रक चालक वसूलते हैं 70 हजार से एक लाख रुपये

नेशनल हाईवे के किनारे बने ढाबों और होटलों के मालिक भी मोटी रकम लेकर देते हैं पनाह

लक्ष्मी कान्त द्विवेदी

अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के चलते सदियों से पूरी दुनिया के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी कश्मीर घाटी में इन दिनों टेरर टूरिज्म का धंधा चल निकला है। घाटी के आतंकवादग्रस्त इलाकों में ट्रक चालक आतंकियों की घुसपैठ से लेकर उनके ठिकानों तक पहुंचाने की एवज में 70 हजार से एक लाख रुपये तक वसूल रहे हैं। यही नहीं इन आतंकियों को नेशनल हाई वे के आसपास बने ढाबों और होटलों में ढहराया भी जाता है और बदले में उनसे अलग से एक मोटी रकम वसूल की जाती है।

दरअसल टेरर टूरिज्म के इस धंधे का खुलासा हाल ही में नगरोटा बन टोल प्लाजा पर हुए आतंकवादी हमले में पकड़े गये ओवरग्राउंड वर्करों से पूछताछ में हुआ है। जांच एजेंसी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि, आतंकियों के नेटवर्क में श्रीनगर रूट पर चलनेवाले ट्रक एक बड़ी कड़ी के रूप में सामने आ रहे हैं। आतंकियों की घुसपैठ से लेकर उन्हें ठिकानों तक पहुंचाने का बाकायदा सौदा होता है। आतंकियों के ओवर ग्राउंड वर्कर्स ट्रक चालक एवं सहचालक ने पूछताछ में बताया कि, उन्हें सामान्य आतंकी को पहुंचाने की एवज में 70 हजार तो बड़े आतंकियों के लिए एक लाख रुपये मिलते हैं। यह कहानी केवल बन टोल प्लाजा तक ही सीमित नहीं है। इसके पहले की आतंकी वारदातों की जांच में भी यही बात सामने आयी है।

जांच एजेंसियों के सूत्रों ने बताया कि, कश्मीर के आतंकवादग्रस्त इलाकों में ट्रकों की खरीद पहले की तुलना में काफी बढ़ गयी है। अफसरों को इस बात की आशंका है कि, इन ट्रकों का इस्तेमाल माल ढोने के अलावा आतंकियों को लाने, ले जाने में भी किया जा रहा है। इसके साथ ही हथियार और गोला-बारूद पहुंचाने और अन्य आपराधिक गतिविधियों में भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। अनंतनाग, कुपवाड़ा, डोडा, पुंछ, किश्तवाड़, राजौरी और श्रीनगर के नंबरों का पंजीकरण बढ़ा है।

यही नहीं प्राप्त इनपुट के मुताबिक, कठुआ और सांबा जिलों में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बने ढाबों और होटलों के मालिक भी मोटी रकम लेकर इन आतंकियों को पनाह दे रहे हैं। ऐसे कई ढाबा और होटल मालिक सुरक्षा एजेंसियों के राडार पर हैं। ट्रक चालकों के साथ-साथ इन्हें भी पैसे की लालच में मानवता के इन दुश्मनों की मदद करने में जरा भी हिचकिचाहट महसूस नहीं होती।

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