नागरिकता कानून के विरोध में तब्दील हुई जेएनयू हिंसा: धरना प्रदर्शनों में लगने लगे आज़ादी की मांग के नारे: लहराये जा रहे “फ़्री कश्मीर” के पोस्टर:गज़वा-ए-हिंद के मंसूबों ने ली नयी अंगड़ाई

दिनेश कुमार
समाचार संपादक

आख़िर क्या बात है कि देश भर में नागरिकता कानून का सिलसिला थम नहीं रहा। जेएनयू में हिंसा के ताज़ा दौर ने आग में घी का काम किया है। छद्म बुद्धिजीवियों और जेएनयू की कोख से जनमे ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ के व्हाट्सएप संदेशों के जरिए यह विरोध प्रदर्शन रातो रात देश के तमाम शहरों में जंगल की आग की तरह फैल गया।

दरअसल भारत में छद्म बुद्धिजीवियों, टुकड़े टुकड़े गैंग तथा पापुलर फ़्रंट आफ़ इंडिया ( पीएफ़आई ), तस्लीम रहमानी की एसडीपीआई और ओवैसी की एएमआईएम जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों की सक्रियता से पाकिस्तान तथा वहां के आतंकवादी गुटों को गज़वा-ए-हिंद का सपना देखने का पुन: मौक़ा मिल गया है। पाकिस्तान, खाड़ी के कुछ देशों और कई विदेशी संगठनों से भारत को हिंसा और अराजकता की आग में झोंकने के लिए बेशुमार पैसा इन देश विरोधी तत्वों के पास आ रहा है ।

इन धरना प्रदर्शनों में न सिर्फ़ आज़ादी की मांग के नारे बुलंद हो रहे हैं बल्कि “फ़्री कश्मीर” के पोस्टर भी लहराये जाने लगे हैं। कभी ‘देश में डर लगता है’ का शोर मचाने वाली फ़िल्मी हस्तियां भी अपने व्यावसायिक हित साधने के मक़सद से इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने लगी हैं। दीपिका पादुकोण को तो जेएनयू कैंपस पहुंच कर टुकड़े टुकड़े गैंग के सरगना कन्हैया कुमार के साथ मंच साझा करने में भी कोई गुरेज़ नहीं हुआ।

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के साथ ही भारत में गज़वा-ए-हिंद का पाकिस्तान का सपना चकनाचूर ज़रूर हो गया था लेकिन अब CAA, NPA और NCR के विरोध को लेकर तमाम शहरों में आगज़नी, तोड़फोड़ और सुनियोजित हिंसा का जो ताज़ा दौर शुरू हुआ है उससे गज़वा-ए-हिंद के मंसूबे को परवान चढ़ाने की कोशिशें फिर तेज़ हो चली हैं। झूठ और नफ़रत की अफ़वाहों के जरिए मुसलमानों को बरगला कर हिंसा और उपद्रव के लिए सड़कों पर उतारा जा रहा है।
पिछले दिनों दिल्ली के जामिया मिल्लिया परिसर में हुई हिंसा के बाद व्यापक तोड़फोड़ और आगज़नी से देश की राजधानी झुलस उठी थी। वहाबी सोच वाले कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों की साज़िश से हिंसा की यह आग उत्तर प्रदेश, बंगाल, कर्नाटक, आंध्र, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात समेत लगभग पूरे देश में फैल गयी। इस सुनियोजित हिंसा में पीएफ़आई की संलिप्तता उजागर होने पर इस संगठन से जुड़े कई लोगों की गिरफ़्तारियां हुईं।

जिस नागरिकता कानून का देश के किसी भी नागरिक से कोई लेना-देना नहीं उसके विरोध की आड़ में मोदी को सत्ता से उखाड़ फेंकने का मक़सद पूरा करने के लिए कांग्रेस, वामपंथी और अन्य विपक्षी दल किसी भी हद तक जाने को आमादा हैं। इसके लिए उन्हें हिंसा और अराजकता का हर प्रारूप मंज़ूर है। देश झुलसता है तो झुलसे इन्हें कोई ग़म नहीं।

क्या बला है गज़वा-ए-हिंद

काफ़िरों को जीतने के लिए किए जाने वाले युद्ध को गज़वा-ए-हिंद कहते हैं । गज़वा-ए-हिंद का मतलब है भारत में सभी ग़ैर मुस्लिमों पर शरिया कानून लागू करना। इसके लिए या तो इन्हें मारकर ख़त्म कर दिया जाये या इनको इस्लाम स्वीकार कराया जाये या फिर इन्हें तब तक ज़िंदा रखा जायेगा जब तक वे अपनी कमाई का एक हिस्सा जजिया कर के रूप में इस्लामिक सरकार को देते रहें जैसा कि मुग़ल शासकों के ज़माने में होता रहा।

1-अल तकिय्या: यह वह स्थिति है जब मुस्लिम संख्या बल में कमज़ोर होता है। ऐसी स्थिति में वह काफ़िरों ( ग़ैर मुस्लिमों ) से झूठ बोलता है और उन्हें धोखा देना जायज़ मानता है। यह दौर मुस्लिमों के लिए ख़ुद को अंदरूनी तौर पर मज़बूत बनाने का होता है।

2- काफ़िरों में भय पैदा करना: इसके लिए धोखे से हमला कर काफ़िरों की हत्या करना, झुण्ड बना कर किसी एक स्थान पर एकत्र काफ़िरों पर हमला करना होता है। यह सब कुछ भारत में पिछले कई सालों से जारी है।

3- हथियारों का जख़ीरा एकत्र करना: सोवियत संघ से मुस्लिम देशों के टूटने के बाद सबसे ज़्यादा हथियार भारत लाये गये। एक अनुमान के मुताबिक पूर्व सोवियत देशों से एक करोड़ से ज़्यादा AK-47 राइफलें गायब हुईं जिनका कोई अता पता नहीं। यह हथियार मुख्यत: भारत, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान पहुंच गये।

4- भारत में समय समय पर दंगों का सहारा लेकर काफ़िरों की प्रतिशोध शक्ति को आंकने का काम बहुत दिनों से चल रहा है। छोटी छोटी बातों पर बड़ा झगड़ा खड़ा कर काफ़िऱों की एकजुटता और ताक़त का अनुमान लगाया जाता है।

5- ठिकाने और शिविर बनाना: बस्तियों और मस्जिदों में हथियार इकट्ठा कर भीड़ जुटाने का काम किया जाता है और फिर भीड़ को भड़का कर उस इलाके से काफ़िरों का सफ़ाया करना मुख्य मक़सद होता है। इस्लामी गतिविधियों वाले शिविरों के इलाके से किसी न किसी बहाने सभी काफिरों को भगाना ज़रूरी होता है ताकि संवेदनशील सूचनाएं काफ़िरों को लीक न हो जायें।

6- सरकारी सूचना तंत्र को कमज़ोर करना: इस काम में तो ख़ुद सरकारें तक शामिल रही हैं। जम्मू-कश्मीर इसका पुख़्ता उदाहरण है। हर शुक्रवार को नमाज़ के बाद पुलिस या सुरक्षा बलों पर हमलों का मक़सद ही सुरक्षा तंत्र को कमज़ोर करना है। और यह काम अरसे से हो रहा है।

7- व्यापक दंगे: यह गज़वा-ए-हिंद का अंतिम पड़ाव है जिसमें कम से कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा काफ़िरों या ग़ैर मुस्लिम मर्दों को मौत के घाट उतार कर उनके प्रतिरोध को ख़त्म कर देना है।

गज़वा-ए-हिंद के लिए भारत पर पाकिस्तान के हमले को सबसे उपयुक्त समय माना गया है जैसा कि पाकिस्तानी वेबसाइटों पर बार बार देखने को मिलता है।

इस काम के लिए जेहादी लड़कों को मरने मारने के लिए तैयार किया जाता है जिन्हें मरने पर 72 हूरें मिलने और जीतने पर जवान काफ़िर महिलाओं के साथ सहवास के ख़्वाब दिखाये जाते हैं।

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