विशेष संवाददाता

मुंबई। महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व में बनी महाविकास अघाड़ी की सरकार अभी ठीक से खड़ी भी नहीं हुई है कि उसके अंतर्विरोध सामने आने लगे हैं। कांग्रेस सांसद ने हिंदूवादी सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है तो राकांपा ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में आरोपितों के खिलाफ केस वापस लेने की मांग कर डाली है। दिक्कत यह है कि शिवसेना हिन्दुत्व की संवाहक हैं। देखना यह है कि क्या शिवसेना अपनी नैसर्गिक विचारधारा से समझौता करती है या अड़ी रहती है।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हुसैन दलवई ने बुधवार को एक टेलीविजन चैनल से बात करते हुए नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड मामले में हिंदूवादी संगठन सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने और इसके प्रमुख जयंत आठवली को जेल भेजने की मांग की है। दलवई ने पहली जनवरी, 2018 को पुणे के निकट कोरेगांव-भीमा में हुई हिंसा के मामले में दो अन्य हिंदूवादी नेताओं मिलिंद एकबोटे एवं भिड़े गुरु जी को भी गिरफ्तार कर जेल भेजने की मांग की है।

कांग्रेस सांसद ने राकांपा नेता जयंत पाटिल पर भी साधा निशाना

दलवई सनातन संस्था को आतंकी संगठन भी बताते हैं। उन्होंने शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान नामक संगठन के संस्थापक 80 वर्षीय संभाजी भिड़े उर्फ भिड़े गुरु जी का समर्थन करने के लिए राकांपा नेता जयंत पाटिल पर भी निशाना साधा है। वहीं, कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने भी एकबोटे एवं भिड़े गुरु जी की गिरफ्तारी की मांग की है।

शिवसेना के संजय राउत बोले, प्रतिबंधों से विचार नहीं मरते

दलवई के बयान से असहमति जताते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि ऐसे मामलों में प्रतिबंध कारगर साबित नहीं होते हैं। प्रतिबंध से विचार नहीं मरते। बता दें कि शिवसेना और सनातन संस्था की विचारधारा एक है। दोनों का कार्यक्षेत्र भी महाराष्ट्र होने के कारण सामान्य शिवसैनिक सनातन संस्था के विरोधी नहीं रहे हैं।

यदि शिवसेना कदम उठाती है, तो उसकी हिंदुत्ववादी छवि पर आंच आ सकती

यदि शिवसेना अब कांग्रेस और राकांपा के दबाव में सनातन संस्था पर प्रतिबंध एवं मिलिंद एकबोटे तथा भिड़े गुरु जी पर कार्रवाई का कदम उठाती है, तो उसकी अब तक की हिंदुत्ववादी छवि पर गहरी चोट पहुंच सकती है।

कोरेगांव-भीमा के आरोपियों से केस वापस लेने की मांग- एनसीपी

उद्धव सरकार में मंत्री और राकांपा नेता जयंत पाटिल, राकांपा विधायक धनंजय मुंडे ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में आरोपितों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की मांग की है। इनका दावा है कि पूर्व की भाजपा सरकार ने इनके खिलाफ फर्जी केस दर्ज किए थे। बता दें कि पूर्व की भाजपा सरकार में शिवसेना भी सहयोगी थी।

कांग्रेस ने भी कोरेगांव-भीमा के आरोपियों से केस वापस लेने की मांग

वहीं, कांग्रेस नेता नसीम खान ने भी कोरेगांव-भीमा हिंसा के विरोध में प्रदर्शन करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों और मराठा कोटा के लिए हुए आंदोलन में शामिल लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों को भी वापस लेने की मांग की है। उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री ठाकरे को पत्र लिखा है।

मुख्यमंत्री उद्धव ने मंगलवार को कहा था कि पूर्व की भाजपा सरकार ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में उन लोगों को राहत देने की बात कही थी, जिन पर हल्के मामले दर्ज हैं। वह भी इसके पक्ष में हैं। ये मामले यलगार परिषद के उस मामले से अलग हैं, जिसमें सुधा भारद्वाज एवं वरवरराव जैसे माओवादी कार्यकर्ताओं को आरोपित बनाया गया है।

राकांपा की मांग को नक्सलवाद का समर्थक बताया

प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता माधव भंडारी ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले के आरोपियों से केस वापस लेने की राकांपा की मांग को नक्सलवाद का समर्थन बताया है। उन्होंने कहा कि अदालत ने भी आरोपितों के खिलाफ साक्ष्य पाए हैं और इसलिए उन्हें जमानत देने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा कि इन मामलों में आरोपपत्र दाखिल कर दिए गए हैं, फिर कैसे कोई केस वापस ले सकता है।

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