डा. रजनीकान्त दत्ता
भूतपूर्व कांग्रेसी विधायक

1947 के पूर्व अखंड भारत के सभी नागरिकों की नागरिकता भारतीय थी।भारत विभाजन के समय जब धर्म के आधार पर इस्लामिक स्टेट ऑफ पाकिस्तान बना तो एक भाई की नागरिकता पाकिस्तानी हो गई और दूसरे भाई की नागरिकता हिंदुस्तानी।यह सत्ता प्राप्ति राजनीति की हवस में जल्दबाजी में लिया गया वह देशद्रोही, घिनौना निर्णय था,जो बिना अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की सहमति के नहीं हो सकता था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दृढ़-प्रतिज्ञ थे कि,अव्वल तो भारत का विभाजन किसी आधार पर नहीं होगा और अगर किन्ही परिस्थितियों में हुआ तो वह उनकी लाश पर होगा।

कहते हैं कि बिना बापू की जानकारी और बिना अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की वर्किंग कमेटी को संज्ञान में लाए गए, ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा स्वीकृत भारत के विभाजन के नक्शे पर 3 जुलाई 1947 को भारतीय कांग्रेस के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में जवाहरलाल नेहरू ने उसपर स्वीकृति के हस्ताक्षर कर दिए थे, और 4 जुलाई 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में।यह सारा खेल लेडी एडविना माउंटबेटन, जो तत्कालीन भारत के वायसराय की पत्नी थी,उनके ब्लैकमेल का करिश्मा था।

इस धार्मिक बंटवारे के बाद जो भी अल्पसंख्यक मुस्लिम भारत में रह गए।उन्हें अन्य भारतीयों की तरह विभाजन के साथ ही भारतीय नागरिक के रूप में संपूर्ण अधिकार प्राप्त हो गए।जो आज भी उसी रूप में कायम है।तब यह मुस्लिम वर्ग फिर क्यों नागरिकता के सवाल पर “हाय-तौबा” मचाया हुए हैं।क्या यह भारतीय होते हुए भी अपने को गैर भारतीय समझते हैं?या फिर घुसपैठिए? वे क्या चाहते हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमानों को भी भारतीय नागरिकता संशोधन बिल के तहत शामिल किया जाए ? आपके अधिकार कोई नहीं छीनने जा रहा है। लेकिन याद रखिए भारत कोई धर्मशाला नहीं है।

यहां पर हमें जानना होगा कि शरणार्थी और घुसपैठियों की परिभाषा क्या है।

शरणार्थी

किसी भी देश में रहने वाला अल्पसंख्यक है जिसे बहुमत प्राप्त वाला उस देश का नागरिक उसे नागरिकता के मौलिक अधिकारों से वंचित करता है।यही नहीं उसपर अमानुषिक अत्याचार जैसे उसकी स्त्रियों के साथ बलात्कार, धर्म परिवर्तन आदि कराकर उन्हें जानवरों से भी बदतर जीवन जीने के लिए बाध्य करते हैं।फलस्वरुप वह न्यूनतम मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने हेतु सबसे नजदीकी देशों में पलायन कर जाते हैं, और शरणार्थी कहलाते हैं।

मानवाधिकार के अनुसार उन्हें उस देशों की नागरिकता मिलना नैसर्गिक अधिकार है और जो ईश्वरी,न्याय या खुदाई हुक्म भी नहीं बल्कि इबादत भी है।

घुसपैठिए

यह किसी देश में रहने वाले वे बहुसंख्यक हैं, जो अपने देश के गैर मानवीय कृत्य से आजिज आ चुके होते हैं और दूसरे देशों में बेहतर जिंदगी के लिए पलायन करते हैं या वे घुसपैठिए हैं जो पड़ोसी देश के जासूस स्लीपर सेल्स या अराजकता फैलाने वाले तत्व होते हैं, जो आपातकाल या युद्ध की स्थिति में जिस दुश्मन देशों में पलायन करते हैं,वहां अपने मूल देशों के हितों की रक्षा करने के लिए आंतरिक रूप से उस देश को कमजोर करने की हर कोशिश करते हैं। ताकि वह देश उनके मूल वतन से पराजित हो,उसका गुलाम बन जाए। ऐसा ही कुछ लॉर्ड क्लाइव ने 300 अंग्रेज सैनिकों के साथ, सिराजुदौल्ला की 16000 से भी ज्यादा फौज को मीरजाफर के कारण पराजित किया था।

हर युग में और हर माहौल में गद्दार पैदा होते हैं,जो इन घुसपैठियों के पिट्ठू और वफादार होते हैं। जैसा कि वर्तमान में सोनिया कांग्रेस उसके समर्थकों में से कुछ यूपीए घटकों के सदस्य और असदुद्दीन ओवैसी,कपिल सिब्बल,राहुल गांधी अधीर रंजन चौधरी जैसे लोग हैं।ये वे लोग हैं जो रहते तो भारत में हैं,खाते भी भारत का है।लेकिन वही भाषा बोलते हैं जो पाकिस्तान बोलता है और चाहता है, वे वही काम करते है जो पाकिस्तान उनसे करवाना चाहता है। इसके पहले कि नासूर गैंग्रीन बन जाए,उस अंग को ही काट फेको जो देश के लिए और हमारे भविष्य के लिए खतरा हो

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डा. रजनीकान्त दत्ता
भूतपूर्व कांग्रेसी विधायक

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