अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक

देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज पुण्यतिथि है । प्रधानमंत्री मोदी ने जहां ट्वीट कर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी वहीं गृह मंत्री ने दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम से देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लव भाई पटेल की याद में रन ऑफ यूनिटी शुरु करते हुए देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी । इसके साथ साथ दिल्ली के शक्ति स्थल पर इन्दिरा गांधी को श्रद्धांजलि देने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी , सोनिया गांधी, सहित कई नेता पहुँचे ।

भारत की आयरन लेडी के नाम से पहचानी जाने वाली इंदिरा गांधी के श्रद्धांजलि दिवस के साथ ही याद आ जाते हैं इन्दिरा जी की यादों से जुड़ी कुछ खट्टी-कुछ मीठी यादें ।

याद आती है इमरजेंसी को वो बर्बरता भी और 1972 की वो दृढ़ निश्चयता भी ,जिसने महज़ 13 दिन में न सिर्फ पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दिए बल्कि विश्व का नक्शा भी बदल दिया ।

राजनीति में कदम रखने के साथ ही ‘गूंगी गुड़िया’ कही जाने वाली इंदिरा देखते देखते लौह महिला बन गयी जिसे पूरा विश्व देखता रह गया ।

दृढ़निश्चयी और किसी भी तरह की परिस्थिति से जूझने और जीतने की क्षमता रखने वाली भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल इतिहास में खास जगह बनाई, बल्कि पाकिस्तान को विभाजित कर दक्षिण एशिया का भूगोल ही बदल डाला। कहते है इस वैश्वी्विक जीत से साल 1962 के भारत-चीन युद्ध की अपमानजनक पराजय की कड़वाहट धूमिल हुई ही इस जीत से विश्व की राजनीति में भारत की पहचान को लेकर नए जोश का संचार हुआ । पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण इतिहास दिया ।

भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके और पूर्व विदेशमंत्री नटवर सिंह ने 2013 में मुझे दिये इंटरव्यू में कहा था “वह एक बड़ी राजनेता थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बांग्लादेश की स्वतंत्रता थी। इसके जरिये उन्होंने विश्व का भूगोल बदलकर रख दिया।” उस समय भारत के लिए पूर्वी पाकिस्तान पर आक्रमण करना आसान काम नहीं था, क्योंकि अमेरिका और चीन की तरफ से भारत पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था, लेकिन इंदिरा गांधी आत्मविश्वास से लबरेज़ थीं, और उन्होंने कहा था “हम लोग इस बात पर निर्भर नहीं हैं कि दूसरे क्या सोचते हैं । हमें यह पता हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और हम क्या करने जा रहे हैं, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो ।

स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा के पिता ने भारत में कई महत्वपूर्ण नीतियां तो बनाई मगर निर्णय हमेशा उनके वश में नहीं रहा । नेहरू की उन नीतियों को अमली जामा इंदिरा ने ही पहनाया। चाहे रजवाड़ों के प्रिवीपर्स समाप्त करना हो, बैंकों या कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना ।
नटवर सिंह ने मुझसे कहा था कि “इंदिरा गांधी रहती हमेशा सहज थीं लेकिन अपने विरोधियों पर हमेशा भारी रहीं । सहज होने के साथ राजनीति की बड़ी ही मंझी हुई खिलाड़ी थी।

पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के पितामह खुद अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौहमहिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और न जाने कितने अन्य विशेषण दिए गए थे । इंदिरा गांधी के साथ के नेता कहते हैं इंदिरा गांधी एक ऐसी लीडर थीं जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के जोर पर शासन करने की क्षमता रखती थीं ।

इंदिरा गांधी 16 साल भारत की प्रधानमत्री रहीं और उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन साल 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले को लेकर इंदिरा को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इंदिरा के इस फैसले को लोकतंत्र और मीडिया पर हमला बताया और कहीं न कहीं भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी प्रभावित हुई। इंदिरा गांधी के बेहद करीबी और काँग्रेज़ के दिग्गज नेता दिवंगत एम.एल फोतेदार ने एक बार हमसे बात चीत में कहा था कि “इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दुष्परिणामों और चारो तरफ हो रही थू-थू को देखते हुए उसे खुद ही खत्म कर आम चुनाव करवाया था। लेकिन कांग्रेस को वर्ष 1977 के चुनाव में जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा , जनता पार्टी की सरकार बनी । हालांकि 3 साल बाद वर्ष 1980 में उन्होंने भारी बहुमत से वापसी की। फिर वर्ष 1983 में उन्होंने नई दिल्ली में निर्गुट सम्मेलन और उसी साल नवंबर में राष्ट्रमंडल राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन का आयोजन किया। जिसके बाद वो फिर एक बार लाइम लाइट में आईं और उसी जोश के साथ फिर आगे बढ़ी। लेकिन इन सब के बीच इंदिरा के एक गलत फैसले ने विपक्ष को खड़ा होने का मौका दे दिया था। और गाहे बगाहे उनके खिलाफ विरोध के स्वर भी सुनाई दिए। इंदिरा ने एक बार फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार के तौर पर एक और बड़ी गलती की। और ये दूसरी गलती उनकी जान की दुश्मन बन गयी। ऑपरेशन ब्लू स्टार को सिख समुदाय ने अपमान के तौर पर लिया और फिर ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद उपजे तनाव के बीच उनके निजी अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर, 1984 को गोली मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।
इन्द्रीरा गांधी का व्यक्तित्व ही विवादों भरा रहा जो उनकी मौत के बाद भी उनका साथ निभाता रहा।

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