दस हज़ार से अधिक अधिवक्ताओं वाले प्रदेश के प्रमुख संगठन वाराणसी के दी सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ राम अवतार पांडेय ने कहा है कि अयोध्या प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट में चालीस दिन की लगातार सुनवाई के बाद अन्ततः बहस पूरी हुई। अब सारे देश विदेश की निगाह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिकी हुई है। लोग अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी सोच के अनुसार निर्णय की कल्पना कर रहे हैं और अपने-अपने दृष्टिकोण को अपने तर्कों से पुष्ट करने में लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गम्भीर प्रश्न खड़ा है। उसे ऐसे मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध दाखिल अपील में न केवल जमीन के विवाद का निर्णय करना है बल्कि ऐसे बिन्दु पर निर्णय देना है जो लोक आस्था, लोक विश्वास और राम के होने न होने से सम्बंधित है।
जहां सारी दुनिया की निगाह सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई है और भारत का सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट अपने न्याय के लिए सारी दुनिया में प्रसिद्ध है, लोग यह देख रहे हैं कि आस्था और विश्वास से जुड़े इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय क्या निर्णय करता है। यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय की अपनी स्वतंत्रता, निष्पक्षता और विधिक ज्ञान क्षमता से जुड़ा है। निर्णय का दूरगामी परिणाम होगा, ऐसा सभी मानते हैं।
यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा और प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सुनवाई कर रहे अन्य न्यायाधीशगण भी इसको अच्छी तरह समझ रहे हैं।
विवाद और विवाद का बिन्दु उस काल का है जब सर्वोच्च न्यायालय खुद अस्तित्व में नहीं था, न ही न्यायिक निर्णय के लिए न्यायालयों की न्यायिक कार्रवाई और परीक्षण में प्रयुक्त होने वाला भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 ही अस्तित्व में था, और न ही उस काल खंड का कोई राजस्व अभिलेख ही अस्तित्व में है। पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं, अपने-अपने चाहत के अनुसार लोग तर्क देने में लगे हैं। लेकिन कहते हैं कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं।
जहां तक सत्य की बात है, यह सत्य है कि बाबर के आने के पहले देश भारत और भारत में अयोध्या नामक स्थान वास्तव में अस्तित्व में था। यह भी सत्य है कि उस समय भी और उसके बहुत पहले से ही अयोध्या में मनुष्य का अस्तित्व अनादि काल से चला आ रहा था। कथित विवादित स्थल पर बाबर से लेकर औरंगजेब के शासनारूढ़ होने के बीच में यानि बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां इन सबके शासनकाल में कथित विवादित स्थल पर किसी मस्ज़िद के होने का प्रमाण नहीं मिलता और न ही ऐसा कोई उल्लेख मिलता है। न ही ऐसा कोई कथन किया जाता है, न ही उस कालखंड में वहां मुसलमानों के स्वामित्व और कब्ज़े की कोई बात कही जाती हैं।यह भी सच है कि भूमि कभी भी किसी हालत में भी बिना स्वामी के नहीं रहती। उसका कोई न कोई स्वामी होता है और वह स्वामी के कब्जे में रहती है।
यदि इस अवधि के अंदर मुसलमानों का स्वामित्व और आधिपत्य या कब्जा नहीं कहा जाता तो उसके निर्विवाद रूप से हिन्दू पक्ष के अलावा वह किसी और के होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
मुस्लिम पक्ष इसे मस्जिद तो कहता है लेकिन साथ ही यह भी स्वीकार करता है कि वहां नमाज नहीं पढ़ी जाती। वह यह भी मानता है कि वहाँ जो भी निर्माण रहा उसका नाम बाबरी मस्जिद था। हिन्दू पक्ष का ये कहना है कि वह स्थान उसके भगवान श्री राम चन्द्र जी का जन्मस्थान है। और जब से राजस्व अभिलेख नियमित रूप से लिखा रखा जा रहा है, तब से उस स्थान के बारे में जन्मस्थान होने का उल्लेख चला आ रहा है। वह जन्मस्थान बाबर का नहीं हो सकता और न ही मन्दिर तोड़कर स्ट्रक्चर खड़ा करने वाले औरंगजेब का ही वह जन्मस्थान हो सकता है, न ही रूप-रंग, गुड़-गंध स्पर्श से परे निराकार अजन्मा अल्लाह का ही हो सकता है। ऐसा एक भी आस्तिक हिन्दू नहीं है जो उसे राम के जन्मस्थान के अलावा किसी भी और का जन्मस्थान कहता, मानता और विश्वास करता हो। सारे अयोध्यावासी भी करोड़ों करोडों हिन्दू जन मन के इस दृढ़ विश्वास की पुष्टि करते हैं। पीढ़ियों से चले आ रहे अयोध्या के निवासी अपने पुरखों से यह सुनते जानते मानते चले आ रहे हैं। कि आज का विवादित कहा जाने वाला स्थान राम का ही जन्मस्थान है।
सारी दुनिया में करोड़ों अरबों हिंदुओं में से भारत के बाहर रहने वाले किसी से पूछा जाए कि राम का जन्म स्थान कहाँ है तो वह अयोध्या के अलावा कोई और नाम नहीं लेगा। और यदि अयोध्या में पहुंचकर किसी भी व्यक्ति से यह प्रश्न पूछा जाए कि वह जमीन जहां राम पैदा हुए थे कहाँ है तो वह इस कथित विवादित स्थल के अलावा कोई भी दूसरा नाम नहीं बताएगा न दिखाएगा और उसका यह कथन पीढ़ियों दर पीढ़ियों से पुरखों द्वारा प्राप्त ज्ञान पर आधारित है। जहां तक इसके कागज़ी प्रमाण का सवाल है जब उस समय का आज के जैसा कोई राजस्व अभिलेख अस्तित्व में नहीं है और न ही 1872 का आज का साक्ष्य अधिनियम ही अस्तित्व में था। जिसके अनुसार आज साक्ष्य की बात की जा रही है ऐसी दशा में उस समय के बारे में जो कुछ हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लिखित है और जो हजारों वर्षों से चला आ रहा है। वही निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायक होगा। राम के न होने का तर्क देने वालों में से यदि किसी से यह पूछा जाए कि आपके आजा के परबाज़ा के परबाज़ा अस्तित्व में थे या नहीं तो निश्चित रूप से वह नहीं, नहीं कर सकता और कहेगा कि थे। जब उससे अगला प्रश्न हो कि इसका आपके पास क्या प्रमाण है तो उसके पास चुप रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। यहां इस मामले में तो राम की समूची वंशावली ग्रन्थों में उल्लिखित है। जिसके पिता ही नहीं उसके कुल के प्रारंभ से लेकर उसके तक और उसके बाद का भी सजरा खानदान मौजूद हैं। उसके कृतित्व के सारे महत्वपूर्ण स्थान अपने उन्हीं नामों के साथ भारत से लेकर लंका तक मौजूद हैं। जिसके द्वारा स्थापित सेतु की गवाही समुद्र से लेकर नासा के वैज्ञानिक तक पुष्ट कर रहे हो वह राम काल्पनिक कैसे हो सकता है। कुरान में जो लिखा है अगर वह ग्राह है तो सतकोट रामायणों में उल्लिखित राम और राम के कृतित्व और उसके स्थानों का उल्लेख अग्राह कैसे हो सकता है।
राम जो कुल खानदान के उल्लेख के साथ मौजूद हैं। वह काल्पनिक होंगे तो अल्लाह वास्तविक कैसे हो सकता है। जिनके मुँह, कान, नाक तक नहीं है। कोटि-कोटि जन के विश्वास से बढ़कर कोई गवाही नहीं हो सकती।
यह बात हर मुसलमान जानता है कि बड़ी से बड़ी इबादत की मस्जिदे मिलकर भी उसके काबे की बराबरी नहीं कर सकती। कथित विवादित स्थल पर तो नमाज भी अदा नहीं की जाती थी। जैसे मुस्लिम पक्ष का काबा दो नहीं हो सकता वैसे हिन्दू पक्ष की राम जन्मभूमि दो नहीं हो सकती। आज सुप्रीम कोर्ट के न्याय की परीक्षा की घड़ी खड़ी हैं। दुनिया परिणाम की ओर देख रही है।
जब काबा की आस्था नहीं छोड़ी जा सकती तो सदैव वन-वन भटकने वाले, निशाचरों से संघर्ष करने वाले, रामराज्य की स्थापना करने वाले, लोकाभिराम राम के जन्मस्थान के प्रति अपने आस्था को हिन्दू पक्ष कैसे छोड़ सकता है। मुस्लिम पक्ष को यदि सच में वे गंगा-जमुनी तहजीब को मानते हैं तो इसके महत्व को समझना और मानना चाहिए कि उस स्थान का महत्व किसके लिए सर्वाधिक है।
यह अविवादित है। कि जब से मन्दिर तोड़कर वहां विवादित ढांचा खड़ा किया गया तब से लगातार संघर्ष हुआ है और कई कई हज़ार लोग मारे भी गए यानी हिन्दू पक्ष में अपने स्वत और मन्दिर होने और उस पर हिन्दू पक्ष का कब्जा होने की बात कभी नहीं छोड़ा। सतत संघर्ष चला है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल के ही अपने निर्णय में यह मत व्यक्त किया कि किसी के स्वामित्व व कब्जे की भूमि पर बलात, जबर्दस्ती, अवैधानिक रूप से कब्जा करने वाला व्यक्ति का कब्जा भले ही चाहे जितना पुराना हो उसे जबरदस्ती हटाने और बेदखल करने का अधिकार वैधानिक रूप से प्राप्त है।
उसका यह कार्य यदि वह अपनी जमीन प्राप्त करने के लिए अवैध कब्जा करने वाले के विरुद्ध बल का प्रयोग करता है तो भी वह कार्य आपराधिक नहीं माना जायेगा। जहां तक अयोध्या की कथित विवादित जमीन का सम्बंध है वह राम की जन्मभूमि थी… है… और आगे भी रहेगी… रामनवमी को सारा देश ही नहीं सुप्रीम कोर्ट भी अवकाश मनाता है यदि राम नहीं थे सुप्रीम कोर्ट में या संस्थाओं में अवकाश कैसा। देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपने पूर्व घोषित निर्णय, लोकमत उसकी आस्था और उसके विश्वास का क्या करता है। वैसे लोकमत तो निर्विवाद रूप से यही है कि कथित विवादित कही जाने वाली भूमि राम की जन्मभूमि है। राम की ही होगी…! वहां राम पैदा हुए थे। विराजमान है और विराजमान रहेंगे।
लेखक:
डॉ. राम अवतार पांडेय
वरिष्ठ अधिवक्ता
पूर्व अध्यक्ष (दी सेंट्रल बार एसोसिएशन, वाराणसी)