अनिता चौधरी
राजनीति संपादक

महाराष्ट्र में दो दिन पहले राज्यपाल भगत सिंग कोश्यारी ने सुबह-सुबह अचानक भाजपा के देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी के अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। राज्यपाल के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना और एनसीपी की याचिका पर राज्यपाल को फैसले को पलटने से तो साफ़ इंकार कर दिया है। लेकिन इस सरकार बनाने संबंधी तमाम दस्तावेज़ तलब कर लिए है। सोमवर साढ़े दस बजे सुप्रीम कोर्ट में इस पूरे मामले पर विस्तृत सुनवाई हुई । सभी पक्षों ने अपनी दलीलें रखी । फैसला सुरक्षित रख लिया गया है । सुप्रीम कोर्ट अब तमंगलवार 10.30 बजे अपना फैसला सुनाएगी । महाराष्ट्र के सत्ता संग्राम आने वाले सुप्रीम कोर्टे के इस फैसले का सभी टकटकी लगाए इंतेज़ार कर रहे हैं।

यह पहला मौका नहीं है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का मामला आया हो। पिछले बीस साल में कई बार कई राज्यों में रातो रात सरकार गिराने और बनाने का खेल हुआ है। इनमें कई मामले सुप्रीम कोर्ट में आए है। इन सभी में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को उनकी संवाैधानिक ज़िम्मेदारी की याद दिलाई है। यूपी, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक और झारखंड के मामले भी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पहुंच चुके हैं। आइए, यहां जानते हैं कि सुप्रीम में पहले ऐसे मामले कब-कब सुनवाई के लिए आए और उन पर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला रहा।

  1. उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार की बर्ख़ास्तगी ।
    बात 1998 की है। लाकसभा चुनाव चल रहे थे। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने रात को अचानक कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर लोकतात्रिंक कांग्रेस के नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया। कल्याण सिंह को 225 का समर्थन मिला और जगदंबिका पाल को 196 वोट ही मिल पाए।
  2. झारखंड में मुंडा को बहुमत, सोरेन यको दिलाई गई शपथ
    2005 में भी सुप्रीम कोर्ट में ऐसा ही मामला देखा गया था। तब एनडीए के अर्जुन मुंडा के बहुमत का दावा करने के बावजूद जेएमएम के शिबू सोरेन को शपथ दिला दी गई। इसके बाद कोर्ट ने सदन में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दिया। तब सैयद सिब्ते रज़ी राज्यपाल थे। उनके इस क़दम से उनकी काफ़ी किरकिरी हुई थी।
  3. उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार डगमगाई
    हरीश रावत सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया। कोर्ट से फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की गई, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हरीश रावत ने फिजिकल डिविजन के जारिए सदन में अपना बहुमत साबित किया।
  4. गोवा में कांग्रेस सोती रही, भाजपा ने सरकार बनाई
    कांग्रेस ने बहुमत और सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने के बावजूद मनोहर पर्रिकर ने शपथ ली। पर्रिकर ने 21 विधायकों के समर्थन का दावा किया। पर्रिकर से बहुमत साबित होने तक कोई भी नीतिगत फैसला नहीं लेने को कहा गया। कोर्ट ने यह कहते हुए फ्लोर टेस्ट की मांग खारिज कर दी कि जब कोई पार्टी बहुमत साबित करने की स्थिति में नहीं होती है, तभी इसका सहारा लिया जाता है।
  5. कर्नाटक में बहुमत न होने के बावजूद येदियुरप्पा की शपथ
    कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई। कांग्रेस और जेडीएस ने चुनाव पश्चात गठबंधन कर लिया। इसके तुरंत बाद राज्यपाल ने बीजेपी के येदियुरप्पा को शपथ दिलाई और बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया। कांग्रेस और जेडीएस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई। सुप्रीम कोर्ट ने 3 दिन में फ्लोर टेस्ट कराने को कहा। सदन में बहुमत न मिलता देख येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा।
  6. अब महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना का दावा है कि बहुमत उनके पास है। ऐसे में इस मसले को सुलझाने के लिए फ्लोर टेस्ट का विकल्प ही एक बड़ी संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजित पवार का पक्ष भी सुना। कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र और राज्य सरकार से भी जवाब मांगा है। सर्वोच्च अदालत आज इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट यह फैसला इस तरह के मामलों में आगे के लिए नज़ीर बन सकता है।
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