उनकी हत्या से किसे फायदा होना था ?

डा. रजनीकांत दत्ता
पूर्व विधायक

30 जनवरी 1947 को सायंकाल लगभग 5:15 पर नाथूराम विनायक गोडसे नामक व्यक्ति ने पिस्तौल से गोली मारकर महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी थी। इस तथ्य पर किसी को शक नहीं है, लेकिन कुछ प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं

20 जनवरी 1947 को बिरला मंदिर परिसर, जहां बापू प्रतिदिन सायंकाल प्रार्थना सभा करते थे तभी उन्हें मार डालने के लिए पूरी तैयारी के साथ बम विस्फोट किया गया था। यह देशवासियों का सौभाग्य था कि वह बच गए। इस सिलसिले में मदनलाल पाहवा नामक विभाजन से पीड़ित एक रिफ्यूजी पकड़ा गया और उसने इस षड्यंत्र में शामिल लगभग सभी लोगों के नाम सकूनत सहित जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों को बताया, जिसे उन्होंने मुंबई पुलिस को सूचित किया। मुंबई पुलिस ने इस सूचना को गंभीरता पूर्वक न लेते हुए कोई कार्यवाही नहीं की। कहते हैं कि गांधी हत्याकांड के 3 दिन पूर्व पूना के वरिष्ठ उच्च पद पर नियुक्त वरिष्ठ सरकारी दंपत्ति से इस बात का जिक्र किया गया था कि 3 दिन पश्चात दिल्ली में गांधीजी की हत्या करने के षड्यंत्र का ताना-बाना बुना जा चुका है। उसके बाद महाराष्ट्र में भयंकर उथल-पुथल होने की आशंका है। आप इतने बड़े अफसर हैं और हम लोग के नाम सूचना देने वाले के रूप में आम न हो जाए इसीलिए आपको यह सूचना दे रहे हैं । उन्होंने भी महाराष्ट्र और दिल्ली के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी किंतु किसी ने भी इसे गंभीरता पूर्वक नहीं लिया जबकि 20 जनवरी को गांधी जी को मारने के लिए असफल प्रयास हो चुका था। 30 जनवरी से 2 दिन पूर्व यानी कि 28 जनवरी को बापू यह बात सार्वजनिक कर चुके थे कि कांग्रेस एक आंदोलन था उसका उद्देश्य आजादी था जो अब पूरा हो चुका है। इसलिए इस आंदोलन को कभी एक राजनीतिक पार्टी न बनने दिया जाए और कांग्रेस के नाम पर गठित सभी इकाइयों को भंग कर आने वाले चुनाव के लिए विभिन्न विचारधाराओं वाली अखिल भारतीय नई पार्टियों का गठन किया जाए।

कहते हैं कि जो कांग्रेस नेता इस आंदोलन में शामिल थे, वे इसे गुडविल बनाकर भारत की सत्ता पर जनतांत्रिक तरीके से काबिज होने की कूवत रखते थे। उनकी उम्मीदों पर यह एक कुठाराघात था और वे इसके लिए गांधीजी को दोषी मानने लगे थे। उनसे येन केन प्रकारेण छुटकारा चाहते थे।

बंटवारा मेरी लाश पर होगा

(भाग 2) आजादी के पूर्व बापू कहा करते थे कि देश का बंटवारा मेरी लाश पर होगा, लेकिन जब 3 जुलाई और 4 जुलाई को लेडी माउंटबेटन के ब्लेकमेल की धमकी से डर कर ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित भारत विभाजन के नक्शे पर इंडियन नेशनल कांग्रेस के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में पंडित नेहरू ने बिना बापू और कांग्रेस कार्यसमिति से राय किए स्वीकृति के हस्ताक्षर कर दिए थे। ऐसा ही मोहम्मद अली जिन्ना ने भी किया ।

मुझे पीएम बनाया तो बंटवारा नहीं होगा बापू- जिन्ना

जब गांधी जी को यह पता लगा तो वह बहुत ही दुखी और खिन्न हुए और उन्होंने तुरंत नेहरू की जगह जिन्ना को बुलाकर पूछा कि तुमने क्या किया? क्या चाहते हो? तो जिन्ना बोला कि बाबू अब तो गलती हो ही गई है लेकिन अगर आप वादा करें कि मुझे अविभाजित भारत का प्रधानमंत्री बनाएंगे तो मैं एफिडेविट देकर स्वीकृति दे दूंगा। और भारत विभाजन नहीं होगा ।जब यह बात नेहरू को पता लगी तो वह बापू से बोला कि जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री तो क्या मैं उसे भारत के मंत्रिमंडल का चपरासी तक न बनाऊं ? जब जिन्ना को यह बात पता चली तो वह बौखला गया और उसने डायरेक्ट एक्शन का ऐलान कर दिया। फलस्वरूप देश दो टुकड़ों में बट गया नेहरू से महात्मा गांधी नाराजगी का यह भी एक बहुत बड़ा कारण था।

पीएम नहीं बना तो तोड दूंगा काग्रेस-नेहरू

फिर,कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग बुलाई गई कि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा, तो 15 सदस्यों में से 14 ने सरदार पटेल के नाम की प्रस्तावना की और सिर्फ एक ने नेहरू की। लगभग यह तय हो चुका था कि सरदार पटेल भारत के भावी प्रधानमंत्री होंगे इस बात का पता लगा तो महात्मा गांधी जी से जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि अगर मुझे भारत का प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो मैं कांग्रेस तोड़ दूंगा। ब्रिटिश पार्लियामेंट और सरकार यह पहले ही सुनिश्चित कर चुकी है कि विभाजित भारत का प्रधानमंत्री मैं ही हूंगा। इस ब्लेकमेल से बाध्य होकर महात्मा गांधी ने नेहरू को प्रधानमंत्री और सरदार पटेल को उपप्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा और ऐसा हुआ भी। और इस घटना से गांधीजी नेहरू से और नाराज हो गए।

कहते हैं इसी कारण 15 अगस्त 1947 को रात 12:00 बजे आजादी समारोह में जब नेहरू जी ऑल इंडिया रेडियो पर भारत के स्वतंत्र होने की घोषणा कर रहे थे तो अपनी नाराजगी दिखाते हुए वहां गांधीजी नहीं गए बल्कि नोवाखली चले गए। दिल्ली लौटने के बाद भी न तो कांग्रेस के किसी ऑफिस या सरकारी भवन में ठहरे बल्कि रहने के लिए बिरला मंदिर चले गए। 30 जनवरी 1948 को भी रोज की भांति बापू को पांच बजे शाम उन्हे बिरला मंदिर स्थित परिसर सभा स्थल पर पहुंच जाना था। उस दिन उन्हें पहुंचने में विलंब हुआ क्योंकि सरदार पटेल से लेकर 2 दिन पूर्व कांग्रेस को राजनीतिक पार्टी न।बनने देने की प्रक्रिया पर वार्ता हो रही थी।

बापू को उनकी शिष्या मनु ने कहा कि सभा कार्यक्रम में 12 मिनट का विलंब हो चुका है तो बापू सरदार पटेल से वार्ता समाप्त कर अपनी दोनों बाहें मनु और आभा के कंधों पर हाथ रख सभा स्थल की तरफ चल पड़े। जैसे ही वह मंच तक पहुंचने वाले थे तभी अचानक नाथूराम गोडसे भीड़ से निकला उसने बापू का नमन किया। इसके पहले कि मनु कुछ बोले तत्काल उसने मनु को धक्का दिया और बापू के सीने में गोलियां दाग दीं।

गोली लगने के बाद 40 मिनट तक जीवित रहे बापू

कहते हैं कि गोली लगने के 40 मिनट बाद तक बापू जीवित रहे लेकिन बजाय इसके कि उन्हें उपचार के लिए वेलिंगटन हॉस्पिटल (जो अब राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है) ले जाया जाता उसकी जगह बापू को बिरला भवन के एक कमरे में फर्श पर लेटा दिया गया। बापू होश में थे, उन्होंने पानी मांगा और बिना डॉक्टर की सलाह के उन्हें पानी पिला दिया गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

यह एक षडयंत्र की ओर इशारा करता है

20 जनवरी 1948 को जब उन पर जानलेवा हमला हुआ था तो उनकी सुरक्षा का सर्वश्रेष्ठ प्रबंध करते हुए ऐसा षड्यंत्र दोबारा न हो, क्यों नहीं गुप्तचर तंत्र सक्रिय किए गए और मदनलाल पाहवा से यह जानकारी मिलने के बाद भी क्यों नहीं 30 जनवरी के पहले षड्यंत्रकारियो को गिरफ्तार किया गया? नाथूराम गोडसे विष्णु करकरे घटना के 3 दिन पहले पुरानी दिल्ली स्टेशन के यात्रियों के लिए आरक्षित कमरे में रहे । 28 को ग्वालियर गए वहां से पिस्तौल लेकर आए और बेखौफ चांदनी चौक में घूमते रहे। 30 जनवरी की शाम पुरानी दिल्ली स्टेशन से बिरला मंदिर पहुंचे प्रार्थना स्थल की भीड़ में शामिल हुए क्यों नहीं प्रवेश द्वार में उनकी चेकिंग हुई? क्यों नहीं उन तक पहुंचने की उनकी जद्दोजहद को यदि भीड़ में बापू की सुरक्षा के लिए सरकार की तरफ से लोग थे तो उन्होंने इन्हें क्यों नहीं रोका ? फिर कैसे वह गांधीजी के सामने पहुंचे और मनु को धक्का मारा और गांधी जी को गोली मार दी। यह किसी बहुत बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा करता है।

तीसरी गोली किसकी थी ?

नाथूराम गोडसे ने न्यायाधीश के सामने अपने बयान में कहा कि उसने गांधी जी पर 2 गोलियां चलाई थी फिर तीसरी गोली किसने चलाई ? यही नहीं हिंदू अखबार और न्यूयॉर्क टाइम में यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि गांधी जी को 4 गोलियां मारी गई थी भगवान जाने सच क्या है?

दो गोलियां तो बापू के शरीर के आर पार निकल गई थी और एक गोली शरीर के अंदर रह गई फिर क्यों शरीर के बाहर निकली कई इन दो गोलियों के छर्रे को ढूंढ निकाला गया ? क्या इनकी फॉरेंसिक जांच हुई कि यह गोलियां क्या नाथूराम गोडसे की गन से चली थी ? तीसरी गोली क्या राइफल्स से चली थी ? मनु और आभा जिनके कंधे पर हाथ रखकर गांधीजी सभा स्थल पर आए थे और वे इस घटना की प्रत्यक्षदर्शी थी किसके कहने पर प्रॉसीक्यूशन ने इस केस में विटनेस नहीं बनाया । बापू की लाश का पोस्टमार्टम क्यों नहीं हुआ?

इनकी मौतों का जिम्मेदार कौन ?

कांग्रेस की राजनीतिक कार्यशैली का यह पहला उदाहरण नहीं है नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गुमशुदा हो जाना आज तक रहस्य है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर में , लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में , ललित नारायण मिश्रा की बम विस्फोट में विमान दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की और राजेश पायलट की राजस्थान की गवर्नमेंट बस-जीप भिड़ंत में हुई मौत आज तक एक अनसुलझा रहस्य है। कौन है इसका जिम्मेदार? यह तो ऐसे ही हुआ कि चोर ने चोरी की और खुद को बचाने के लिए भीड़ के सामने चोर चोर चिल्लाते हुए ऐसे चोर की काल्पनिक बात करने लगा जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। क्योंकि वह खुद चोर है। मैं सरकार से अनुरोध करूंगा कि संपूर्ण घटनाक्रम की सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम द्वारा बापू के हत्याकांड का राज पता किया जाए। बापू के चरणों में शत शत नमन। 1948 में मेरी उम्र लगभग 10 वर्ष थी तब से लेकर आज तक जो सुना पढा और जैसी लोगों से चर्चा हुई ,आज उसी के अनुसार इस संपूर्ण घटनाक्रम को आपके सम्मुख रख रहा हूं।

वंदे मातरम

डा. रजनीकांत दत्ता
पूर्व विधायक

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