पदम पति शर्मा 

नई दिल्ली । राजनीति के पुरोधा घाघ एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बिछाए जाल मे खुद को फंसी महसूस करने लगी है शिवसेना। पवार ने शिवसेना को महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री बनाने का चारा फेंक कर भाजपा से ही नहीं एनडीए से भी नाता तोडने की शर्त रखी। 

सीएम पद को लेकर लार टपका रहे सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सब कुछ करने को तैयार नजर आए। कांग्रेस का साथ पाने के लिए 24 नवम्बर की अपनी अयोध्या यात्रा तक रद् कर दी। मुसलमानो को पांच प्रतिशत आरक्षण देना भी मान लिया और वीर सावरकर जैसे अपने पितृ पुरुष को भारत रत्न देने की मांग से भी पीछे हट गयी शिवसेना। 

राजनीति के शातिर खिलाड़ियों से भरी काग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना से उसकी अपनी विचारधारा को अरब सागर मे डुबवा देने के बाद सरकार बनाने के मसले पर अपने साथ खींच लिए। 

संजय राउत बतौर शिवसेना कल तक 170विधायकों के साथ होने और जल्दी ही सरकार बनाने के  लगातार दावे कर रहे थे, आज उनके सुर मंद पड गये। केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले की तीन साल और दो साल क्रमशः भाजपा और शिवसेना के सीएम पद की पेशकश पर झट से राउत ने हामी भर ली। 

शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को किसानों के मुद्दे पर संसद के बाहर उसके सांसदों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किया। यही नही दोनो सदन में उसके सांसद विपक्ष में बैठे। इसके बाद एनडीए के साथ शिवसेना किस मुह से जाएगी। 

उधर राज्य सभा के 250वें  सत्र को संबोधित करने के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी ने एनसीपी की सदन मे मर्यादित आचरण की तारीफ करते हुए जो गुगली फेक दी उससे शिवसेना की नींद जरूर उड गयी होगी। 

यह संकेत भी मिलने लगे हैं कि कहीं भाजपा और एनसीपी सरकार बनाने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं ? क्योंकि एक दिन पहले पवार ने दावा किया था कि सरकार पूरे पांच साल चलेगी लेकिन उन्होने शिवसेना का नाम नहीं लिया था।

उधर शिवसेना नेता संजय राउत ने सोमवार की शाम एनसीपी नेता शरद पवार से मुलाकात की। मुलाकात के बाद संजय राउत ने सरकार गठन के सवाल पर कहा कि “सरकार बनाने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है, जिनकी जिम्मेदारी थी वो भाग गए, लेकिन हमें विश्वास है कि जल्द ही हम सरकार बनाएंगे।” बता दें कि इससे पहले शरद पवार ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की  इस मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए शरद पवार ने कहा कि उनकी सोनिया गांधी से महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। पवार ने बताया कि मौजूदा राजनैतिक हालात पर चर्चा हुई और दोनों पार्टियों में रणनीतिक चर्चा जारी है। वह हालात पर नजर बनाए हुए हैं।

कुल मिला कर शिवसेना की हालत फिलहाल दयनीय लग रही है। वैसे राजनीति मे कब क्या हो जाय, कुछ नहीं कहा जा सकता। फिर भी यह तो कहना ही होगा कि चाहे तीन दशक की साथी भाजपा हो या उसके अपने विधायक और समर्थक सभी उससे किस कदर खफा हैं, यह बताने की जरूरत नहीं । उद्धव राजनीति की कितनी कच्ची लोई हैं, यह भी राजनीतिक पंडित समझ चुके है। उद्धव की उनके पिता से तुलना सोची भी नहीं जा सकती। कहाँ बाल ठाकरे थे कि एक आवाज पर महाराष्ट्र हिल जाया करता था। भाजपा के साथ उनके कार्यकाल में जब भी सरकार बनी, सत्ता का रिमोट कंट्रोल उनके हाथ में बना रहा। दूसरी ओर बेटा खुद राज्य का मुखिया बनने की अंधी दौड़ में पिता से प्रदत्त पूँजी भी लुटा बैठा।

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