आज (12 सितंबर) अनंत चतुर्दशी है, जिसे भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चौदस के दिन मनाया जाता है। जानकारों की मानें तो इस दिन व्रत रखने और कथा पाठ करने से कई गुना पुण्य मिलता है। पुराणों के मुताबिक, वनवास के दौरान पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस का व्रत रखा था, जिसके बाद ही उनके कष्ट खत्म हुए थे। वहीं, राजा हरिश्चंद्र को सभी दिक्कतों से मुक्ति भी यही व्रत रखने के बाद मिली थी।
यह है पौराणिक मान्यता: पौराणिक कथाओं के जानकारों की मानें तो आदिकाल से अनंत चतुर्दशी की मान्यता काफी ज्यादा है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति यह व्रत रखता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही, उसे कई गुना पुण्य भी मिलता है।
पांडवों ने भी रखा था यह व्रत: किवदंती है कि कौरवों से जुए में हारने के बाद पांडव 14 साल का वनवास काट रहे थे। उस दौरान उन्हें वन में तरह-तरह के कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। एक ऋषि ने उन्हें अनंत चौदस का व्रत रखने की सलाह दी, जिसके बाद ही उनकी समस्याएं खत्म हुई थीं।
राजा हरिश्चंद्र का भी बेड़ा हुआ पार: कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र की परीक्षा के दौरान सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को तमाम तरह के कष्टों का सामना करना पड़ा था। राजपाट छोड़ने के बाद उन्हें चांडाल का दास बनना पड़ गया था। किवदंती है कि उन्होंने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा था, जिसके बाद उनके कष्ट दूर हुए थे।
यह है अनंत चौदस की कथा: पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन समय में सुमंत नाम के ऋषि थे। उनकी पत्नी दीक्षा ने सुशीला नाम की बच्ची को जन्म दिया। कुछ समय बाद दीक्षा का देहांत हो गया और ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया। बताया जाता है कि वह महिला बच्ची को काफी परेशान करती थी। सुशीला का विवाह कौण्डिन्य ऋषि से हुआ था, जो निर्धन थे। एक दिन सुशीला और उनके पति ने कुछ लोगों को अनंत भगवान की पूजा करते देखा और उनके व्रत के महत्व व पूजन की विधि पूछी।
जब नाराज हो गए भगवान अनंत: बताया जाता है कि सुशीला की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उनकी आर्थिक स्थिति ठीक कर दी, लेकिन कौण्डिन्य को लगा कि सब कुछ उनकी मेहनत से हो रहा है। एक बार अनंत चतुर्दशी के दिन जब सुशीला पूजा करके लौटीं तो कौण्डिन्य ने उनके हाथ में बंधा रक्षा सूत्र उतरवा दिया, जिससे भगवान अनंत नाराज हो गए और ऋषि दोबारा निर्धन हो गए।
चौदह साल व्रत रखने पर प्रसन्न हुए भगवान: कहा जाता है कि एक ऋषि ने कौण्डिन्य को 14 साल तक अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने के लिए कहा। कौण्डिन्य ने ऐसा किया, जिसके बाद भगवान विष्णु (अनंत) प्रसन्न हो गए और सुशीला के परिवार की स्थिति सुधर गई।
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