मुंबई:  महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी के बीच तल्खी इस कदर बढ चुकी थी कि यह लगा ही नहीं कि इनके बीच तीन दशक का गठबंधन है। शिवसेना के प्रवक्ता राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने तो भाजपा को कोसने में सारी हद पार कर दी थी। लेकिन बीते दो तीन दिनों में परिस्थितियां तेजी से बदली और एनसीपी व कांग्रेस के साथ शिवसेना जो अपने मुख्यमंत्रित्व में सरकार बनाने का सपना संजोए बैठी थी, वह जब बिखरता सा नजर आने लगा तब उसका सुर बदल गया। सोमवार 18 नवम्बर से आरंभ संसद के शीतकालीन सत्र के प्रथम दिन दोनों सदन मे विपक्ष के लिए आवंटित सीट पर उसके सांसद बैठे। लेकिन वही शिवसेना अब सवाल पूछ रही है कि हमको एनडीए से किसके कहने पर बाहर किया गया ?

मंगलवार को इसका जायजा शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय से लग जाता है। शिवसेना ने बीजेपी से अपने संपादकीय में पूछा है कि हमें एनडीए से निकालने वाले तुम कौन हो ? 
सामना मे लिखा है कि ‘एनडीए’ के जन्म और प्रसव पीड़ा को शिवसेना ने अनुभव किया है। भारतीय जनता पार्टी के बगल में जब कोई भी खड़ा नहीं होना चाहता था और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद जैसे शब्दों को देश की राजनीति में कोई पूछता भी नहीं था तब और उसके पहले भी जनसंघ के जमाने से शिवसेना ने बीजेपी का साथ दिया था

संपादकीय में कहा गया एनडीए से शिवसेना को किस आधार पर बाहर निकाला गया ? यह अहंकारी और मनमानी राजनीति के अंत की शुरुआत है। एनडीए में से शिवसेना के नहीं होने की घोषणा की गई। दिल्ली के भाजपा नेताओं ने किस आधार पर और किसकी अनुमति से यह घोषणा की ? ‘यात्रा में जल्दबाजी दुर्घटना को निमंत्रण देती है’ इस प्रकार की जल्दबाजी इन लोगों के लिए ठीक नहीं है।’

हंसी आती है इस संपादकीय से। सब कुछ शिवसेना ने किया और अब पूछ रही है कि हमको क्यों निकाला ? लगता है कि वह भाजपा के साथ फिर जुडने की जुगत लडा रही है और यह संपादकीय इसी क्रम में है।

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