‘नागरिकता संशोधन बिल’

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली: मोदी सरकार का बहुचर्चित नागरिकता संशोधन बिल आज लोकसभा में पेश होने जा रहा है। इस बिल को लेकर कई तरह की आशंकाएं और कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या नागरिकता संशोधन बिल से भारत हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है? क्या नागरिकता संशोधन बिल देश में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देगा? ऐसे सवाल एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने उठाए हैं।

ओवैसी ने क्या कहा है?

अपने वोट बैंक को हमेशा ध्यान में रख कर समाज मे नफरत फैलाने वाले बयान देने में कुख्यात ओवैसी ने कहा है, ‘’ये बिल संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के खिलाफ है। नागरिकता को लेकर एक देश में दो कानून कैसे हो सकते हैं ? सरकार धर्म की बुनियाद पर ये कानून बना रही है। सरकार देश को बांटने की कोशिश कर रही है। सरकार फिर से टू नेशन थ्योरी को बढ़ावा दे रही है। सरकार चाह रही है कि मुसलमान देश में दोयम दर्जे का नागरिक बन जाए।’’

लेकिन ओवैसी यह भूल जाते हैं कि भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां मुस्लिम समुदाय को समानता का अधिकार मिला हुआ है। उसके दोयम दर्जे के होने का सवाल ही नहीं उठता। अपनी राजनीतिक दुकानदारी चलाने के लिए आप कुछ भी कहते रहिए।

शशि थरूर ने क्या कहा ?

इस बिल को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने संसद परिसर में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि विधेयक असंवैधानिक है, क्योंकि विधेयक में भारत के मूलभूत विचार का उल्लंघन किया गया है। वो लोग जो यह मानते हैं कि धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्धारण होना चाहिए। इसी विचार के आधार पर पाकिस्तान का गठन हुआ। हमने सदैव यह तर्क दिया है कि राष्ट्र का हमारा वह विचार है जो महात्मा गांधी, नेहरूजी, मौलाना आजाद, डा. आंबेडकर ने कहा कि धर्म से राष्ट्र का निर्धारण नहीं हो सकता।’’

विपक्ष क्यों कर रहा है इस बिला का विरोध?

विपक्ष का दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया। इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है। इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के ‘असम समझौते’ को अमान्य कर देगा।

क्या है नागरिकता संशोधन बिल?

भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे ‘नागरिकता अधिनियम 1955’ नाम दिया गया। मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे ‘नागरिकता संशोधन बिल 2016’ नाम दिया गया है।

नागरिकता संशोधन बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध यानी कुल 6 समुदायों के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसमें मुसलमानों का जिक्र नहीं है। नागरिकता के लिए पिछले 11 सालों से भारत में रहना अनिवार्य है, लेकिन इन 6 समुदाय के लोगों को 5 साल रहने पर ही नागरिकता मिल जाएगी। इसके अलावा इन तीन देशों के 6 समुदायों के जो लोग 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हों, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

एनआरसी से क्यों जोड़ा जा रहा है नागरिकता संशोधन बिल?

बता दें कि एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स अभी सिर्फ असम में लागू हुआ है। लेकिन सरकार इसे पूरे देश में लागू करना चाहती है। असम में 19 लाख लोगों का नाम एनआरसी की फाइनल लिस्ट में नहीं आया। इसमें मुसलमानों के अलावा दूसरे समुदाय के लोग भी थे। तो अब सवाल ये है कि क्या एनआरसी में छूटे दूसरे धर्मों के लोगों के लिए ही सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक ला रही है?

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