दुष्यंत ने एक बारगी तो हरियाणा की राजनीति को हिला दिया है
दादा-दादी के तिरस्कार – अपमान ने विवश किया था जेजेपी पार्टी बनाने पर
उस उपचुनाव में ही मैंने पूत के पग पालने में देख लिए थे
अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक
हरियाणा में नई सरकार बन चुकी है और अब मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री है तो चंद्र मोहन विश्नोई के बाद एक बार फिर हरियाणा की जनता को भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टी इनलो के संस्थापक चौधरी देवीलाल ताऊ के प्रपौत्र ; हरियाणा के उप मुख्यमंत्री और ,जेजेपी के संस्थापक दुष्यंत चौटाला दिल्ली में अपना बिगुल बजाने के लिए तैयार हो चुके हैं। दुष्यंत अपने दिल्ली निवास स्थान 18 जनपथ पर मंगलवार को पहुँचे। जोरदार स्वागत अपेक्षित था भी।
एक ऐसा राजनेता जो अभी तक की राजनीति में सबसे कम उम्र का उप मुख्यमंत्री होगा, जिसने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2014 में शुरू की और महज़ 26 साल की उम्र में हिसार से सांसद बना। सबसे कम उम्र के सांसद के रूप में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में जिसका नाम भी दर्ज है।
दुष्यंत चौटाला के व्यक्तित्व की अगर बात करे तो स्कूल के समय से ही इनमें जीतने का जबरदस्त ज़ज्बा था, खेल से जबरदस्त लगाव, स्कूल के दिनों में ही मुक्केबाज़ी में इन्हें स्वर्ण पदक मिला, फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी रहे और हॉकी में दीवार की मानिन्द गोलकीपर, वैसे इनकी मां नैना चौटाला भी राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज़ रही हैं।
देवीलाल चौटाला के प्रपौत्र होने की वजह से राजनीति खून में है। मगर ज़मीन की राजनीति कब परिवार में घुस गई और पारिवरिक कलह में तब्दील होकर एक परिवार दो टुकड़ों में बंटा पता ही नहीं चला। दरअसल इस राजनीति के बीज तभी पड़ गये थे जब दादा ओम प्रकाश चौटाला और पिता अजय चौटाला अध्यापक नियुक्ति घोटाले में जेल गए और इनलो की जिम्मेदारी चाचा अजय चौटाला के कंधों पर आयी।
पार्टी को खड़ा रखने में दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला ने पूरी ज़िंदगी खपा दी थी इसलिए उनके समर्थकों की संख्या बड़ी थी, इधर पार्टी कार्यकर्ता अभय चौटाला के काम काज से खुश नहीं थे। पिता और दादा के जेल में होने से दुष्यंत 26 साल की उम्र में 2014 में लोकसभा चुनाव लड़े और जीत गए। 2014 में ही मां नैना चौटाला भी विधानसभा चुनाव लड़ी और बतौर विधायक जीत कर आईं। मगर 2014 के चुनाव में अभय चौटाला और उनकी पत्नी जीत नहीं दर्ज कर पायीं। खटास वहीं से शुरू हुई जो सात अक्टूबर 2018 को सोनीपत में आइएनएलडी की रैली में परिवार की कलह खुल कर सामने आ गयी। दो हफ़्ते की परोल पर ओपी चौटाला भी जेल से बाहर आए थे और वो रैली में मंच पर मौजूद थे। उस भीड़ के एक बड़े हिस्से ने अभय चौटाला के ख़िलाफ़ नारेबाजी शुरू कर दी। दोष भतीजे पर लगाया गया। ये वही भतीजा था जिसकी दो साल पहले शादी जब हुई थी तो अपने शादी में दुष्यंत चाचा अभय चौटाला को कंधे पर लेकर नाचे थे। मगर आज चाचा को भतीजे से साजिश की बू आ रही थी। अभय चौटाला ने इसकी शिकायत पैरोल पर छूटे ओ. पी चौटाला से की। इसका नतीजा यह हुआ कि दादा ओपी चौटाला ने दुष्यंत और उनके अनुज दिग्विजय को पार्टी से निकाल दिया और साथ में आइएनएलडी के युवा मोर्चे को भी भंग कर दिया, जिसका नेतृत्व दिग्विजय सिंह चौटाला कर रहे थे। फिर काफी पारिवारिक झगड़े के बाद दुष्यंत ने अपनी नई पार्टी जननायक जनता पार्टी का गठन किया। पार्टी के जींद उप चुनाव के लिए गठबंधन को लेकर दुष्यंत चौटाला की दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात भी हुई। उसी वक़्त चुनाव प्रचार के लिये ओ.पी चौटाला को पैरोल पर बाहर आना था। मगर कोर्ट ने अर्जी नामंज़ूर कर दी।
चाचा अभय चौटाला और दादा ओ.पी चौटाला ने एक बार फिर आरोप लगाया कि पोते दुष्यंत ने उनका जेल से बाहर आने से रुकवाया है यही नहीं दादा ने पोते को देशद्रोही भी कह डाला। इधर खाट पर पड़ी दादी ने श्राप तक दे डाला कि ऐसा पोता मर जाए तो अच्छा।
इस माहौल को देखते हुए 2018 में पारिवारिक कलह की वजह से दशकों पुरानी जमी जमाई पार्टी को छोड़ कर दिसंबर में जन नायक जनता दल के नाम से नई पार्टी बना कर नए कलेवर के साथ नया आगाज़ किया और महज़ 11 महीने पुरानी पार्टी ने पूरे हरियाणा की राजनीति को हिला दिया। फिर वो हुआ जो किसीने कभी सोचा भी न था। “बच्चा पार्टी” से मजाक बनने वाली जेजेपी ऐसी किंगमेकर बनी कि महज़ 10 सीटों के साथ सरकार में भागीदारी ऐसी की कि क्या कहने, उप मुख्यमंत्री का पद तो मिला ही साथ में हरियाणा मंत्रिमंडल में दो मंत्री और दिल्ली में जजपा की आवाज़ बुलंद करने के लिए एक राज्यसभा से चुना हुआ राज्यमंत्री। दुष्यंत चौटाला राजनीति में भले उम्र में छोटे हैं , भारतीय राजनीति के नए खिलाड़ी हैं मगर युवा जोश से भरपूर एकदम मजे हुए। ज़ज्बा ऐसा कि पत्थर भी न हिला सके और तूफान भी नहीं मिटा सकें।
दुष्यंत चौटाला की अगर बात करें तो जींद चुनाव के दौरान इनसे मेरी पहली मुलाकात हुई थी। था उप चुनाव मगर मैदान में बड़े -बड़े दिग्गज़ थे ,उनमें से एक दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय भी थे। जन नायक जनता पार्टी महज़ चंद महीनों की नई नवेली पार्टी थी जिसे 29 साल के दुष्यंत ने रातों रात महज़ चंद समर्थकों के साथ बनायी थी। लोग बच्चा पार्टी कह कर मजाक उड़ा रहे थे मगर किसी भी बात की परवाह किये बिना दुष्यंत ये लड़ाई पूरे ज़ज्बे और पूरी शिद्दत के साथ लड़ रहे थे। हालांकि जींद उप चुनाव में जीत भाजपा की हुई थी मगर दूसरे स्थान पर दिग्विजय के आने से जजपा ने सबको चौंका दिया था। जींद इलेक्शन के दौरान हालांकि मैं गयी तो थी काँग्रेज़ को कवर करने मगर दुष्यंत की बोल्ड पर्सनाल्टी मुझे बार बार उनका इंटरव्यू लेने के लिए मज़बूर कर रही थी।
उस पूरे इंटरव्यू के दौरान दुष्यंत की जमीनी मगर बेबाकी भरे अंदाज़ चौधरी देवीलाल की बार बार याद दिला रहे थे। देवीलाल ताऊ की तरह ही बिना किसी स्वार्थ के उनके चाहने वालों की उस समय जबरदस्त भीड़ थी। वो कहते हैं ना पूत के पांव पालने में ही नज़र आते है। जींद उप चुनाव के बाद ही राजनीति और मीडिया के गलियारों में तो दुष्यंत की चर्चाएं गरम हो ही चुकी थी, हरियाणा की जनता को भी दुष्यंत में अपना नया नेता दिख रहा था जो बिल्कुल चौधरी देवी लाल ताऊ की तरह ज़मीन से जुड़ा हुआ था। और मैं बिलकुल समझ गयी कि दुष्यंत राजनिति में नि: संदेह लंबी रेस का घोड़ा है। मगर वह राकेट सरीखे तेज तर्रार होंगे इसका अंदाज़ा बिल्कुल भी नही था।
दुष्यंत चौटाला ने ये साबित कर दिया कि भले ही राह में लाख अड़चने हों मगर जुनून हो तो मुश्किल से मुश्किल मंज़िल भी आसान बन जाती है। उंसके बाद दुष्यंत से दिल्ली में मिलना हुआ। भले दुष्यंत की जजपा और दिग्विजय जींद हार गए थे मगर ज़ज़्बा और जूनन जोश से भरा हुआ था। शपथ ग्रहण के बाद मगलवार दोपहर 12 बजे हरियाणा के उप मुख्यमंत्री और ,जेजेपी के संस्थापक दुष्यंत चौटाला दिल्ली में अपना बिगुल बजाने के लिए तैयार। दुष्यंत अपने दिल्ली निवास स्थान 18 जनपथ पर मंगलवार को पहुँचे हैं। स्वागत की तैयारी जबरदस्त है। अब देखना यह होगा कि दिल्ली में “जन नायक जनता दल की हुंकार किस तरह से आवाज़ बन कर रायसीना और लोककल्याण मार्ग को कितना प्रभावित करती है ? समय देगा इसका जवाब।