आतंकियों के दहशत फैलाने वाले पोस्टर के जवाब में सरकार ने विज्ञापन छपवाकर कहा, जरा सोचिए

अंजन कुमार चौधरी

नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर सरकार ने शुक्रवार को स्थानीय अखबारों में पूरे पन्ने का एक विज्ञापन देकर लोगों से गुजारिश की है कि वे दुकानें खोलें और राज्य में सामान्य गतिविधियों की शुरुआत होने दें। विज्ञापन में राज्य के लोगों से पूछा गया है कि अगर दुकानें बंद रहेंगी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट सामान्य रूप से नहीं चलेंगे तो आखिरकार उससे फायदा किसे मिलेगा? बता दें कि इससे पहले जब स्थानीय लोगों ने दुकानें खोलने की कोशिश की थी तो कुछ दुकानदारों पर आतंकी हमले भी हुए थे, जिसमें एक स्थानीय दुकानदार मारा गया था और कुछ जख्मी भी हुए थे। इसके बाद ऐसी खबरें भी आई थीं कि आतंकी घाटी में पोस्टर लगाकर लोगों को कर्फ्यू जैसा माहौल बनाए रखने की चेतावनी दे रहे हैं। शायद इसी के जवाब में अब सरकार ने लोगों को विज्ञापन के जरिए ये समझाने की कोशिश की है कि उन्हें सोचना चाहिए कि क्या आतंकियों के सामने घुटने टेक देंगे या फिर अपने मन से खौफ को मिटाकर कश्मीर की तरक्की में हाथ बटाएंगे।

क्या हम आतंकियों से डर जाएंगे?

ग्रेटर कश्मीर में छपे विज्ञापन में राज्य सरकार की ओर से इस बात को जोरदार तरीके से उठाया गया है कि क्या हम आतंकियों के सामने घुटने जा रहे हैं? इस विज्ञापन के जरिए सरकार ने लोगों अपना डर भगाने की अपील की है। विज्ञापन में बताया गया है कि ‘सोचिए, पिछले 70 सालों से जम्मू-कश्मीर के लोगों को गुमराह किया गया है। वे एक शातिर मुहिम और प्रोपेगेंडा के पीड़ित हैं, जिसके चलते उन्होंने आतंकवाद का कभी न खत्म होने वाल कुचक्र, हिंसा, तबाही और संपत्तियों की नुकसान देखी है। अलगाववादियों ने अपने बच्चों को पढ़ने, काम करने और कमाई के लिए बाहर भेजा है, जबकि आम जतना और उनके बच्चों को हिंसा, पत्थरबाजी और हड़तालों में धकेल दिया है। वे आतंकियों के खतरे का भय दिखाकर और अफवाह फैलाकर लोगों को गुमराह करते हैं। आज भी आतंकवादी धमकियों और ज्यादतियों का वही हथकंडा अपना रहे हैं। क्या हम इसे बर्दाश्त करेंगे?

यह हमारा घर है, इसके लिए हमें ही सोचना है

विज्ञापन के जरिए सरकार ने राज्य की जनता से सवाल किए हैं कि क्या पुराने हथकंडों, ज्यादतियों को हम आज भी अपने ऊपर हावी होने देंगे? क्या धमकियां और अफवाह काम करेंगी या पुख्ता जानकारियों के साथ लिए जाने वाले फैसले हमारे लिए सबसे अच्छे रहेंगे? क्या कुछ धमकी भरे पोस्टरों से ही हम डर जाएंगे? जिससे कि हम अपना कारोबार न शुरू कर पाएं, हम अपनी जिंदगी की जरूरतों के हिसाब से न कमाएं, अपने बच्चों की शिक्षा और सुरक्षित भविष्य की चिंता न करें, कश्मीर को विकास से गुलजार न होंने दें। लेकिन, यह हमारा घर है। इसकी हिफाजत और इसकी समृद्धि के बारे में हमें ही सोचना है। फिर डर क्यों?

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