अनिता चौधरी

राजनीतिक संपादक 

प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी पारी की सरकार के करीब 6 महीने होने जा रहे है। क्योंकि नरेंद्र भाई मोदी ने जनता से चुनाव में शिक्षा और रोजगार को लेकर बड़े बड़े वादे किए थे ,इसलिए पीएम मोदी की नई कैबिनेट से जनता को उम्मीदें बड़ी बड़ी हैं। अब क्योंकि नारा नए भारत का दिया गया था ज़ाहिर सी बात है टीम मोदी में नगीने चुन चुन के रखे गए होंगे जो परिणाम पर खरे उतरे । जब मंत्रियों के काम काज पर नज़र डाली गयी तो पता चला कि नौबत ये आ गयी है कि जनता पोस्टर लगवा कर अपने मंत्रियों को ढूंढती फिर रही है। 

चलिए सबसे पहले बात करते हैं एचआरडी यानि मानव संसाधन मंत्री रमेश सिंह पोखरियाल निशंक की। कहाँ है निशंक ,क्या किसीने उनको देखा है। क्या कर रहे हैं निशंक ? शिक्षा के क्षेत्र में कौन कौन से बदलाव लाये हैं जिससे रोज़गार का सृजन हो ? ये सवाल है जो हर उस व्यक्ति के मन में कौंध रहा है जो शिक्षा के क्षेत्र की तरफ रोज़गार की आस में नज़र उठा कर देख रहा हो। मगर सवाल धरे के धरे राह जाते हैं क्योंकि रमेश पोखरियाल निशंक ने जब से मानव संसाधन मंत्रालय का पद भार संभाला है तब से काम करते कम और छिपते ज्यादा नज़र आ रहे हैं । यही नहीं कुछ संस्थानों की नियुक्तियों पर लंबा पूर्णविराम लगाया हुआ है तो कुछ अपने तरीके से ऊट-पटांग भी हैं । या। ताज़ा उदाहरण बीएचयू के फ़िरोज़ शाह की नियुक्ति की ही ले लें। अगर वहां के सनातनी परंपरा के बारे में रमेश निशंक को पता था तो यूजीसी के इस संस्तुति  पर उन्होंने चर्चा कर इसकी गहरी को नही समझा या समझाया। अब उस नियुक्ति से तो ऐसा ही लग रहा है कि या तो मानव संसाधन मंत्रालय बिना सोच – विचार के काम कर रहा है या हर नियुक्ति अपने आप में भ्रष्टाचार है । यही नही अगर यूनिवर्सिटी के उप कुलपति की नियुक्तियों को देखे तो निशंक के कार्यकाल में या तो नियुक्ति हो नहीं रही क्योंकि कई यूनिवर्सिटी फिलहाल कार्यवाहक कुलपति के साथ चल रहा जहां विकास , नियुक्ति और रोजगार के काम काज एकदम ठप्प हैं और जहां हो भी रहा है सिर्फ सर्फ ऊंची जाति खास कर ब्राह्मण और राजपूतों की नियुक्ति हो रही है। 

वैसे ऐसे विश्वविद्यालय जो निशंक के मंत्रालय के निम्म्मेपन से ग्रसित है उनकी फहरिस्त लंबी है लेकिन फिलहाल उदहारण के तौर पर बात करते हैं मध्यप्रदेश के इन्द्रिरा गांधी ट्राइबल सेंट्रल यूनिवर्सिटी अमरकंटक की । चारो तरफ से आदिवासी जन – धन सम्प्रदाय से घिरी आदिवासी यूनिवर्सिटी की स्थापना जब हुई तो सरकार के रैवैये से ऐसा लगा कि इस विश्वविद्यालय के नाम के सामने आदिवासी बस एक राजनीतिक स्टंट रहा। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के राज के बाद यहां के उपकुलपति और शिक्षक ट्राइबल बैकग्राउंड के नहीं बल्कि ऊंची जाति के रहे और विश्वविधालय के विकास के नाम पर बंजर जमीन और यूनिवर्सिटी की इमारत रही। हालांकि इस यूनिवर्सिटी का नाम आदिवासी जन जातीय विश्वविधालय है जो चारो तरफ से 25 आदिवासी गाँव से घिरा है लेकिन 2014 से पहले इस आदिवासी जन जातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय में महज़ 400-500 आदिवासी छात्र थे। जनवरी 2014 में इस विश्वविद्यालय की किस्मत बदली और प्रोफेसर टी.वी कटटीमनी उपकुलपति के तौर पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी इंदिरा गांधी जन जातीय आदिवासी  विश्वविधालय में नियुक्त हुए 2014 से सब तक इस यूनिवर्सिटी में आदिवासी छात्रों की संख्या अब तकरीबन 37 फीसदी हो गयी है। यहां देश के सभी राज्यों से आदिवासी छात्र हर तरह की पढ़ाई करने आते हैं। यही नहीं इस जन जातीय विश्व विद्यालय में एक कॉस्मोपोलिटन वातावरण बनाने के लिए प्रोफेसर कटटीमनी ने देश के करीब 25 राज्यों से शिक्षकों की नियुक्ति की। यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर विभाग के शोध कार्य में आस पास के गांव के किसानों को शामिल किया और ट्राइबल चावल कोदो जो स्वास्थ्य के लिहाज से चाहे शुगर की बीमारी हो या हाई कोलेस्ट्रॉल ,ब्लड प्रेसर बेहद बेहतरीन माना जाता है यूनिवर्सिटी और आस पास के किसानों की संयुक्त साझेदारी के साथ इस चावल का उत्पादन ही नहीं बढ़ाया बल्कि किसानों को आर्थिक तौर पर मदद मिले इसके लिए इस चावल की बिक्री को बढ़ाने के लिए इसे सुपर और डिपार्टमेंटल स्टोर तक भी पहुँचाया। टी. वी कटटीमनी ने जल संरक्षण को बढ़ावा देते हुए विश्वविद्यालय और आदिवासी ग्रामीणों के सहयोग से नई तकनीक का इजाफा किया नतीज़ा ये है कि आज इस विश्वविद्यालय के आस पास के गांव जो कि ज्यादातर आदिवासी बहुल है वो खेती जे लिए प्रकृति पर निर्भर नहीं है। किसानों की खेती में ग्रीन रेवोल्यूशन आये और खेती सिर्फ धान, गेंहू, दाल तक सीमित न रहे इसलिए अमरकंटक के कुलपति टी.वी कटटीमनी ने आर्गेनिक फार्मिंग खास कर अल्युवेरा की खेती जो कि कई तरह की दवाइयों के काम मे आती है को बढ़ावा दिया। छात्रों को नए – नए शोध के लिए उत्साहित किया और विश्वविधयालय के विकास में निरंतर कार्यरत रहे मगर इसका नतीजा ये रहा कि पिछले कई महीने से इस प्रोग्रेसिव ट्राइबल बैकग्राउंड से आने वाले कुलपति महोदय को कार्यवाहक उपकुलपति के तौर पर रखा गया, यूनिवर्सिटी का सारा काम ठप्प।

अब  सूत्रों के हवाले से जो खबर  आयी है उंसके मुताबिक ट्राईबल यूनिवर्सिटी में रेगुलर उपकुलपति के लिए मानव संसाधन मंत्रालय के पास तीन नाम हैं प्रोफेसर टी. वी कटटीमनी, एडीएन. बाजपेई ये पहले भी उपकुलपति रह चुके हैं, और प्रोफेसर प्रकाश मणि त्रिपाठी जो गोरखपुर से हैं। इस लिस्ट में 2 नाम ब्राह्मण के हैं और एक आदिवासी जन जाती के एक होनहार व्यक्ति का। लेकिन सूत्र बताते हैं कि मंत्रालय की तरफ से गोराखपुर वाले प्रकाश मणि त्रिपाठी के नाम पर रिकमेंडेशन राष्ट्रपति महोदय को भेज दिया गया है। 

ऐसे में अब ज़िम्मेदारी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की है कि वो आखिर इस जन जातीय विश्वविद्यालय को क्या स्वरूप देना चाहते हैं। यही नही आस पास कर जनजातीय समुदाय, विश्वविधयालय में पढ़ रहे छात्र के भविष्य को वो किस रारह से संवारना चाहते हैं ?

इन सभी कार्यप्रणाली को देखते हुए सवाल कई उठ रहे हैं मगर मानव संसाधन मंत्री रमेश निशंक पोखरियाल चुप हैं। सवाल ये है कि ये चुप्पी उनकी मर्ज़ी है या मज़बूरी।

निशंक की अभी तक की नियुक्तियों को देखें तो मोतिहारी केंद्रीय विश्वविद्यालय में अरुण कुमार जो  उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं और ब्राह्मण है, उनको उपकुलपति नियुक्त किया है, गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी एक ब्राह्मण उपकुलपति की ही नियुक्ति हुई है। उत्तराखंड के एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी ऊंची जाति के कुलपति को ही नियुक्त किया गया है।

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