मुंबई। शिवसेना ने सामना के जरिए भाजपा पर फिर निशाना साधा है और लिखा है कि बीजेपी को अगले पांच साल इसी तरह पीछे हटने की आदत डाल लेनी चाहिए थी। इतना ही नहीं विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस पर भी सामना में तीखा कटाक्ष किया गया है।

सामना के जरिए शिवसेना ने लिखा, ‘उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार ने विश्वासमत प्रस्ताव जीत लिया है। सरकार को मिला बहुमत औसत नहीं बल्कि अच्छा और धमाकेदार है। सरकार के साथ 170 विधायकों का बल है, ये हम पहले दिन से कह रहे थे। परंतु फडणवीस के चट्टे-बट्टों के चश्मे से ये आंकड़ा 130 के ऊपर जाने को तैयार नहीं था। विचारों की उड़ान भरने की क्षमता नहीं होगी तो कइयों को सह्याद्रि ‘टीले’ जैसा लगता है. ऐसा ही बहुमत के मामले में हुआ।’

देवेंद्र फडणीस पर तीखा वार

संपादकीय में देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते हुए लिखा गया है, ‘170 की संख्या देखकर फडणवीस के नेतृत्व वाला विपक्ष विधानसभा से भाग खड़ा हुआ। रविवार को विधानसभा अध्यक्ष पद पर नाना पटोले की नियुक्ति भी निर्विरोध हो गई। कदाचित शनिवार को ‘170’ का आंकड़ा भाजपावालों के आंख और दिमाग में घुस जाने का परिणाम ऐसा हुआ कि विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव में उन्हें पीछे हटना पड़ा। अब अगले 5 साल उन्हें इसी तरह पीछे हटने की आदत डालनी पड़ेगी।

राज्य के नेतृत्व को लेकर बीजेपी में संकट

देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते हुए सामना में महाराष्ट्र और राजस्थान का भी उदाहरण दिया गया। इसमें लिखा गया ‘मुख्यमंत्री की हैसियत से देवेंद्र फडणवीस ने जो गलतियां कीं वह विरोधी पक्ष नेता के रूप में तो उन्हें नहीं करनी चाहिए। विपक्ष के नेता पद की शान व प्रतिष्ठा बरकरार रहे, ऐसी हमारी इच्छा है।

दरअसल, यह भारतीय जनता पार्टी का अंदरूनी मामला है कि किसे विपक्ष का नेता बनाएं अथवा किसे और क्या बनाएं, परंतु राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं आई। वहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विपक्ष की नेता की कुर्सी पर नहीं बैठीं। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार पराजित हुई, वहां भी बलशाली माने जानेवाले शिवराज सिंह चौहान विपक्ष के नेता नहीं बने तथा पार्टी के अन्य नेता ने यह पद संभाला। जबकि महाराष्ट्र में दिल्लीवाले ‘फडणवीस ही फडणवीस’ कर रहे हैं इसके पीछे का वास्तविक रहस्य क्या है यह समझना होगा।’

बहुमत के आसपास भी जाना संभव न होने के बावजूद दिल्ली ने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और उस सरकार के धराशायी होने के बाद अब विरोधी पक्ष के नेता पद पर भी पुन: फडणवीस की ही नियुक्ति कर दी गई। असल में महाराष्ट्र की जनता को भाजपा के राज्य स्तरीय नेतृत्व में भी बदलाव चाहिए था तथा इसका प्रतिबिंब मतदान में दिखा था। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व ने विपक्ष के नेता पद पर फडणवीस को ही बैठाया अर्थात यह उनका अंदरूनी मामला होने के कारण हम इस पर ज्यादा बोलेंगे नहीं। परंतु विश्वासमत प्रस्ताव के मौके पर नए विपक्षी नेता ने जो ‘ड्रामा’ किया वो कुछ ठीक नहीं था।

देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते हुए सामना में लिखा गया कि ‘मैं नियम और कानून से चलनेवाला इंसान हूं’ ऐसी हास्यास्पद बातें उन्होंने कहीं। लेकिन उन्होंने विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान जो सवाल खड़े किए वे किन नियमों पर आधारित थे? छत्रपति शिवराय के नाम पर मंत्रियों ने शपथ विधि में शपथ ली इस पर फडणवीस तमतमा गए। शिवराय का स्मरण गैरकानूनी ठहरानेवाले नियमों की बात करते हैं तथा 105 सीटें इस पर जीती जाती हैं।

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