इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गायों की हालत और गौ हत्या की बढ़ती घटनाओं को लेकर बेहद अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर संसद में बिल पेश करने का सुझाव दिया है. कोर्ट ने कहा कि गायों की सुरक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट के मुताबिक गायों को किसी एक धर्म के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. यह भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है. कोर्ट ने ये भी कहा कि अपनी संस्कृति को बचाना हर भारतवासी की जिम्मेदारी है. महज स्वाद पाने के लिए किसी को भी इसे मारकर खाने का अधिकार कतई नहीं दिया जा सकता.

कोर्ट ने अपने फैसले में गायों के महत्व को विस्तार से बताते हुए कहा कि अगर देशवासी मौजूदा हालात को लेकर गंभीर नहीं हुए तो भारत के हालात भी अफगानिस्तान में तालिबान के हमले और कब्जे की तरह हो सकते हैं. कोर्ट के फैसले के मुताबिक देश का कल्याण तभी होगा, जब गाय का कल्याण होगा. अदालत ने ये भी कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए सरकार संसद में बिल लाकर सिर्फ कानून ही न बनाए, बल्कि उस पर सख्ती से अमल भी कराए. फैसले में यह भी कहा गया है कि गौ हत्या की घटनाओं से देश कमजोर होता है और इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों का कतई देशहित में कोई आस्था या विश्वास नहीं होता.

बता दें कि ये फैसला जस्टिस शेखर कुमार यादव की सिंगल बेंच ने दिया है. कोर्ट ने संभल जिले के नखासा थाने में गौवध निवारण अधिनियम के तहत दर्ज हुई एफआईआर में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए जावेद नाम के आरोपी की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी जावेद ने जो घटना की है, उसका समाज पर गलत असर पड़ा है. जमानत मिलने पर जेल से छूटने के बाद वह फिर से गौ हत्या के काम में शामिल होकर समाज का माहौल बिगाड़कर तनाव के हालात पैदा कर सकता है.

हाईकोर्ट की टिप्पणी को देवबंदी उलेमा इसहाक गोरा ने समर्थन दिया है. उन्होंने अपना बयान जारी करते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहुत ही सकारात्मक टिप्पणी की है. इस टिप्पणी पर किसी को भी ऐतराज नहीं होना चाहिए क्योंकि गाय से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.

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