देख कर आंखे चौंधिया गई हैंडी क्राफ्ट ग्राम में महिला बुनकरों के कमाल के उत्पादजुमा मियां की टेंट सिटी परिकल्पना को मोदी ने दिया नया आयाम
भूकंप त्रासदी के बाद भुज का पुनर्निर्माण मोदी कार्य संस्कृति की पहली झलक थीविश्वास कीजिए पश्चिमी देश जो भारत को सांप, फकीर और महाराजाओं का कूपमण्डूक देश के रूप में तिरस्कृत किया करते थे, समय ने उनको अपने इन शब्दों को गले मे निगलने पर विवश कर दिया जब मिले सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक प्रमाणों ने यह सिद्ध कर दिया कि जब भारत पर कटाक्ष करने वाले गुफाओं मे रहा करते थे तब मोहनजोदड़ो- हड़प्पा की सभ्यता चरमोत्कर्ष पर थी। पुरातत्वविद इसे हजार पुरानी बताते हैं मगर सच तो यह है कि यह सभ्यता पचास हजार साल से भी इसलिए पहले की है कि उस समय मां गंगा और हिमालय नहीं थे जिनकी उम्र पचास हजार साल से पांच लाख साल मानी जाती है। हम भुज से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खवड़ा तालुका की सपनों सरीखी टेट सिटी में ठहरे हैं, जिसका निर्माण वाराणसी के लल्लू जी एंड संस ( लल्लू जी डेरा वाले) ने किया है, आज सुबह नाश्ता करने के बाद हम वहां से इनोवा कार से ( दो पत्रकारों पर एक कार ) निकले धौलावीरा की ओर जो वहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर है और जहां हमने किया सिंधु घाटी सभ्यता का अवलोकन। हमारी पत्रकार एकादश की आंखें चौंधिया गईं यह देख कर कि तब हजारों साल पहले जल निकासी और ड्रेनेज सिस्टम तक मौजूद था। मैं वाराणसी लौट कर इस भ्रमण का, जो गुजरात सरकार की ओर से प्रायोजित है और मेजबानी ऐसी कि हम ग्यारह पत्रकारों पर एक दर्जन प्रशासनिक अधिकारी तैनात हैं, विस्तृत विवरण लिखूंगा। रास्ते भर हमें सड़क के दोनो ओर सागर का अह्सास कराती जल राशि मिली, जिसमें अरब सागर का बैक वाटर, बारिश, पाकिस्तान में बाढ़ वाला, नानी बनासकाठा की बनास और राजस्थान की एक नदी का पानी आता है, ऊंचाई वाली जगह दिखा श्वेत मरुस्थल (कच्छ रन) जो बालू का नहीं बल्कि दलदली मिट्टी का था । भुज से धौलावीरा जाने के लिए हाईवे की परियोजना 1991 में नरसिंम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने बनाई थी लेकिन इसमें अड़चन डाली भ्रष्ट केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने, जिसने अपनी नापाक हरकतों से देश का विकास एक तरह से दशकों तक अवरुद्ध कर रखा था। 2014 मे सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने इस मंत्रालय के पेच कसे और काम में तेजी आई, सिंगल रोड बन जाने से धौलावीर की दूरी साढे तीन सौ किलोमीटर से घट कर दो अंकों मे रह गयी। इस समय टू लेन का निर्माण प्रगति पर है। यह परियोजना सिर्फ मार्ग की दूरी कम करने के लिए ही नहीं, इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में मिलने वाले खनिज का निर्यात करने के वृहद उद्देश्य के लिए ही मूलतः है। धौलावीरा के रास्ते में दांयी ओर पर्वतमाला का अह्सास कराते डंगर मिले जिनका जन्म पांच हजार साल पहले ज्वालामुखी के फटने पर हुआ था।लौटते समय एक जगह दिव्य लंच का इंतजाम था। वहां से काफिला पहुंचा हैंडीक्राफ्ट ग्राम होडको ( बन्नी) । कच्छ के हाथकरघा उद्योग ने गुजरात की प्रगति में कितना हाथ बंटाया है यह वहां इम्ब्राइडरी, हस्तकला, बेड कुशन कवर और तमाम बेहतरीन हैंडीक्राफ्ट उत्पाद देख कर जानकारी हुई। रामजी देवराज भाई ने बताया कि उन्होंने 20 दलित महिला बुनकरों से काम शुरू किया था आज उनके यहां 300 महिलाएं कार्यरत हैं। लगभग पचास लाख का साल में टर्न ओवर है। गुजरात का यह वैशिष्ट्य है कि यहां हैंडीक्राफ्ट हो या दुग्ध व्यवसाय महिलाओं की भागीदारी 90 प्रतिशत से ज्यादा की है। कच्छ के रन में टेंट सिटी किस कदर सफल है कि इनकी संख्या लगभग 45 हो चुकी है। हमे जिस खाबड़ा की टेंट सिटी में ठहराया गया हैं इसमें पांच सौ टेंट हैं। चार महीने तक चलने वाले रन महोत्सव के दौरान ठहरने के लिए देसी- विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद यही है । 2022-23 में लगभग दो लाख पर्यटक ठहरे थे। यदि पंच सितारा सुविधाओं षे लैस एक टेंट का प्रतिदिन का किराया दस हजार भी मान लें तो आप समझिए कि राज्य की जीडीपी मे इस परिकल्पना का कितना जबरदस्त अंशदान हो चुका है। आपको यह जान कर हैरत होगी कि इस अवधारणा का प्रवर्तक एक मुस्लिम था। जुमा भाई ने गांव में शान- ए-सरहद रिसोर्ट की शुरुआत 2003 में की। उनके सुपौत्र बशीर भाई बताते हैं कि दादा जी तब गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी से मिले। मोदी जी को उनकी यह परिकल्पना भा गयी। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन जब गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर बने तब वे शान- ए- सरहद में ही ठहरे। यह रिसोर्ट नवंबर से फरवरी तक ही खुलता है। एक टेंट का टैरिफ पांच हजार प्रतिमाह है। टीम ने शाम की चाय की चुस्की यहीं प्याज की पकौड़ी और स्वादिष्ट मावे के साथ ली।आज गांव धोरडो गांव के सरपंच से मुलाकात के बाद स्मृति वन में भुज भूकंप त्रासदी के दौरान 20 हजार मृतकों को श्रद्धांजलि देनी है। 33 साल पहले हुई भयावह तबाही के बाद माना गया था कि भुज का उठ खड़ा होना नामुमकिन है पर “मोदी गारंटी” की यहीं से शुरुआत ने इसे मुमकिन बना दिया और आज कच्छ का यह जिला गर्व से मस्तक ऊंचा कर कर चुका है। यही नहीं कभी स्वच्छ षेय जल को तरसता यह इलाका आज नर्मदा का पानी पहुचने के बाद आज प्यासा भी नहीं रहा।एशिया की सबसे बड़ी हरित ऊर्जा परियोजना भी कच्छ मे ही प्रगति पर है। पवन और सौर से तीस हजार मेगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य है जिसको आगे 40 हजार मेगावाट किया जाना है। इंडी गठबंधन से जुड़े राजनीतिक दल रहे हैं न ?