पदम पति शर्मा
विरोध के लिए विरोध को मरते देर नहीं लगती। नागरिकता संशोधन बिल को लेकर पिछले दिनों हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन निष्पक्षतः राजनीति से प्रेरित कहे जा सकते हैं। इनका भी वही हश्र होगा। आप ही सोचिए कि 2014 तक भारत मे रह रहे पाकिस्तान, बाग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध, जैन समुदाय को नागरिकता प्रदान करने के विधेयक का देश को दिल खोल कर स्वागत करना चाहिए था।
लेकिन बजाय सराहने काग्रेस सहित वोट बैंक को देश हित से ऊपर मानने वाले राजनीतिक दलों का विरोध पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर सामने आया। क्या ये दल और शहरी नक्सली नहीं जानते कि इन तीन इस्लामिक देशों मे अल्पसंख्यक किस तरह की नारकीय जिन्दगी जी रहे हैं ? क्या वे इस तथ्य से अनजान हैं कि विभाजन के समय पाकिस्तान और बांग्लादेश में लगभग एक चौथाई के करीब अल्पसंख्यक आज क्रमशः एक और नौ प्रतिशत रह गये हैं ? विरोधी बताएं कि आखिर वे इतने कम कैसे हो गए, कहां चले गए ?
इन विरोधियों में मणिशंकर अय्यर सरीखे न जाने कितने ही हैं जो खास तौर से पाकिस्तान मे गैर मुस्लिमों की त्रासदी से भलीभांति अवगत हैं। शेख हसीना वाजेद के पूर्व की पाकिस्तान परस्त बाग्लादेशी सरकारों के दौरान किस कदर हिन्दुओं के साथ अमानुषिकता हुई , क्या इससे वे अनभिज्ञ हैं?
पाकिस्तान की मैने कई यात्राएँ की हैं और उस समय मेरे अपने कई कटु अनुभव रहे हैं। सभी की चर्चा इस समय मुनासिब नहीं । हिन्दुओं के हालात पाकिस्तान में कैसे है,, इसका जायजा मिल जाता है रफ्तार के सौदागर पाकिस्तानी तेज गेंदबाज शोएब अख्तर के अपने देश के टेलीविजन चैनल पर किए इस खुलासे से कि हिन्दू गुगली गेंदबाज दानिश कनेरिया के साथ किस तरह टीम के साथी अछूत जैसा व्यवहार किया करते थे और कई तो उसके साथ खाना खाने तक से परहेज करते थे। इंग्लैंड के खिलाफ जिस कनेरिया ने जीत दिलायी उसकी तक अनदेखी की गयी। उसको इसकी क्रेडिट नहीं दी गयी। आप सोचिए कि एक नामचीन टेस्ट खिलाड़ी के साथ इस कदर भेदभाव हुआ तो आम हिन्दू को कितनी हेय दृष्टि से देखा जाता होगा, इसे सहज ही समझा जा सकता है।
याद कीजिये महान बल्लेबाज यूसुफ योहाना के साथ क्या हुआ था ? पाकिस्तान की कप्तानी हासिल करने के लिए इस ईसाई को इस्लाम अपनाना पड़ गया था।
मैं नहीं जानता कि विरोधियो ने शोएब को सुना या नही । लेकिन मैं जानता हूँ भारत के विपरीत, जहाँ नवाब पटौदी को देश के श्रेष्ठतम कप्तान के रूप में याद किया जाता है और कलाई के जादूगर अजहरुद्दीन ने बरसों भारतीय क्रिकेट टीम का नेतृत्व किया, पाकिस्तान मे मामला एक दम उलटा है। कनेरिया के मामा विकेटकीपर अनिल दलपत पाकिस्तान के पहले हिन्दू टेस्ट खिलाडी रहे है। कम लोगों को जानकारी होगी कि अनिल अंडर 19 टीम के कप्तान भी रहे थे। भारत के खिलाफ सिरीज में उनको पाकिस्तान का नेतृत्व सौपा जाना उस देश की कुटिल कूटनीति का हिस्सा था। क्योकि इमरान को कप्तानी मिलते ही इस बेहतरीन विकेटकीपर को अकारण टीम से हटा दिया गया। अनिल अस्सी के दशक मे आसानी के साथ वसीम बारी का स्थान ले सकते थे। मगर उनका मजहब उनके आडे आ गया।
1982- 83 की सिरीज मे कराची टेस्ट के अवकाश दिवस पर हम कुछ भारतीय पत्रकारों ने पूरा दिन अनिल के घर में बिताया था। उनके पिता क्रिकेट प्रेमी दलपत सोनावारिया का बेटों को क्रिकेटर बनाने में बहुत बडा हाथ था। दलपत भाई पाकिस्तान हिन्दूज क्रिकेट क्लब भी कराची में चलाते थे। हमने उनके यहाँ न सिर्फ सुबह के नाश्ते से लेकर रात्रि मे डिनर तक ही लिया था बल्कि उनके छोटे से बंगले के अहाते में कैनवस क्रिकेट भी खेली थी। दलपत भाई को पूरा भरोसा था कि उनका छोटा बेटा मोहिन्दर, जो पेस बालर था, एक दिन पाकिस्तान के लिए खेलेगा। टेनिस गेंद का ही हमने सामना किया था लेकिन मोहिन्दर ने बानगी दिखा दी थी। यह बात दीगर है कि पिता का भरोसा अधूर ख्वाब बन कर ही रह गया।
हम उनके घर के पास ही राम मंदिर भी गये। उस बस्ती में हिन्दुओं की दयनीय हालत देख कर सभी का दिल भर आया। हालांकि तब हालात आज की तरह इतने बदतर नहीं हुए थे। फिर भी जो जिन्दगी उस समय हिन्दू जी रहे थे वो कहीँ से भी सम्मानजनित नहीं कही जा सकती। रात्रि मे उनके घर से होटल लौटते वक्त हमारी बातचीत जो हमने देखा था, उसी पर केन्द्रित रही थी।