उत्तर प्रदेश में महोबा जिले के जैतपुर थाना क्षेत्र के मुढारी गांव में मंगलवार को मातमी माहौल में एक किसान ने अपनी पालतू गाय का अंतिम संस्कार किया और अब उसकी अस्थियां संगम में प्रवाहित कर त्रयोदशी करने की तैयारी कर रहा है।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड़ में गौवंशों को आवारा छोड़ना एक रिवाज बनता जा रहा है। वहीं महोबा जिले में किसान बलराम मिश्रा के घर 20 साल पहले जन्माष्टमी के दिन जन्मी गाय का नाम ‘कृष्णा’ रखा गया था। गाय 10वीं बार गर्भवती थी और उसका बच्चा सोमवार को गर्भ में ही मर गया। इस कारण तमाम प्रयासों के बाद भी गाय की मौत हो गई। 

किसान ने गाय का विधिवत अंतिम संस्कार किया। उसके शव को पहले लाल रंग के कपड़े ढंका गया और फिर उसे बैलगाड़ी पर रखकर बैंडबाजे से मातमी धुन बजाते हुए उसकी शवयात्रा निकाली गई। शव यात्रा में गांव के कई सारे लोग शामिल हुए। बाद में वैदिक मंत्रों और हिंदू रीत-रिवाज के साथ गाय का अंतिम संस्कार किया गया।

गौपालक किसान बलराम मिश्रा ने बताया, “कृष्णा (गाय) हमारे परिवार के लिए ‘मां’ जैसी थी। खूंटे में कभी बांधा नहीं और न ही वह घर से कभी जंगल चारा चरने गई। दिनभर दरवाजे पर बैठी रहती थी। कृष्णा नाम लेते ही वह पीछे-पीछे चल देती थी। गाय नहीं, हमारी मां का निधन हुआ है। इसलिए परिवारिक सदस्य की भांति उसका अंतिम संस्कार किया गया है।”

किसान ने कहा, “कृष्णा की अस्थियां (प्रतीक स्वरूप गाय का नाखून यानी खुर) प्रयागराज (संगम) में प्रवाहित करने के बाद उसके तेरहवीं (त्रयोदशी) संस्कार में ब्राह्मण/कन्या भोज के अलावा सभी ग्रामीणों को भोज के लिए आमंत्रित करने की योजना है।”

गौ माता की मौत पर किया जा रहा यह कार्यक्रम उन तमाम लोगों के लिए नसीहत है, जो गाय का दूध तो निकाल लेते हैं और दूध न देने या उम्रदराज होने की दशा में उसे आवारा घूमने के लिए छोड़ देते हैं। 

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