डाक्टर रजनीकांत दत्ता
पूर्व विधायक, शहर दक्षिणी
वाराणसी ( यू पी )

अप्रत्याशित, आकस्मिक दैविक आपदा या मैन मेड डिजास्टर,अगर वह मजबूरी बन जाए, जिसके चलते वहां के प्रवासियों को सामूहिक माइग्रेशन करना पड़े तो वह दुखदाई होने के साथ-साथ मुसीबत भरा होता है।

सामूहिक माइग्रेशन के इस कालखंड में,अगर यह माइग्रेटिंग समूह के लोग बाधाओं के कारण अपने धैर्य नहीं खोते हैं और एक अनुशासित मर्यादित समूह की तरह आपदा प्रबंधन एजेंसियों को वांछित सहयोग देते हैं। तो लक्ष्य दूरगामी और कठिन होते हुए भी कम समय में सफलता पूर्वक प्राप्त किया जा सकता है।

पूर्वांचल-गंगा जमुना और ब्रह्मपुत्र जैसी महानदियों से सिंचित उपजाऊ भूखंड है। जिसकी अधिकांश आबादी गांव में रहती है।कृषि और कृषि उत्पादन उनकी रोजी-रोटी का जरिया है।इसे देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहे कि वर्ष 1947 से 2014 तक यहाँ न तो कृषि आधारित कोई एग्रो इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया गया और न ही उसके अनुकूल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किए गए।यही नहीं पूर्वांचल प्राकृतिक संसाधनों से लैस वो भूखंड है जहां दुर्लभ मिनरल्स,सोर्स,ऊर्जा के सूत्र जैसे कि कोयला एवं इंडस्ट्री में प्रयोग होने वाले रॉ मैटेरियल की भरमार है।यही नहीं हर काम के लिए यहां मेधावी परिश्रमी स्किल्ड लेबर युवा शक्ति के रूप में आवश्यकता से अधिक उपलब्ध हैं। कुटीर उद्योगों के परिपेक्ष्य में यहां की कोई बराबरी नहीं कर सकता। फिर क्या कारण है कि यहाँ वो आर्थिक विकास नहीं हो पाया और न ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराए गए। जिसके कारण सत्ता के हस्तांतरण के कुछ वर्षों के बाद से ही पूर्वांचल की युवा शक्ति लाखों और करोड़ों की संख्या में रोजी-रोटी की तलाश में देश के विभिन्न प्रांतों के महानगरों को पलायन कर रही थी। मतलब जो होना चाहिए था,ठीक उसका उल्टा हुआ।

हम पूर्वांचल के लोगों ने कभी यह भी सोचा है?
कि,इस दुर्दशा का कारण बहुदलीय संसदीय प्रजातंत्र का वह अभिशाप है।जो वंशवादी राजतंत्र Dictatorial मनोवृति रखने वाले नेताओं और पार्टियों के वोट बैंक की तुष्टिकरण की नीति की हवस के हम शिकार हुए।फलस्वरूप यहां चुनाव मुद्दों के आधार पर नहीं बल्कि जाति के नाम पर, संप्रदाय के नाम पर,निहित स्वार्थ के लिए बाहुबल धनबल गुंडा तंत्र से चुनाव जीते जाते थे। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश का सपा, बसपा का जंगल राज।बिहार का लालू यादव का गुंडाराज एवं बंगाल में कम्युनिस्ट का ममता द्वारा राजनीति का नंगा नाच और असम के सीमावर्ती इलाकों में गलत प्रचार और श्रमिक आंदोलन ने उस माहौल को ही नष्ट कर दिया जहां उद्योगपति अपने और अपने उद्योगों को सुरक्षित समझते थे। जहां कानून और व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी।डकैती, अपहरण, बलात्कार, लालफीताशाही, राजनीतिक अतिक्रमण और श्रमिक आंदोलन लिहाजा जो कल कारखाने थे। वे धीरे-धीरे बंद होते चले गए और इन परिस्थितियों के कारण नए कारखाने लगाने की लोगों में हिम्मत ही नहीं हुई। जिसमें करोड़ों पूर्वांचल निवासियों को रोजी-रोटी की तलाश में अन्य प्रांतों में जाने और जोखिम उठाने पर मजबूर कर दिया।

उपरोक्त परिपेक्ष्य में प्रवासियों की घर वापसी हमारे लिए बोझ ना होकर पूर्वांचल आर्थिक पुनर्जागरण का आरंभ है।यह प्रवासी प्रशिक्षित श्रमिक हैं जिन्हें प्रौद्योगिकी का व्यवहारिक ज्ञान है। यह कर्मठ,स्किल्ड और परिश्रमी युवा शक्ति है। इसलिए केंद्र और पूर्वांचल की प्रांतीय सरकारों से दरख्वास्त करना चाहता हूं कि,योग्यता के आधार पर इनका वर्गीकरण कर मेड इन इंडिया के तहत जहां जैसे उत्पादक संसाधन उपलब्ध हो। वहां वैसे कारखाने और कुटीर उद्योग स्थापित किए जाए, इन्हें काम दिया जाए। यह पूर्वांचल की आर्थिक समृद्धि के नवयुग की शुरुआत होगी।

देश इस समय चौतरफा संकटों से घिरा हुआ है। चीन और पाकिस्तान का सीमा पर तनाव है। बंगाल और ओड़िशा चक्रवात से प्रभावित है।कोरोनावायरस के लॉकडाउन के कारण जीडीपी प्रभावित हो रही है और सोनिया वाड्रा कांग्रेस और उनके संप्रदायिक, वामपंथी विचारधारा के अर्बन नक्सलाइट्स बुद्धिजीवी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा देश की आंतरिक-बाह्य सुरक्षा को खतरा पैदा किया जा रहा है। इसे भी ध्यान में रखते हुए आवश्यक कदम उठाने होंगे।चाहे उसके लिए एनएसए के साथ साथ कुछ समय के लिए आपातकाल ही क्यों ना लगाना पड़े

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् //
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे//
शब्दार्थ-
मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
यानी कि मोदी है तो मुमकिन है।

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