दिनेश कुमार
चीन से पैसा खाने वाले देशद्रोही परिवार की काली करतूतों की परतें अब खुलती जा रही हैं। इस परिवार के लिए देशद्रोही शब्द के इस्तेमाल पर डिज़ाइनर बुद्धिजीवियों को होने वाले अपार कष्ट का उनके अतार्किक ज्ञान प्रलाप रूपी प्रतिक्रियाओं से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन क्या कहा जाये, इस परिवार की मंशा और आचरण को देखते हुए उनके लिए इससे उपयुक्त कोई और शब्द है क्या?
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा तनाव के परिदृश्य में चीन के सर्वशक्तिशाली होने के भौकाल के भरम को मज़बूती प्रदान करने की मंशा से इस परिवार के मां-बेटा-बेटी जिस बेशर्मी और शिद्दत के साथ सेना और सरकार की भूमिका पर लगातार अंगुलियां उठा रहे हैं वह देशद्रोह की ही श्रेणी में आता है। जबकि उपग्रह की तस्वीरों से गलवान घाटी की स्थिति एकदम साफ़ है। यहां फ़िंगर चार से फिंगर आठ के बीच तक़रीबन आठ किलोमीटर के फ़ासले को चीन ने मौजूदा विवाद का केंद्र बना दिया है। भारत का कहना है कि दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा फ़िंगर आठ के उस पार है जबकि चीन फिंगर चार को नियंत्रण रेखा मानता है। यही नहीं अब तो फिंगर तीन तक चीन अपना दावा ठोकने लगा है।
वस्तुस्थिति यह है कि फ़िंगर चार और फ़िंगर आठ के बीच के क्षेत्र पर दोनों में से किसी का भी कब्ज़ा नहीं है। नब्बे के दशक के उत्तरार्द्ध में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के तहत इस ‘नो मेन्स लैण्ड’ में दोनों पक्ष गश्त लगा सकते हैं लेकिन किसी भी तरह का स्थायी निर्माण कार्य नहीं कर सकते। इसी सहमति के तहत दोनों पक्ष अब तक इस क्षेत्र में गश्त लगाते आ रहे थे लेकिन कोरोना काल में अचानक चीन ने पैंतरा बदलते हुए भारत को फिंगर चार से आठ के बीच गश्त लगाने से न केवल रोकना शुरू कर दिया बल्कि एक तरह से विवादित इस नो मैन्स लैंड में टेंट तंबू भी खड़ा कर दिया। चीन की इस हरकत को रोकने के क्रम में ही 15-16 जून की रात में दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें हुईं।
अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस की राजमाता और राजकुमार किस आधार पर निरंतर यह प्रलाप कर रहे हैं कि चीन ने भारत में घुसपैठ कर हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया, जबकि सीमा पर सारी गतिविधियों और विवाद का केंद्र फिंगर चार से आठ के बीच का वह इलाका है जहां किसी का कब्ज़ा नहीं है।
दरअसल दुनिया के सबसे बड़े भू-माफिया के रूप में कुख्यात हो चुका चीन चाहता ही नहीं कि भारत के साथ सीमा विवाद हल हो और दोनों देशों को मान्य वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण हो ताकि वह चार कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे हट कर अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करता रह सके।
आख़िर सोनिया और राहुल ऐसे शातिर और चालबाज़ दुश्मन के आगे दुनिया भर में अपने शौर्य के लिए प्रतिष्ठित भारतीय सेना को क्यों कमज़ोर साबित करने पर आमादा हैं। समझना होगा कि दोनों मां-बेटा और बेटी के अलावा उनके सियासी गुर्गे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में देश का कद और प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले प्रधानमंत्री को क्यों डरपोक और आत्मसमर्पण करने वाला बता रहे हैं।
ग़ौरतलब है कि 2005-06 में सोनिया गांधी के निजी ट्रस्ट राजीव गांधी फ़ाउन्डेशन को चीन के दूतावास से एक करोड़ पैंतीस लाख रुपए मिलते हैं और यह फंडिंग 2008-09 तक जारी रहती है। कुल कितनी धनराशि चीन से राजीव फ़ाउन्डेशन को मिली, यह जांच का विषय है। बहरहाल, इसी दौरान 2008 में बीजिंग ओलंपिक समारोह में भारतीय प्रधानमंत्री को रबर स्टैम्प समझते हुए नज़रंदाज़ कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी को निमंत्रित किया जाता है। बीजिंग में भारत की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और चीन पर राज करने वाली वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच गोपनीय समझौता होता है जिस पर चीन के तत्कालीन उप राष्ट्रपति शी जिनपिंग और सोनिया की उपस्थिति में राहुल गांधी हस्ताक्षर करते हैं। यह समझौता आज भी गोपनीय है जिसे सीमा पर मौजूदा तनाव के मद्देनजर सार्वजनिक किये जाने की मांग अब ज़ोर पकड़ने लगी है। सुप्रीम कोर्ट मे एक याचिका भी दाखिल की जा चुकी है।
इस बात को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता कि इस समझौते के बाद ही सोनिया ने व्यापार में चीन को भारी रियायतें देने के लिए मनमोहन सिंह को मजबूर कर दिया। नतीजतन चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा तेज़ी से कई गुना बढ़ता गया और भारतीय बाज़ार के 65 प्रतिशत हिस्से पर चीन का कब्ज़ा हो गया। मौजूदा सरकार के लिए इस कब्ज़े को तोड़ना बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि इस दिशा में प्रयास तो शुरू हो चुके हैं लेकिन विश्व व्यापार संगठन तथा अन्य आर्थिक तक़ाज़ों को देखते हुए यह प्रक्रिया पूरी होने में काफ़ी वक्त लगेगा।
यूपीए के ज़माने में इस परिवार ने आर्थिक मोर्चे पर और भी कई काले कारनामों को अंजाम दिया जिनकी परत दर परत कलई अब खुलने लगी है। इसी क्रम में पहली बार ऐसा हुआ कि सोनिया की निजी स्वामित्व वाली संस्था राजीव गांधी फ़ाउन्डेशन के लिए देश के आम बजट में 100 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ। यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि समाज कल्याण अथवा विकास की किस योजना या परियोजना के लिए यह धनराशि आवंटित की गयी, और यह भी कि यह धनराशि कहां और कैसे ख़र्च हुई, ख़र्च हुई भी या नहीं।
इसके अलावा पीएम रिलीफ़ फ़ंड से भी इस फ़ाउन्डेशन को जो पैसे दिये गये वे किस राहत कार्य में लगाये गये। एक और खुलासे में पता चला है कि देश के कई सरकारी उपक्रमों ने भी राजीव गाँधी फाउंडेशन में दान किया था। इनमें गृह मंत्रालय समेत 7 मंत्रालय, सरकारी विभाग से लेकर 11 बड़े सार्वजानिक उपक्रम भी शामिल थे। यह सब ‘दान’ तब किए गए जब देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में UPA की सरकार थी और सोनिया गाँधी ही प्रमुख ‘डिसीज़न मेकर’ हुआ करती थीं।
देश की जनता को यह जानने का पूरा हक़ है कि उसकी गाढ़ी कमाई का पैसा तत्कालीन यूपीए सरकार ने सोनिया की निजी संस्था राजीव गांधी फ़ाउन्डेशन पर क्यों लुटाया।अब तक अनुत्तरित इन सवालों के जवाब भी जनता को मिलने चाहिए कि राजीव गांधी फ़ाउन्डेशन के आय-व्यय का कभी आडिट कराया गया या नहीं और इस फ़ाउन्डेशन को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है।
प्रधानमंत्री राहत कोष मे चाहे कोई भी पीएम हो कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष उसका एक सदस्य होगा। 1948 मे गठित इस कोष का आडिट हमेशा से जिस कंपनी के पास हे उसके स्वामियों मे एक रामेश्वर ठाकुर हैं जो राज्य सभा के सांसद, मंत्री और चार बार के राज्यपाल रह चुके हैं।
क्या समझ लिया इस परिवार ने कि क्या देश उनकी जागीर है ? चीन ने जो भारतीय जमीन हडपी है वो कुल मिलाकर 43180 वर्ग किलोमीटर है। जिसमे 1962 मे 38 हजार वर्ग किलोमीटर उसने हथियायी थी। ये पांच हजार वर्ग किलोमीटर भूभाग उसने बाद मे हडपा गया जिसमे अधिकांश 2008 से 2013 के बीच का समय में था जिस समय यूपीए सरकार थी।
इस लुटेरे परिवार से सिर्फ जवाब ही नहीं मांगा जाना चाहिए बल्कि इस पर आपराधिक केस भी दर्ज होना चाहिए।