बहुत कुछ बदल गया है दोनो के केन्द्र शासित प्रदेश होने के बाद

विशेष संवाददाता


आज देश को दूसरी आजादी मिलने का ऐतिहासिक दिन है।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 31 अक्टूबर की सुबह से काफी कुछ बदल गया है। पिछले 72 सालों से एक ही प्रदेश का हिस्सा रहे ये क्षेत्र अब 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हो गए हैं। भारत के नक्शे पर अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बीती रात 12 बजे के बाद से केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बदल गये। मोदी सरकार ने देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके को इस बदलाव के लिए चुना था। आइए, आपको बताते हैं कि सरकार के इस कदम से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में क्या-क्या बदल गया:

केन्द्र सरकार के संसद से पारित 106 कल्याणकारी कानून लागू

अभी तक इन दोनो प्रदेशों मे गुरबत की जिन्दगी जी रहे नागरिकों के लिए आज सचमुच ईद और दीवाली मनाने का दिन है। केन्द्र सरकार ने आजादी मिलने के बाद संसद के माध्यम से जो 106 लोक कल्याणकारी कानून पारित किये थे वे सभी लागू हो गये। हर नागरिक को शिक्षा और भोजन का अधिकार मिल गया। 70 बरस पहले पाकिस्तान से आये हिन्दू, सिख, इसाई, वाल्मीकि और गोरखा शरणार्थी दोनो राज्यों के नागरिक हो गये जिस अधिकार से उन्हें गैर मुस्लिम होने की वजह से वंचित रखा गया था। रणबीर कोड की जगह भारतीय दंड संहिता लागू हो गयी। बेटियों को विवाह के उपरांत भी दोनो राज्यों मे हर तरह के अधिकार अब बदस्तूर जारी रहेंगे। संपत्ति मे अब उनका भी हिस्सा होगा। देश के किसी भी भाग मे रहने वाले भारतीय नागरिक को अब संपत्ति खरीदने, उद्योग स्थापित करने के साथ ही व्यवसाय करने का हक हासिल हो गया। सरकारी कर्मचारी अब केन्द्र के आधीन हो गये और उनको तीसरे के स्थान पर सातवें वेतन आयोग के तहत एरियर के साथ भूगतान किया जाएगा। दोनो प्रदेशों मे निजी उच्च शिक्षण संस्थान और अस्पताल के अलावा मेडिकल कालेज खुलने हैं। नये विद्युत प्लान्ट लगने के साथ ही सबसे अहम बात तो यह है कि अब सरकारी पैसे की लूट नहीं हो सकेगी। दिल्ली से जो भी राशि आएगी उसकी एक एक पाई का हिसाब देना होगा। पैसा जनता तक पहुँचेगा।सड़कों का जाल बिछाने के मामले मे दोनो प्रदेश हिमाचल की बराबरी करेंगे

अब देश में 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश

गौरतलब है कि 5 अगस्त को सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35A हटाने का फैसला लिया था। इसके अलावा राज्य का दर्जा समाप्त कर इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के तौर पर दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का भी ऐलान किया गया था। आज आधिकारिक रूप से इस बदलाव के लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में काफी कुछ बदल गया है। अब जम्मू-कश्मीर का न तो कोई अलग झंडा होगा और न ही अलग संविधान। दोनों केंद्र शासित प्रदेशों के गठन के साथ ही देश में अब देश में राज्यों की संख्या 28 रह गई है, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 9 हो गई है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जीसी मुर्मू और लद्दाख में आरके माथुर को उपराज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया है।

जम्मू-कश्मीर में खत्म हुई विधान परिषद

जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में कुल 111 विधानसभा सीटें थीं, इनमें से 4 सीटें लद्दाख की थीं। अब इन विधानसभाओं का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अब 107 सीटें होंगी, जिन्हें बढ़ाकर 114 तक करने का प्रस्ताव है। इनमें कुल 83 सीटों के लिए चुनाव आयोजित किए जाएंगे, जबकि 2 सीटें मनोनयन के जरिए भरी जाएंगी। 24 सीटें अब भी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए आरक्षित रहेंगी। जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन कर सीटों की संख्या बढ़ाई जाएगी। वहीं, अब प्रदेश में विधान परिषद का अस्तित्व भी खत्म हो गया है।

लद्दाख में नहीं होगी कोई विधानसभा

जम्मू-कश्मीर में तो विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख का मामला अलग है। यहां कोई विधानसभा नहीं होगी, बल्कि लोकसभा की एक सीट होगी। इसके अलावा स्थानीय निकाय भी होंगे। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल यहां व्यवस्था संभालेंगे और संवैधानिक मुखिया होंगे।

दिल्ली मॉडल पर चलेगी जम्मू-कश्मीर की सरकार नए केंद्र शासित प्रदेश

जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकार और स्थिति दिल्ली या पुदुचेरी जैसे होंगे। जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री अपनी कैबिनेट में अधिकतम 9 मंत्रियों को ही शामिल कर सकेंगे। इसके साथ ही सरकार के किसी भी प्रस्ताव को लागू करने के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी। जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता था, लेकिन केंद्र शासित प्रदेश में यह 5 साल का हो जाएगा। इसके अलावा उपराज्यपाल पर मुख्यमंत्री की तरफ से भेजे गए किसी भी प्रस्ताव को मंजूरी देने की बाध्यता नहीं होगी।

इसलिए सरदार पटेल की जयंती पर लागू हुआ फैसला

इस फैसले को लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने 31 अक्टूबर यानी सरकार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को चुना। दरअसल, इस दिन को सरकार राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मना रही है। देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने देश की आजादी के बाद 500 से भी ज्यादा रियासतों के भारतीय संघ में विलय में अहम भूमिका अदा की थी। अखंड भारत का जो सपना सरदार साहब ने देखा था उसका पहला चरण साकार सो गया। पीओके हासिल करने मे भी अब ज्यादा देर नहीं रह गयी है। जिस दिन वो मिल गया दूसरे चरण का सपना भी हकीकत हो जाएगा।
समाचार लिखते समय तक घाटी मे शान्ति रही।

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