हेमराज

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग से 16 दिन पहले कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। कांग्रेस हरियाणा के दिग्गज दलित नेता और कुछ समय पहले तक पार्टी के सूबे में अध्यक्ष रहे अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने शनिवार को नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। गौरतलब है कि वो हरियाणा चुनाव में उनकी भूमिका सीमित करने से बेहद नाराज थे। इस हफ्ते की शुरुआत में उन्होंने तंवर ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी के टिकट वितरण में गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास के बाहर दिल्ली में प्रदर्शन किया था।

अशोक तंवर के जाने से कांग्रेस को तगड़ा झटका

शनिवार को उन्होंने ट्विटर पर अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए चार पन्नों का लैटर शेयर किया। तंवर ने सोनिया गांधी को संबोधित करते हुए लैटर में लिखा कि पार्टी अपने राजनीतिक विरोधियों की वजह से नहीं बल्कि अपने आंतरिक अंतर्विरोध के कारण राजनीतिक अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। हैरान करने वाली बात ये है कि शुक्रवार को हरियाणा के लिए पार्टी के स्टार प्रचारकों में नाम होने के बावजूद उन्होंने ये फैसला लिया। गौरतलब है कि हरियाणा कांग्रेस कई गुटों में बंटी है। इसमें एक गुट हुड्डा का, दूसरा अशोक तंवर का, तीसरा वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा का, चौथा कांग्रेस विधायक दल की पूर्व नेता किरण चौधरी का और पाँचवा रणदीप सुरजेवाला का है। कहा जाता है कि जींद उपचुनाव में सुरजेवाला को इसी वजह से हार का सामना करना पड़ा था।

तंवर के जाने से क्या नुकसान?

गौरतलब है कि अशोक तंवर राहुल के करीबी नेताओं में से एक हैं। उनके अध्यक्ष रहते हुए पार्टी ने उन्हें हरियाणा का अध्यक्ष बनाया था। उनकी अगुवाई में पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि इस चुनाव में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी। इसके बावजूद राहुल ने उन पर भरोसा बरकरार रखा था। वो पार्टी का एक बड़ा दलित चेहरा। जाट बहुत हरियाणा में दलितों की आबादी 17 फीसदी है। हालांकि पार्टी ने उन्हें हटाकर कुमारी शैलजा को अध्यक्ष बनाया है, वो भी पार्टी का दलित चेहरा है पर संगठन के तौर पर अशोक तंवर का जाना पार्टी के बड़ा झटका है। हरियाणा में जब गुटबाजी चरम दौर में है, ऐसे में उनके जाने से पार्टी की हालत हरियाणा में ज्यादा खराब हो सकती है। हरियाणा में पार्टी पिछले पांच साल से सत्ता से बाहर है। तंवर का प्रभाव सिरसा और उसके आसपास की दर्जन भर सीटों पर हैं। ऐसे में पार्टी के लिए यहां से सीट निकालना अब मुश्किल हो सकता है।

बागी हो सकते हैं कई नेता

गौरतलब है कि अशोक तंवर ने अपने पांच दर्जन से अधिक समर्थकों की सूची कांग्रेस को सौंपी थी। इस सूची का पार्टी ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। तंवर चाहते थे कि पांच साल तक उनके साथ जुड़े रहे समर्थकों को टिकट मिले। लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रहते किसी को टिकट नहीं मिला। हरियाणा के सीएम रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ उनकी प्रतिद्वंदिता से हर कोई वाकिफ है। हुड्डा को पार्टी ने इस चुनाव में पूरी तरह से छूट दे रखी है। ऐसे में अंदरखाने गेम प्लान कर तंवर कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन से कार्यकर्ताओं में वैसे ही निराशा का माहौल था, जिसे गुटबाजी ने और निराशा में बदल दिया है। लोकसभा चुनाव 2019 में हरियाणा में पार्टी को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी।

कुमारी शैलजा के सामने मुश्किलें

सोनिया ने अपनी करीबी कुमारी शैलजा को भले ही हरियाणा की जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन पार्टी के अंदर चल रही खेमेबाजी से निपटना उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने हरियाणा की सभी 90 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इसमें उसने सामान्य वर्ग के 54, अनुसूचित जाति के 17 और पिछड़े वर्ग के 19 लोगों को टिकट दिया है। इसके साथ ही पार्टी ने 10 महिलाओं को मैदान में उतारा है।

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