कानपुर : क्या आप बाॅस के खास हो या किसी काम वाले मसलन ड्राइवर के पुत्र हो या अपने मालिक और उसके पावरफुल दोस्त के लिए चाय बनाते हो और या फिर किसी ऐसे बिजनेसमैन के चिराग हो जो आपको रोशन करने के लिए “तेल बाती” का भरपूर इंतजाम कर सकता हो, इनमें से एक भी योग्यता है तो फिक्र काहे की, यूपी क्रिकेट में आपका स्वागत है। आप वाइल्ड कार्ड एन्ट्री पाने के “हकदार” हो। भले ही आपको बल्ले की ग्रिप कहां है और बाॅल डालने समय कोहनी कितने डिग्री तक मोड़नी है यह पता हो या न पता हो, यूपीसीए के “सलीम- जावेद” आपकी फिल्म रिलीज करवा ही देंगे। यह अलग बात है कि फिल्म चले या फ्लाॅप हो जाए।
अब देखिए न एक बार सबक मिलने के बावजूद यह जोड़ी फिर इतिहास दोहराने से नहीं चूक रही। विजय हजारे ट्राॅफी के लिए घोषित टीम में कप्तान हो या खिलाड़ी का चयन खूब धांधली हुई। यूपी में एक सीनियर टीम कैसे बनती है उसकी बानगी भी देख ही लीजिए।
यहां चयन का पैमाना अच्छा क्रिकेट खेल लेना कतई नहीं है। टीम में जगह बनाने वाले एक औसत दर्जे के खिलाड़ी की योग्यता यह है कि वह यूपीसीए के एक सीनियर पदाधिकारी के ड्राइवर का पुत्र है। यह खिलाड़ी पिछले साल अंडर-23 भी नहीं खेला फिर भी उसे पूरे साल मेहनत करने वाले एक टैलेंटेड खिलाड़ी की बलि चढ़ा कर टीम में डाल दिया गया। टीम को प्रैक्टिस करवाने के लिए सहारनपुर के इसरार अजीम को क्यों टीम के साथ ढोया जा रहा है और इसका खर्च कौन उठाएगा ?
पिछले सीजन के कप्तान अक्शदीप नाथ से उस समर्थ सिंह को रिप्लेस कर दिया गया जिसने ज्यादातर क्रिकेट दिल्ली में खेला और जुगाड़ू खिलाड़ियों से बनने वाली यूपी की टीम का नेतृत्व करने के लिए अभी काफी अनुभव की जरूरत थी। दरअसल यह अपने मोहरे फिट कर मैचों में मनमानी एकादश उतारने की रणनीति के तहत किया गया। हरदीप सिंह, अभिषेक गोस्वामी, शानू सैनी और मुकेश कुमार टाॅप बाॅसेज और “सलीम-जावेद” की जोड़ी से सेटिंग कर प्रतिभाओं को कुचलते हुए टीम में घुस आए।
हरदीप के हाथ तो अपने पिता के जैक से बिना अंडर- 23 खेले ही जैकपाॅट लग गया। अभिषेक डेढ़ साल में पांच मैचों में 200 रन भी न बना पाए पर सीनियर टीम में जगह पा गए। लेफ्ट आर्म स्पिनर शानू सैनी 5 मैचों में सिर्फ 3 विकेट लेने के बावजूद सीनियर टीम की फ्लाइट का टिकट ले आए, जबकि ऑफ स्पिनर मुकेश कुमार एक मैच में बगैर विकेट के चयनकर्ताओं को खुश करने में सफल रहे।
अब यह भी जान लीजिए कि इन जुगाड़ू खिलाड़ियों ने किसकी-किसकी जगह खाई।
लेफ्ट आर्म स्पिनर शिवा सिंह और एक अन्य लेफ्ट आर्म स्पिनर त्रिशाल त्रिवेदी ने गत सीजन में 30-30 विकेट लिए पर “सलीम-जावेद” को खुश नहीं कर सके। अंडर-23 में पिछले सीजन कई शतक लगाने वाले राहुल रावत की फ्लाइट तो 782, संदीप तोमर और शुभम चौबे की क्रमशः 550 और 500 रन बनाने के बावजूद छूट गई।
किसी ड्राइवर का बेटा होना और चाय बनाने वाले का टीम में सिलेक्ट होना हमेशा गर्व की बात है। वह अपनी प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ता है तो सब उसे सिर माथे पर बिठाते हैं लेकिन यदि वह दूसरों से काफी कम टैलेंट होने के बावजूद जब किसी प्रतिभा को को ढकेलकर आगे बढ़ता है तो उसका कॅरियर हमेशा डांवाडोल ही रहता है।
क्या ऐसा संभव है कि प्रतिभाओं के कत्ल के छींटों ने शीर्ष पदाधिकारियों के कपड़े न दागदार किए हों ? तो क्या टैलेंट का “स्लाटर हाउस” चलाते रहने के लिए ही यूपीसीए के पदाधिकारी लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों का विरोध कर अपने पद पर बने रहना चाहते हैं ?
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