विश्वनाथ मंदिर का है मलिकाना हक, अभी तक  न्यास ने उसको अपने नियंत्रण में क्यों नहीं लिया ?

वाल्मीकि का मुखौटा लगाए लुटेरो का नकाब कब नोचेगी योगी सरकार ?

जल्द कब्जे की कार्रवाई करेंगे- मुख्य कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह

विशेष संवाददाता

वाराणसी। दो राय नहीं कि स्वाधीनता के बाद बीते 72 वर्षों के दौरान सफेदपोश लुटेरे हर क्षेत्र में देश को नोचने खसोटने में लगे हुए हैं। भ्रष्टाचार का बाजार इस कदर अपनी जड़ें फैला चुका है कि जल- थल- नभ कुछ भी इनकी गिद्ध दृष्टि से बचा नहीं रह सका। चाहे नदी हो, तालाब हो, पहाड हो या रहे हों आसमान में उउड़ते विमान।

निम्नतम धरातल पर पहुँच चुकी राजनीति, भृष्ट नौकरशाही, बिचौलिये और महाबली माफिया के गठजोड़ ने देश को कितना गिरा दिया है, सोच कर सिहरन होती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर

उत्तर प्रदेश को ही लीजिए। पिछले दिनों सोनभद्र में  इस नापाक गठजोड़ के कुकर्मो का जिसमें गरीब आदिवासी समुदाय दशकों तक पिसता रहा था, जब भयावह हत्याकांड के बाद खुलासा हुआ तब आमजन शर्म से गड़ कर रह गया। ऐसे ही काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर किस तरह से जालसाजी करते हुए भूमि का अतिक्रमण किया गया वह सोचने को मजबूर कर देने वाला था ही। अब एक कालेज की प्रबंध समिति के नाम पर उसी गठजोड़ की मिलीभगत से  एक और आख खोलने वाली लूट सामने आयी है। जिसमें कालोनाइजर है तो राजनेता हैं और तथा कथित विद्वान हैं। ये सब मिल कर एक कालेज पर दशकों से पंजा गड़ा कर करोड़ो की लूट में लगे हैं।

यह विद्यालय न सिर्फ श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पड़ोस मे स्थित है बल्कि उसका स्वामित्व भी काशी पुराधिपति के पास ही है। जी हां, बात सो रही है कालिका गली स्थित श्री विश्वनाथ सनातन धर्म विद्यालय की जिसकी स्थापना लगभग अस्सी साल पहले विश्वनाथ मंदिर के तत्कालीन महंतो के परिवार ने 1940 मे इस पवित्र सोच के साथ की थी कि इस सरस्वती मंदिर में महान भारतीय संस्कृति के संस्कारों के साथ आधुनिक शिक्षा से बच्चों को दीक्षित किया जाएगा। सोसायटी एक्ट के तहत इस विद्यालय का रजिस्ट्रेशन सन 1940 मे किया गया जिसकी प्रबंध समिति मे विश्वनाथ मंदिर के मंहत परिवार के चार सह हिस्सेदारो के अलावा नगर की तत्कालीन गणमान्य हस्तियाँ शामिल थीं। 

रजिस्ट्रेशन के दस्तावेजों के अनुसार विद्यालय के समस्त खर्च का वहन विश्वनाथ मंदिर और छात्रों से ली जाने वाली फीस से होना तय हुआ था। विद्यालय के भविष्य में विस्तार और बढते व्यय के मद्देनजर उसको लगभग 18 एकड़ की विशाल खेती योग्य उपजाऊ जमीन भी दान मे मिली थी, जिस पर खरीफ और रवि की दो फसलें आज भी होती हैं। 

यह विद्यालय जिसकी शुरुआत स्वर्ण मंदिर के ठीक सामने स्थित सात चौक मे हुई थी, वो आज विश्वनाथ धाम के अन्तर्गत सपाट मैदान हो गया है। कालान्तर मे यह विद्यालय जिसमें कमलापति त्रिपाठी, ठाकुर रघुनाथ सिंह जैसी न जाने नगर की जानी मानी हस्तियों ने शिक्षा ग्रहण की थी, इण्टर कालेज हो गया और शिफ्ट हो कर कालिका गली मे स्थित माँ काली मंदिर के बगल मे आ गया। आसपास के मुहल्लो के लिए यह विद्याध्ययन का एकमात्र केन्द्र है। मंदिर खर्च उठाता ही था, सोमवार को बाबा पर चढने वाला दूध भी प्रसाद स्वरूप छात्रों मे वितरित किया जाता था। 

उत्तर प्रेदश सरकार की ओर से शिक्षा संस्थानों का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के बाद भी विद्यालय मे परम्परा का निर्वहन यथावत रहा। 

गड़बडी की शुरुआत विश्वनाथ मंदिर के 1982 में  प्रदेश के हाथ मे आने के बाद हुई। सरकार ने न्यास गठित करते समय गंभीरता से मंदिर की संपत्तियो, विद्यालय आदि की जानकारी लेने की जरूरत ही महसूस नहीं की। 

प्रबंध समिति मे घुसे कतिपय वो चेहरे, जिनका ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, कालेज पर अपना आधिपत्य जमा लिया। भले लोग प्रबंधन मे आए भी तो पापाचार देख कर भाग खड़े हुए। कालेज के फंड मे तमाम तरह के घपले किये ही गये। परसीपुर स्थित अरबों की जमीन की फसल से होने वाली आय को भी वे आराम से आज तक हजम कर रहे हैं। 

उक्त कालोनाइजर जिसने सिगरा स्थित एक कालोनी के विकास के लिए आवंटित खेल का मैदान, पार्क, स्कूल और यहाँ तक कि शौचालय तक विकास प्राधिकरण के तत्कालीन सचिव सहित अन्य अधिकारियों की मिली भगत से बेच डाला। उसी के पास अनाधिकृत भूखंड पर आलीशान होटल भी खोल दिया।

दूसरे बलशाली सज्जन सपा राज में राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त एक राजनेता के दबंग भाई हैं और एक हैं जो विद्वत परिषद के सर्वेसर्वा हैं और अलंकरण वितरित करते हैं। आजीवन सदस्य हों या संरक्षक किसी को भी नहीं पूछा जाता। यह त्रिमूर्ति सभी तरह के धतकरम मे संलग्न है। बताते हैं कि तीस वर्षों तक ब्वायज फंड का पैसा तक जमा नहीं कराया गया था। सदस्यता शुल्क दस रुपया है मगर सो रुपये वसूले जाते हैं।

ताज्जुब तो इस बात का है कि वर्तमान में ईमानदार कही जाने वाली प्रदेश की योगी सरकार के सज्ञान में यह पापाचार नहीं लाया जा सका। परसीपुर में जमीन जिसका भूमिपति मंदिर है उसको श्रीकाशी विश्वनाथ न्यास को कभी का अपने नियंत्रण में ले लेना चाहिए था। यदि ऐसा किया गया होता तो वहां तमाम तरह के विकास कार्य किये जा सकते थे। 

खैर अब न्यास के सामने यह मामला आ चुका है। उसको प्रबंध समिति के तथाकथित स्वयंभू ठेकेदारों के खूनी पंजो से विद्यालय और उसके निमित्त 18 एकड़ खेतिहर जमीन को छुड़ा कर उनके खिलाफ जांच बैठाने की शासन से संस्तुति करने मे देर नहीं करनी चाहिए। उनके आपराधिक कुकृत्यो के लिए उन सभी को जेल भेजे जाने की जरूरत है। श्री काशी विश्वनाथ न्यास और नगर प्रशासन इस दिशा मे कदम कब बढाता है, इसका इन्तजार रहेगा।

विशाल सिंह – सीईओ, काशी विश्वनाथ न्यास

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने इस संबंध में सम्पर्क किये जाने पर कहा कि न्यास अपने वकीलों के माध्यम से  दस्तावेजों की छानबीन कर रहा है। जल्दी ही कॉलेज और खेतिहर जमीन को अपने कब्जे में ले लेगा।

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