कानपुर : ऐसा नहीं है कि आप खुद को खुदा समझ जो चाहें करते रहें और सब: आंख मूंदे बैठे रहें। यह तय है कि यदि जांच हो तो कमला क्लब में 11 सितम्बर को हुए यूपीसीए के चुनाव निष्पक्षता की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे। एजीएम से एक दिन पहले देर रात कई वरिष्ठ पदाधिकारियों की मौजूदगी में आदर्श चुनाव आचार संहिता की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं। सदस्यों को चुनाव से पहले ग्रैंड पार्टी देकर कमेटी भी फाइनल कर दी गई, एजीएम में सिर्फ उस पर मोहर लगनी थी सो लग भी गई। यूपीसीए में ऐसा पहली बार नहीं हुआ। यह वर्षों से चली आ रही परम्परा का एक और आयोजन भर था।

इस बार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और गाइड लाइन्स का पालन करते हुए चुनाव करवाए जाने थे, इसलिए पूरी सतर्कता बरतने की जरूरत थी लेकिन यूपीसीए पुराने ढर्रे से ही चला। और तो और पार्टी के अगले दिन एजीएम के सदस्यों को उपहार भी दिया गया। मेहमानों को महंगे होटल में रुकवाया गया और उनको लाने ले जाने के लिए गाड़ियां भी लगवाई गईं। ताज्जुब यह है कि इतना सब हुआ फिर भी चुनाव अधिकारी नवीन चावला को यह सब पता कैसे नहीं चला ?
कमाल की बात यह भी है कि एजीएम अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बगैर हो गई और 70+ उम्र के अयोग्य सदस्य ने उसका संचालन किया, फिर भी चुनाव अधिकारी नवीन चावला कैसे कुछ देख और समझ नहीं पाए ? उन्होंने अपराह्न 2 बजकर 40 मिनट पर एजीएम के दौरान हाॅल में प्रवेश किया और 2 बजकर 53 मिनट पर हाॅल से निकल भी गए। क्या किसी चुनाव अधिकारी के लिए इलेक्शन की निष्पक्षता का जांच करने के लिए 13 मिनट पर्याप्त हैं ?

फ्री एंड फेयर इलेक्शन के इनमें से अधिकांश नियमों की उड़ाई गईं धज्जियां :

– इलेक्शन के प्रचार के लिए एक समय सीमा निर्धारित की जाएगी और इस समय सीमा के दौरान किसी भी प्रकार का प्रलोभन, घूस, उपहार, शराब इत्यादि का वितरण पूर्णतया वर्जित है।

– इलेक्शन में शामिल मेंबर्स को इलेक्शन की जगह तक लाने के लिए वाहन तक प्रदान करना वर्जित है। क्या यूपीसीए के चुनाव में इन नियमों का खुला उल्लंघनं नहीं किया गया ?

बहुत ही आसान है यह कहना कि सीओए और सुप्रीम कोर्ट खेल संघों की व्यावहारिक दिक्कतों को नहीं समझ रहा लेकिन खेल संघों को भी अपने क्रिया कलापों से एक उदाहरण पेश करना चाहिए था कि हम जो भी कर रहे हैं पूरी पारदर्शिता के साथ कर रहे हैं। क्या यह इलेक्शन के नियमों का ही भय था कि विगत कई वर्षों से एजीएम की पूर्व संध्या पर होने वाली पार्टी (मिनी एजीएम) जो 80 फिट रोड के एक होटल में हुआ करती थी अब नवाबगंज स्थित एक पदाधिकारी के निजी रिसोर्ट पर देर रात आयोजित की गयी ?

सूत्रों की मानें तो एजीएम में आये सदस्यों के होटल बिल से लेकर वाहन आदि तक का भुगतान संघ ने ही किया। एजीएम के सदस्यों को लेदर बैग भी बांटे गए। ऐसे में निष्पक्ष और साफ सुथरा चुनाव कैसे मान लिया जाए ?

आज जो यह सवाल राष्ट्रीय मीडिया से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में पूंछा जा रहा है कि एजीएम मात्र 13 मिनट में कैसे खत्म हो गयी, तो उसका केवल एक ही जवाब है कि जब सब कुछ एक रात पहले ही तय हो गया तब सुबह समय क्यों ख़राब किया जाता। इस सबसे इतर एक सवाल राज्य खेल संघ से पूंछा जाना चाहिए कि आज उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं लेकिन क्यों केवल 41 जिलों को ही सदस्य्ता दी गयी है ? आखिर इन 41 जिलों में से भी चुनिंदा जिलों के वही जाने पहचाने चेहरे यूपीसीए की कार्यसमिति में क्यों आ रहे है ?

कुछ सदस्य यहां तक बोलते हैं कि पिछले 35 साल से मैं ही अपने जिले का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। क्या अन्य जिलों में खेल के लिए काम करने वालों का अकाल है या जो जिले कई वर्षों से एक ही व्यक्ति विशेष को भेज रहे हैं वहां कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है ? दरअसल इसी एकाधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने करारा प्रहार किया है जिसका दर्द सभी खेल संघों के द्वारा बार-बार दिए जाने वाले बयानों और याचिकाओं में नजर आता है।

Sports leak

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