ऋचा बाजपेयी
नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। मलिक के संगठन जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) को यूएपीए यानी अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) ट्रिब्यूनल की तरफ से गैर-कानूनी संगठन करार दे दिया गया है। इस वर्ष 22 मार्च को गृह मंत्रालय की तरफ से संगठन को बैन कर दिया गया था। ट्रिब्यूनल की तरफ से कहा गया है कि मलिक के संगठन जेकेएलएफ को गैर-कानूनी करार देने के जिन सुबूतों की जरूरत है, वे सभी पर्याप्त हैं।
‘देश विरोधी नहीं है यासीन मलिक’
जिस समय सुनवाई चल रही थी मलिक के वकील आरएम तुफैल ने कहा कि यासिन मलिक ‘कभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अलगाव या आतंकवाद में शामिल नहीं रहा है।’ तुफैल न के मुताबिक यासिन मलिक ने कभी भी ऐसा बयान नहीं दिया जो देश के विरोध में हो या फिर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को भंग करता हो।’ इस पर ट्रिब्यूनल ने कहा कहा कि मलिक के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हैं जिनमें सबसे पुरानी वर्ष 1987 की है। ट्रिब्यूनल के मुताबिक मलिक ने लगातार विरोध प्रदर्शन किया और नारेबाजी की। ये नारे राज्य की संप्रभुता के खिलाफ थे और बिना किसी संदेह के राष्ट्रविरोधी थे। गौरतलब है कि 22 मार्च को कैबिनेट की सुरक्षा समिति की मीटिंग में मलिक के संगठन पर बैन लगान का फैसला किया गया था।
मलिक की वजह से बढ़ा अलगाववाद
केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा ने बताया था कि केंद्र सरकार ने यूएपीए एक्ट 1967 के तहत जेकेएलएफ को गैरकानूनी संगठन घोषित किया था। यह कदम सरकार के द्वारा आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत उठाया गया है। गृह सचिव ने बताया यासीन मलिक के नेतृत्व में जेकेएलएफ ने घाटी में अलगाववादी विचारधारा को हवा दी और यह सन् 1988 से हिंसा और अलगाववादी गतिविधियों में सबसे आगे रहा है। यासीन मलिक पर आरोप है कि सन् 1994 से भारत विरोधी गतिविधियां चलाता आ रहा है।