आजम खां मामले में मुलायम सिंह यादव आगे आकर पुराने रिश्तों को निभाना भर नहीं है बल्कि इस मुद्दे के सहारे सपा को मजबूती दिलाने का भी प्रयास है। सपा मुखिया अखिलेश यादव भले ही इस पत्रकार वार्ता में न रहे हों लेकिन जिस तरह नेताजी ने सपा मुख्यालय में लंबे अरसे बाद पत्रकारों से बातचीत की उससे यह साफ हो गया कि इसके पीछे कहीं न कहीं अखिलेश की भूमिका जरूर है। वह आजम के साथ पूरी पार्टी के होनेे का संदेश तो दिलाना ही चाहते हैं साथ ही पार्टी को फिर से सहेजने की कोशिश भी कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का यही निष्कर्ष है। इनका कहना है कि अखिलेश का प्रयास पुराने लोगों को उनके सम्मान बहाली का भरोसा दिलाना और मुसलमानों को भी यह समझाना कि इस समुदाय को लेकर समाजवादी पार्टी के सरोकारों में कोई कमी नहीं आई है। पर, सवाल उठता है कि इसके लिए अखिलेश को नेताजी को आगे लाने की जरूरत क्या थी।
वह खुद यह काम कर सकते थे। इसे साफ करते हुए वरिष्ठ पत्रकार हनुमान सिंह ‘सुधाकर’ बताते हैं कि आजम के बचाव में अगर नेता जी को कार्रवाई का विरोध करके सिर्फ रिश्तों का निर्वाह करना होता तो वह इससे पहले भी पत्रकार वार्ता कर सकते थे।
पत्रकारों से बातचीत के लिए मुलायम सपा मुख्यालय आने को बाध्य नहीं थे। कहीं न कहीं अखिलेश यादव के ही चाहने पर ही वह सपा मुख्यालय आए। सपा मुख्यालय से ही मुलायम की यादव की प्रेस कांफ्रेंस की सूचना देने से भी ऐसा ही लग रहा है।
साभार : अमर उजाला