प्रदीप श्रीवास्तव

अपने जीवन काल में ही एक मिथकीय हीरो बन चुके हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिए जाने की मांग और चर्चा अक्सर होती रही है लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि उन्हें यह सम्मान क्यों और कैसे नहीं मिला?

आज मेजर ध्यानचंद की 40वीं पुण्यतिथि है.

2014 में मेजर ध्यानचंद के नाम की सिफ़ारिश को ठुकराते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार ने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को ‘भारत रत्न’ दे दिया था ।

आरटीआई से मिली जानकारियों के मुताबिक 2013 में मेजर ध्यानचंद का बायोडेटा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय में कई महीने पहले ही पहुंच चुका था। उस पर पीएम की स्वीकृति भी मिल चुकी थी लेकिन बाद में अचानक सचिन के नाम पर मुहर लगा दी गई।

11 अप्रैल 2011 को भाजपा सांसद मधुसूदन यादव ने केंद्र सरकार से सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने के लिए नियमों में बदलाव का आग्रह किया था। तब तक यह सम्मान साहित्य, कला, विज्ञान और जनसेवा के क्षेत्र में दिया जाता था, खिलाड़ियों के लिए भारत का शीर्ष सम्मान अर्जुन अवार्ड था।

इसके बाद सरकार ने भारत रत्न सम्मान के नियमों में बदलाव करते हुए उल्लेखनीय कार्य करने वाले सभी भारतीयों को अवार्ड के योग्य माना जिसमें खेलकूद भी शामिल हो गया। 22 दिसंबर 2011 को इंडियन हॉकी फ़ेडरेशन ने ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की सिफारिश की।

मेजर ध्यानचंद के पुत्र और पूर्व ओलम्पियन हॉकी खिलाड़ी अशोक कुमार बताते हैं कि “पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल 12 जुलाई 2013 को तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह से मिल कर भारत रत्न ध्यानचंद को दिए जाने की मांग के साथ ध्यानचंद जी का एक बायोडेटा सौंपा, जिस पर खेल मंत्री से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक की सहमति रही.म। अनौपचारिक रूप से मुझसे कहा गया कि ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा कुछ माह में ही कर दी जाएगी. लेकिन, बाद में पासा ही पलट गया।”

आनन-फानन में सचिन को भारत रत्न

आरटीआई एक्टिविस्ट और खेल प्रेमी हेमंत दुबे ने मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने से जुड़ी सभी फाइलों की मांग भारत सरकार से की थी।

इन दस्तावेजों से यह बात साफ हो जाती है कि आनन-फानन सचिन को भारत रत्न देने की औपचारिकता पूरी कर ली गई।

14 नवंबर 2013 से वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ सचिन का विदाई टेस्ट शुरू हुआ, अगले दिन 15 नवंबर को प्रधानमंत्री ने इसे राष्ट्रपति के पास भेजा, जिसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तत्काल मंजूर कर दिया, 16 नवंबर को मैच ख़त्म होने से पहले ही सचिन को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी 

वहीं, दूसरी ओर 17 जुलाई 2013 को खेल मंत्रालय ने मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की विधिवत सिफारिश प्रधानमंत्री को भेजी। मेजर ध्यानचंद की फाइल पीएमओ ऑफिस में महीनों चलती रही। मेजर ध्यानचंद के पुत्र और पूर्व ओलम्पियन अशोक कुमार बताते हैं जब निर्णय की बारी आई तो फैसला ही पलट दिया 

हेमंत दुबे कहते हैं कि “उस समय सचिन तेंदुलकर करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर राज करते थे, जबकि मेजर ध्यानचंद बीते जमाने के खिलाड़ी थे।कांग्रेस ने चुनावी गणित से फायदा-नुकसान सोचा”।

ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार कहते हैं कि ध्यानचंद को पूरा देश जानता है लेकिन सरकारी सिस्टम में ध्यानचंद सिर्फ फाइलों, योजनाओं और प्रतिमाओं में सीमित हैं।उन्हें भारत रत्न दिलाने के लिए आम लोगों को धरना देना पड़ता है. रैली निकालनी पड़ती है और सरकार को पत्र लिखना पड़ता है।

मोदी सरकार का दौर

यूपीए के बाद आई मोदी सरकार ने पंडित मदन मोहन मालवीय मरणोपरांत को भारत रत्न सम्मान दिया, लेकिन मेजर ध्यानचंद को ओर शायद उसका ध्यान नहीं गया।

हेमंत दुबे कहते हैं कि “असल में, भारत रत्न अवार्ड का भी राजनीतिकरण हो चुका है। जब महाराष्ट्र चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में यह लिख दिया कि चुनाव जीतने पर वीर सावरकर को भारत रत्न दिया जाएगा”।

सरकारें वर्षों से भारत रत्न देने के फ़ैसले में सियासी नफ़ा-नुकसान देखती रही हैं इसकी कई मिसालें मिल सकती हैं।

ध्यानचंद को भारत रत्न मिले, इसके लिए धरना देने, पत्र लिखने और रैली निकाल चुके प्रदीप जैन बताते हैं, “मैं मंत्री रहते हुए पीएम मनमोहन सिंह, शशि थरूर, मोहम्मद अज़हरुद्दीन, सीपी जोशी, राज बब्बर, संजय निरूपम, मीनाक्षी नटराजन जैसी 170 महत्वपूर्ण हस्तियों और सांसदों के हस्ताक्षरयुक्त पत्र सौंप चुका हूँ.”

सन 2014 के बाद से मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने का प्रस्ताव हर बार सरकार के पास भेजा जाता रहा है लेकिन, सन 2015 में अटल बिहारी वाजपेयी और प्रणब मुखर्जी को और सन 2019 में भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को यह सम्मान दिया गया लेकिन हॉकी के जादूगर की बारी नहीं आ सकी।

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