✍ बीना चौधरी (एक्सपर्ट)
भारत में आम तौर पर महिलाओं को समाज में विभिन्न मुद्दों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समस्याएँ इतनी हैं कि यदि सभी को लिखा जाय तो एक पोथा तैयार हो सकता है। इसलिए यहाँ चर्चा कुछ खास परेशानी और समस्याओं की करना चाहती हूं। साथ ही उनकी स्थिति मे आ रहे तेजी से बदलाव की भी चर्चा होगी।
चयनात्मक गर्भपात और कन्या भ्रूण हत्या: यह भारत में वर्षों से सबसे आम प्रथा है जिसमें भ्रूण के लिंग निर्धारण और चिकित्सा पेशेवरों द्वारा लिंग चयनात्मक गर्भपात के बाद माँ के गर्भ में कन्या भ्रूण का गर्भपात किया जाता है।
यौन उत्पीड़न: यह परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों, दोस्तों या रिश्तेदारों द्वारा घर, सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, परिवहन, कार्यालयों आदि में यौन शोषण के विभिन्न रूप हैं ।
दहेज और दुल्हन को जलाना: यह आमतौर पर शादी के दौरान या बाद में निम्न या मध्यम वर्गीय परिवार की महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली एक और समस्या है। लड़कों के माता-पिता दुल्हन के परिवार से एक समय में अमीर होने के लिए बहुत सारे पैसे मांगते हैं। दहेज की मांग पूरी न होने की स्थिति में दूल्हे का परिवार दुल्हन को जलाता है। 2005 में, भारतीय राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 6787 दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए थे। कड़े दहेज कानून के बावजूद अब भी बहुओं के साथ पाशविक प्रवृति जारी है।
शिक्षा में असमानता: आधुनिक युग में भी महिलाओं की शिक्षा का स्तर पुरुषों की तुलना में कम है। महिला निरक्षरता ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। जहां 63% या उससे अधिक महिलाएं विस्थापित हैं।
घरेलू हिंसा: यह महामारी की तरह चलन मे आज भी भारतीय समाज मे व्यापक रूप से विद्यमान है एक महिला और बाल विकास अधिकारी के अनुसार लगभग 70% भारतीय महिलाओं को यह महामारी प्रभावित करती है। यह प्रताड़ना पति, रिश्तेदार या परिवार के अन्य सदस्य द्वारा दी जाती है।
हालाँकि पुत्री को भी अब पैतृक संपत्ति का अधिकार मिल गया है पर व्यवहार मे देखा गया है कि उनको यह हक नहीं मिल पाता। दहेज से बचने के लिए वारिस माता-पिता द्वारा लड़कियों का प्रारंभिक विवाह कर दिया जाता। यह ग्रामीण भारत में अत्यधिक प्रचलित है।
अपर्याप्त पोषण: बचपन में अपर्याप्त पोषण उनके बाद के जीवन में महिलाओं को प्रभावित करता है विशेषकर निम्न मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों की महिलाओं को।
महिलाओं को पुरुषों से हीन माना जाता है इसलिए उन्हें पहले सैन्य सेवाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। लेकिन अब स्थितियाँ बदल रही हैं और वे पुरुषों से सैन्य सेवाओं मे भी कंधे से कंधा मिलाने लगी हैं।
भारतीय समाज में विधवाओं की स्थिति कभी बद से बदतर हुआ करती थी। यहाँ तक कि उन्हें पति की मृत्यु होने पर साथ ही अग्नि की भेंट कर दिया जाता था। उनके साथ खराब व्यवहार किया जाता था और उन्हें सफेद कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता था। राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारको ने सती जैसी कुप्रथा को समाप्त करने मे 19 वीं सदी मे महती भूमिका निभायी। शिक्षा के प्रसार के साथ समाज मे बदलाव आया है। आज विधवा हेय नहीं है और खुल कर उनके पुनर्विवाह भी होने लगे हैं। समाज की उनके प्रति सोच भी बदली है। लेकिन मानना होगा कि अभी हमारे देश मे महिलाओं के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है।
देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने महिला उत्थान के लिए क्रान्तिकारी कदम उठाए हैं । बेटी बचाओ, बेटी पढाओ का उनका 2014 मे सत्तसीन होने के बाद से शुरू किया गया अभियान रंग लाने लगा है। शिक्षा के क्षेत्र मे भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है। तीन तलाक जैसी कुप्रथा पर कानून द्वारा रोक एक साहसिक कदम है। इससे मुस्लिम महिलाओं को ताकत मिली है। उनका अब तीन शब्दों से हो रहा शोषण बंद हो चुका है।
कुल मिलाकर यह बेहिचक स्वीकार करना होगा कि पिछले पांच- छह वर्षों मे महिलाओं के प्रति केन्द्र और राज्य सरकारें आगे आयी हैं और यदि यह सिलसिला और गति पकड़ता है तो पुरुष मूलक समाज मे भारतीय महिलाएं भी आने वाले समय मे खुद को उनके समकक्ष रखने मे कामयाब होंगी।