भावना पांडेय
बेंगलुरु। लोकसभा चुनाव 2019 में अपने इतिहास की सबसे शर्मनाक हार का सामना कर चुकी कांग्रेस के पिरोधा नेता विभिन्न राज्यों में पार्टी संगठन पर काबिज होने के लिए एक-दूसरे की गर्दन नापने पर आमादा हैं। इस सिलसिले में वे अपने आलाकमान को आंखें दिखाने और पार्टी छोड़ने की धमकी देने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। भीतरी कलह से ग्रस्त सूबों में सबसे ज्यादा संगीन हालत मध्यप्रदेश की है, जहां कांग्रेस पूरे डेढ़ दशक के अंतराल के बाद जैसे-तैसे सत्ता में आई हैं और शुरुआत से ही पार्टी के नेता ही उसकी चूले हिलाने में जुटे हुए हैं। गतिरोध पार्टी में छाया है अपने आप इस बात की पुष्टि हो जाती है कि अब वो वक़्त आ गया है जब हम किसी भी क्षण पार्टी को बिखरते हुए देख सकते हैं।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ और गुना से पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच पनपी जंग बढ़ती ही जा रही हैं। कमलनाथ को घेरते हुए अब सिंधिया ने मध्य प्रदेश में किसानों की कर्ज माफ़ी को मुद्दा बनाया है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिराजे सिंधिया के बीच का टकराव सी बात की पुष्टि कर रहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी जहां गहरी है तो वहीं विरोध के स्वर भी बुलंद हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या सूबे में एक बार फिर सिंधिया ‘राजघराने’ की चहारदीवारी के भीतर प्रदेश कांग्रेस सरकार के पतन की पटकथा रची जा रही है! ठीक वैसी ही पटकथा जैसी कि करीब आधी सदी पहले 1967 में पूर्व ग्वालियर रियासत में महारानी रहीं विजयाराजे सिंधिया ने रची थी।
विजयाराजे ने विधायकों को साध कर गिराई थी सरकार
बता दें ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजयाराजे उस समय कांग्रेस में हुआ करती थीं और मध्यप्रदेश में द्वारका प्रसाद (डीपी) मिश्र की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार थी। युवक कांग्रेस के एक जलसे में भाषण करते हुए डीपी मिश्र ने राजे-रजवाड़ों को लेकर एक तीखा कटाक्ष कर दिया। जलसे में मौजूद विजयाराजे सिंधिया को वह कटाक्ष बुरी तरह चुभ गया। उन्होंने मिश्र को सबक सिखाने की ठानी। उन्होंने मिश्र से असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों को गोलबंद करना शुरू किया। किसी समय मिश्र के बेहद करीबी रहे गोविंद नारायण सिंह को भी वे अपने पाले में ले आने में वे सफल हो गईं। गोविंद नारायण सिंह भी विंध्य इलाके की रीवा रियासत से ताल्लुक रखते थे। उधर विधानसभा में विपक्ष भी पहली बार अच्छी-खासी संख्या में मौजूद था। जनसंघ के 78 और सोशलिस्ट पार्टी 32 विधायक थे। इसके अलावा निर्दलीय व अन्य छोटे दलों के विधायकों को भी विजयाराजे ने साध लिया था। जब कांग्रेस के 36 विधायक उनके साथ हो गए तो उन्होंने विधानसभा में डीपी मिश्र की सरकार को ही गिरा दिया। डीपी मिश्र की सरकार गिरने के बाद गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में संयुक्त विधायक दल (संविद) की सरकार बनी। वह देश की पहली संविद सरकार थी।
इस समय भी मध्यप्रदेश के राजनीतिक हालात कमोबेश 5 दशक पहले जैसे ही हैं। विधानसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के संख्याबल के लिहाज से भी और सत्तारूढ़ दल की अंदरुनी कलह के मद्देनजर भी। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी में सूबे के शीर्ष नेताओं के बीच जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के आक्रामक तेवर को देखकर लगता हैं कि राज्य में कांग्रेस सरकार का पतन तय हैं। सूबे का मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में पिछड़ जाने और फिर अप्रत्याशित रूप से लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद सिंधिया इस समय पार्टी एक तरह से भूमिकाविहीन हैं। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन के लिए बनी छानबीन समिति का अध्यक्ष बनाया था , लेकिन सिंधिया इस जिम्मेदारी से संतुष्ट नहीं थे। वे अपने गृह प्रदेश में कांग्रेस संगठन का मुखिया और प्रकारांतर से राज्य में सत्ता का दूसरा केंद्र बनना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि सत्ता का दूसरा केंद्र बनकर ही वे राज्य में सत्ता का पहला केंद्र यानी मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
किसानों की कर्जमाफी में सरकार की पोल खोलकर कांग्रेस का कर रहे पतन
बता दें दिग्विजय सिंह के भाई के बाद अब गुना से पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश सरकार की कर्जमाफी पर सवाल उठाए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने माना कि उनकी सरकार का किया हुआ कर्जमाफी का वादा पूर्णतया पूरा नहीं हुआ है। ध्यान रहे कि इससे पहले दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा था कि सूबे के किसानों के साथ धोखा हुआ है इसलिए राहुल गांधी को किसानों से माफी मांगनी चाहिए। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया के बीच का टकराव सी बात की पुष्टि कर रहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी जहां गहरी है तो वहीं विरोध के स्वर भी बुलंद हैं। गौर करने वाली बात हैं मध्यप्रदेश में 15 वर्ष बाद सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस ने जोश जोश में कर्जमाफी की बात कही थी।
दिलचस्प बात ये भी है कि अपनी योजना को अमली जामा पहनाते हुए शुरुआत में राज्य के किसानों के लिए कांग्रेस ने कर्जमाफी तो की मगर ये कितनी हुई इसका किसी को कोई अंदाजा नहीं है। बता दें कि अभी तक इस सन्दर्भ में कांग्रेस ने कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है। ये कोई पहली बार नहीं है जब चुनाव के बाद मध्य प्रदेश में कर्जमाफी एक बड़ा मुद्दा बना हैं। विपक्ष लगातार इस मुद्दे को हथियार बना रहा है और राज्य सरकार को घेर रहा है। मध्य प्रदेश में किसानों की कर्जमाफी पर विपक्ष का यही कहना है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी ने लोगों को ठगते हुए उनके साथ एक बड़ा धोखा किया है। वहीं सिंधिया ने किसानों की कर्जमाफी को लेकर सरकार की पोल खोलकर कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी हैं। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ का सामने आना और सिंधिया का कमलनाथ और गवर्नेंस पर सवाल उठाना ये बता देता है कि जैसी हालत कांग्रेस पार्टी की है वो दिन दूर नहीं जब कांग्रेस देश का अतीत बन कर रह जाए।
पोस्टर में मोदी-शाह के साथ सिंधिया
मध्य प्रदेश के भिंड में कांग्रेस के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक पोस्टर चर्चा का विषय बन गया है। इस पोस्टर में सिंधिया की तस्वीर के साथ पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह की भी तस्वीर है। यह पोस्टर बीजेपी के स्थानीय नेता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुच्छेद 370 पर समर्थन के लिए लगाया है। यह पोस्टर ऐसे समय में आया है जब ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी खबरें चर्चा में है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को सीएम पद का दावेदार मान रहे थे। लेकिन अनुभवी कमलनाथ ने साधते हुए सभी समीकरणों को साधते हुए मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी पाई थी।
उस समय सिंधिया के समर्थकों ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी भी जताई थी जिसमें कुछ विधायक भी शामिल थे। वहीं मुख्यमंत्री होते हुए भी कमलनाथ ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अभी नहीं छोड़ी है। जो कि उन्हें छोड़ना ही है। कमलनाथ अध्यक्ष के दायित्व से मुक्त तो होना चाहते हैं, लेकिन नया अध्यक्ष ऐसा चाहते हैं, जो पूरी तरह उनके अनुकूल हो और सत्ता का दूसरा केंद्र बनने की कोशिश न करे। इस मामले में दिग्विजय सिंह भी उनके साथ हैं यानी दोनों ही नेता सिंधिया को अध्यक्ष पद से दूर रखना चाहते हैं। दिग्विजय की कोशिश इस पद पर दिवंगत कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के बेटे और पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह को बैठाने की है। अजय सिंह रिश्ते में दिग्विजय सिंह के दामाद लगते हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ भी इस सिलसिले में आदिवासी कार्ड का इस्तेमाल करते हुए राज्य के गृहमंत्री और अपने विश्वस्त बाला बच्चन का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे कर चुके हैं। कुल मिलाकर सिंधिया को रोकने के लिए कमलनाथ और दिग्विजय ने तगड़ी घेराबंदी की है।
‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ के अंदाज में सिंधिया
दूसरी ओर सिंधिया इस बार ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ या ‘करो या मरो’ के अंदाज में मैदान में हैं। उनके समर्थक भी अब हर हाल में अपने नेता को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और आगे चलकर मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। इस सिलसिले में सिंधिया समर्थक मंत्रियों और विधायकों ने जिस तरह के आक्रामक तेवर अपना रखे हैं, वे अभूतपूर्व हैं। हाल फिलहाल में जैसा रवैया सिंधिया का है साफ़ है कि वो पार्टी और पार्टी की नीतियों से खासे खफा हैं. ध्यान रहे कि अभी बीते दिनों ही सिंधिया ने पार्टी के भीतर उठ रही बागी आवाजों का संज्ञान लिया था और कहा था कि कांग्रेस को आत्म अवलोकन की जरूरत है और पार्टी की आज जो स्थिति है, उसका जायजा लेकर सुधार करना समय की मांग थी।
ये बातें सिंधिया ने तब कहीं थीं जब उनसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार सलमान खुर्शीद को लेकर सवाल हुआ था। सिंधिया और उनके समर्थकों की इन्हीं गतिविधियों और तेवरों के आधार पर कहा जा रहा है कि अगर प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए इस बार सिंधिया के दावे को अनदेखा किया गया तो वे अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस से अलग होकर कमलनाथ सरकार को गिरा देंगे। कहा जा रहा है कि कांग्रेस से अलग होकर सिंधिया क्षेत्रीय पार्टी का गठन कर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं गौरतलब है कि ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने भी 1996 के लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस से अलग होकर ‘मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस’ का गठन किया था और उसी पार्टी से चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंचे थे।
उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने उन सभी कांग्रेस नेताओं को टिकट देने से इंकार कर दिया था जिनके नाम जैन हवाला डायरी कांड में आए थे। माधवराव सिंधिया भी टिकट से वंचित उन नेताओं में से एक थे।ऐसे में अब ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ का सामने आना और सिंधिया का कमलनाथ और गवर्नेंस पर सवाल उठाना ये बता देता है कि जैसी हालत कांग्रेस पार्टी की है वो दिन दूर नहीं जब कांग्रेस देश का अतीत बन कर रह जाए।
ये तमाम गतिरोध इस लिए भी कांग्रेस पार्टी के लिहाज से गंभीर है क्योंकि तीन राज्यों में चुनाव हैं। जैसी परफॉरमेंस पार्टी की लोक सभा चुनाव में रही कह सकते हैं कि ये पार्टी के लिए महत्वपूर्ण समय था। मगर पार्टी जिस तरह चुनावों को नजरंदाज करके आपसी कलह को सुलझाने में जुटी हैं। ये आपसी कलह बुरे संकेत दे रहे हैं और जिसे पार लगाना न राहुल गांधी के बस की बात है और न ही सोनिया गांधी में इतनी क्षमता है कि वो पार्टी से जुड़े लोगों का मन मुटाव दूर कर सकें।