बस सरकार की हरी झंडी का इंतजार : रावत
पदम पति
(वरिष्ठ पत्रकार)
पांच अगस्त को 370 और 35 A को नाबदान मे फेंक दिए जाने के बाद से बौखलाया पाकिस्तान लगातार धमकी पर धमकी दे रहा था। सेना के जनरल से संतरी तक भारत पर परमाणु हमले की गीदड़भभकी दी जा रही थी। सेना की ओर से कहा जा रहा था कि कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस है और खून के आखिरी कतरे तक वह लड़ेगी। उसका एक शेखचिल्ली मंत्री तो ऐलानिया बोला कि हम आध पाव और पाव भर वजन वाले स्मार्ट बम के इस्तेमाल से भारत को उसकी औकात बता देंगे और यह आर पार की जंग होगी।
राशिद की यह धमकी इसलिए हल्के मे लेने की भूल नहीं की जा सकती कि कंगाल पाकिस्तान के पास पारम्परिक युद्ध करने की कुवत नहीं रह गयी है। यह राशिद ने भी स्वीकार किया।
कहते हैं न कि सौ कुम्हार की तो एक लोहार की। भारत की ओर से पहली बार पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया 12 सितम्बर को थल सेनाध्यक्ष विपिन रावत ने। उनकी इस हुंकार से कि हमारी सेना पीओके पर हमले के लिए तैयार है बस सरकार की हरी झंडी का इन्तजार है, निश्चित रूप से पाक की घिग्घी बंध गयी होगी। इमरान खान पीओके में शुक्रवार को अपने तीसरे दौरे में भी वही पुराना राग अलापते नजर आए। वह और उनके कारिन्दे भले ही कश्मीर को गले की नस बताते रहें। लेकिन वे भूल गये हैं शायद कि पीओके, जिसमे बाल्टिस्तान-गिलगित और आक्साई चीन भी शामिल है,पाकिस्तान से मुक्ति चाहता है। उन क्षेत्रों में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। आजिज आकर पाक ने उस पूरे इलाके में मोबाइल और इन्टरनेट सेवा बंद कर दी है। भारत ने चीन को भी साफ तौर पर चेता दिया है कि कारिडोर के लिए पीओके मे अवैध सड़क निर्माण का काम वह तत्काल रोके।
कश्मीर के नाम पर दुनिया भर के मुसलमानों को एक होने की अपील कर रहा महान क्रिकेट कप्तान मगर राजनीतिक मोर्चे पर सबसे नाकाम और गैरजिम्मेदार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का यह मजहबी दाँव भी फुस्स होकर रह गया। कश्मीर पर एक भी मुस्लिम देश का उसको समर्थन हासिल नही हो सका। यहाँ तक कि हमेशा पाक के साथ खड़ा रहने वाला तुर्की भी अभी तक मौन ही है। यही नही भारत के 23 करोड़ मुसलमानों को भी उकसाने का कोई असर नहीं हुआ। शीर्ष मुस्लिम संस्था जमायते उल्मा-ए- हिन्द ने मुहतोड़ जवाब देते हुए कहा कि कश्मीर भारत का था, है और हमेशा रहेगा। मुसलमान देश के साथ कंधे से कंधा सटा कर इस मसले पर खड़ा है।
पाकिस्तान हम पर हमला करने की चार बार नापाक कोशिशें कर चुका है। बताने की जरूरत नहीं कि हर बार उसको नीचा देखना पड़ा। एक कड़वा सच यह भी है कि मैदान में हम हमेशा जीते पर वार्ता की मेज पर हारते ही रहे हैं। पीओके वापस पाने के कई मौके इस दौरान हाथ लगे मगर हम चूकते रहे दुश्मन के दोगलेपन और मक्कारी के चलते।
भारतीय जनमानस भी अपनी सरकार के साथ है। राहुल गांधी जैसे अपवाद हैं और कश्मीर पर उनके आत्मघाती बयान को पाक ने यूएनओ को भेजे अपने डोजियर मे इस्तेमाल किया है। हालाँकि इस मसले पर कांग्रेस मे भी विभाजन की स्थिति है। युद्ध की स्थिति मे देशवासियों को तन मन धन से आगे आना होगा। यदि ऐसा हो गया तो विश्वास मानिए कि अखंड भारत का चिरप्रतीक्षित स्वप्न साकार होने मे अब ज्यादा विलम्ब नहीं । देशवासियों को शिद्दत से इन्तजार है 27 सितम्बर का जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी यूएनओ में दहाड़ने वाले हैं। उसी दिन इमरान खान को भी राष्ट्र संघ में बोलना है।
सरकार ने संकेत दे दिए हैं पीओके पर एक सुविचारित रणनीति के। पूर्व सेनाध्यक्ष और केन्द्रीय राज्य मंत्री वी के सिंह ने यह इशारा करते हुए कहा कि इसको सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। सुन रहे हो न पाकिस्तान, होश में आ जाओ।