उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के निवासी नसीम का चयन भारतीय फुटबॉल टीम में हो गया है। बुधवार को दालमंडी के पास रहने वाली नरगिस की आंखों से आंसू उस वक्त छलक पड़े, जब उनको पता चला कि मैक्सिको में इसी महीने से शुरू हो रहे नेशन्स कप के लिए टीम इंडिया में उनके बेटे का चयन हो गया है। बता दें कि फेडरेशन से टकराव के चलते नसीम पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया था, ऐसे में उनकी वापसी उनके परिवार और समर्थकों के लिए खुशी की बात है।
साल 2013 में वाराणसी में संपन्न 67वीं सीनियर राष्ट्रीय संतोष ट्रॉफी चैंपियनशिप में उत्तर प्रदेश फुटबॉल टीम के कप्तान रहे नसीम अख्तर के यूपी की ओर से खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह कार्रवाई फेडरेशन से उनके टकराव के चलते हुई थी। उसके बाद से नसीम अख्तर की पहली बार नैशनल फुटबॉल टीम में वापसी हुई है।
इस मौके पर नसीम की अम्मी नरगिस ने कहा, ‘बेटे की भलाई लिए उसे खेलने से रोकती थी लेकिन उसके जुनून और उसके दोस्तों के उसके प्रति प्यार ने आज उसे इंटरनैशनल फुटबॉलर बना दिया। आज नसीम के अब्बू मरहूम फखरुद्दीन अली दुनिया में होते तो वह और भी खुश होते।’ मां का कहना है कि नसीम ने फुटबॉल से अपना नसीब मेहनत और लगन से लिखा, देश का नाम वह दुनिया में रौशन करें यही दुआ है।
मार खाने के बावजूद खेलने जाते थे नसीम
नसीम के चाचा कासिम भतीजे के टीम इंडिया में चयन की खबर मिलने पर काफी खुश हुए। एनबीटी से बातचीत में उन्होंने कहा नसीम के बड़े भाई वसीम फुटबॉल खेलते थे। तीन बेटे और दो बेटियों को संघर्ष से पाल रही नरगिस बेगम नहीं चाहती थीं कि वसीम का छोटा भाई भी खेलने जाए। इसलिए उन्होंने नसीम को बहुत डांटा-मारा लेकिन उसके जुनून के आगे सब पस्त हो गए।
बचपन से बगल के बेनिया मैदान में भागकर खेलने जाने वाला नसीम जब बड़ा हुआ तो दोस्त उसके मददगार बन गए। मोहल्ले के आफताब अहमद उर्फ अल्लू भाई नसीम को खेल मैदान में रोजाना सबेरे जगाकर ले जाने के लिए कभी कुत्ते तो कभी बिल्ली की आवाज निकाला करते थे। नसीम की मां के डर से दोस्तों के मुंह से जानवरों की आवाज पर जग जाने वाले नसीम के जिंदगी ने रफ्तार तब पकड़ी जब 16 साल की उम्र में उसका चयन टाटा फुटबॉल अकैडमी में दो साल के लिए हो गया।
सात बार देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं नसीम
नसीम को कोलकाता के मोहम्मद स्पोर्टिंग क्लब से आठ साल, ईस्ट बंगाल क्लब और महेंद्रा यूनाइटेड क्लब से चार-चार साल खेलने के साथ ही केरला क्लब से भी दो साल खेलने का मौका मिला। नसीम देश का प्रतिनिधित्व अब तक सात बार कर चुके हैं। इस बार टीम मैक्सिको जा रही टीम इंडिया में चयन को लेकर नसीम के साथ मां-भाई, चचाजान से लेकर गली-मुहल्ले के दोस्तों तक में खुशी है। वाराणसी की अंतरराष्ट्रीय ऐथलीट नीलू मिश्रा नसीम के चयन को लेकर कहती हैं कि खेल के जुनून को किस तरह विपरीत परिस्थितियों में जिंदा रखकर आगे बढ़ा जा सकता है, यह नसीम से सीखने लायक है।
अब्बू और भाई के जनाजे में नहीं आ सके थे नसीम
सात बार इंडिया टीम खेल चुके नसीम एक बार फिर टीम इंडिया में चयनित हुए, इसकी खुशी के साथ ही कुछ टीस भी छिपी है। मां बताती है कि नसीम ने पहली यात्रा जर्मनी की थी। अंडर-14 टीम में चयन होने के बाद सिलसिला शुरू हो गया। नसीम के नेतृत्व में बुशान में इंडियन टीम ने 30 वर्षों बाद क्वालिफाई किया था। जिससे देश गौरवान्वित हुआ था लेकिन उत्साह में कमी तब हो जाती है, जब केंद्र और प्रदेश की हमारी सरकारें मनोबल बनाने के बजाय उदासीनता दिखाती हैं।
कांग्रेस से जुड़ी मां नरगिस कहती हैं, ‘क्या नसीम छोटे मंच से भी सम्मान पाने का हकदार नहीं है?’ जवाब देते हुए खुद कहती हैं कि मेरा बेटा नसीम इस ओर ध्यान ना देते हुए अपने काम और लक्ष्य में जुटा रहता है। नसीम की खेल के प्रति दीवानगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नौ साल से लेकर 30 साल की उम्र तक लगातार 21 वर्ष तक कोई भी त्योहार घर में नहीं मनाया। यहां तक कि अपने पांच वर्षीय छोटे भाई और पिता के देहान्त के बाद भी अन्तिम संस्कार में भी नहीं आ सका। देश का नाम खेल जगत में ऊंचा करने के प्रति उसका जो समर्पण है, सरकार भले ही सम्मान न दे लेकिन वाराणसी का बच्चा-बच्चा सैल्यूट करता है।
साभार : NBT