“राजा नहीं, राजा का प्रताप बोलता है”

पदम पति शर्मा
प्रधान संपादक

कहते हैं न कि “राजा नहीं राजा का प्रताप बोलता है, इसका नमूना आप देखिए। कुर्सी पर जो शख्स बैठे हैं, वह गुजरात क्रिकेट संघ के सर्वेसर्वा रहे हैं बावजूद इसके कि उनका क्रिकेट अनुभव लगभग शून्य सा ही रहा है। लेकिन देखिए जनाब फिर भी बीसीसीआई के सचिव निर्वाचित हुए हैं।

सौरभ गांगुली किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। दुनिया जानती है दादा के बतौर भारतीय कप्तान रुतबे को। इस शख्स ने बिगड़ैल आस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वा तक को आधा घंटा इन्तजार कराने की हिम्मत ही नहीं दिखायी थी बल्कि भारतीय टीम पर से दब्बू का लगा ठप्पा हटा कर उसे दबंग बनाया था। लेकिन देश राजनीतिज्ञों के आगे सिर झुकाने पर विवश है।

दादा भी फिलहाल अपवाद नहीं। पता नहीं आगे वो भारतीय क्रिकेट के अपने सर्वोच्च प्रशासनिक पद को कैसे हैण्डिल करेंगे। यह शायद आने वाला समय ही बताएगा। मगर इस समय तो आप देखिए कि बीसीसीआई के निर्वाचित अध्यक्ष सौरभ दा खड़े हैं और उनका सचिव बैठा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो सचिव साहब हैं, वो इस देश के महाबली गृहमंत्री अमित शाह के चिरंजीव जय शाह साहब हैं।

यह कांग्रेस पार्टी वाला परिवारवाद कतई नहीं है। जय शाह जी ने यह पद अपनी प्रतिभा से पाया है। जय शाह जी ने पहले भी अपनी प्रतिभा से अपनी संपत्ति अचानक से 16 हजार गुना बढ़ा ली थी। मोदी जी, सुन रहे हैं न।

यही नहीं अन्य खड़े लोगों में सचिव महोदय के ठीक पीछे हैं बोर्ड के पूर्व बदनाम अध्यक्ष महोदय जिनके दामाद जी आईपीएल स्पाट फिक्सिग कांड में संलिप्तता के चलते बीसीसीआई से आजीवन प्रतिबंधित हो चुके हैं। पहचानिए इन जनाब श्रीनिवासन साहब को कि वो कितने ताव से खड़े हैं।

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