अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक
महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों को देखते हुते यह तो साफ हो गया है कि महाराष्ट्र में सरकार बीजेपी शिवसेना गढ़बन्धन की ही होगी मगर जो नतीजें आये हैं उसने ये साफ कर दिया है कि शिवसेना मोल-भला के लिए पूरी तरह से तैयार बैठी है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने यहाँ तक कह दिया कि शिवसेना 50-50 के फार्मूले पर ही आगे बढ़ेगी।
हालांकि महाराष्ट्र के भाजपायी मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि जो बात तय हुई थी पार्टी उन्हीं वादों के साथ आगे बढ़ेगी। लेकिन शिव सेना के हाव भाव देखें तो उद्धव की नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी टिकी है और ताजपोशी वह अपने बेटे आदित्य ठाकरे के सर देखना चाहते हैं।
हालांकि मौका जीत के जश्न का है मगर इस जीत की अगर समीक्षा की जाए तो बीजेपी के गिरता ग्राफ कहीं न कहीं खतरे का संकेत है। 2014 के मुकाबले 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी को 24 सीट की हानि हुई है। मगर इन सब के बीच भाजपा के लिए जो शुभ संकेत हैं वो ये कि पहली बार महाराष्ट्र में किसी मुख्यमंत्री ने न सिर्फ अपना 5 साल जो कार्यकाल पूरा किया है बल्कि दोबारा सरकार बनाने को तैयार है। और इस उपलब्धि के लिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस बधाई के पात्र हैं। लेकिन 24 सीटों की हानि में हारने वालों में बीजेपी के महाराष्ट्र के 6 मंत्री भी हैं। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में फड़नवीस ने इस बात को मानते हुए कहा भी कि नतीजे चौंकाने वाले हैं हमारे छह मंत्री हार गए हैं, इस पराजय की समीक्षा कल से शुरू की जाएगी। आज जीत का दिन है, इसलिए आज हम जश्न मनाएंगे।
गौर करने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे सरकार बनाते और बिगाड़ते हैं वहां उम्मीदों के अनुकूल नतीजे नहीं आना कहीं न कहीं बीजेपी के लिए चिंता का विषय है। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के नतीजे ये बता रहे है कि चाहे पाकिस्तान हो या धारा 370, राष्ट्रवाद हो या राममंदिर ये जनता के दिल और दिमाग को अब उस तरह से नहीं भेद रहे। चुनावी नतीजे साफ संकेत दे रहे हैं कि जनता अब रोजमर्रा से जुड़े महंगाई और आर्थिक मंदी, रोजगार जैसे मुद्दों को सरकार की चिंताओं में कहीं न कहीं तलाश रही है। ऐसा नहीं है कि नतीजों का ये ग्राफ सिर्फ इस बार ही डाउन हुआ है, हम कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और गुजरात की भी अगर बात करें तो वहां भी कमोबेस वैसे ही हालात रहे कहीं सरकार गिरी तो कहीं ज़द्दोज़हद से बनी। ऐसे में अब वो समय आ गया हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह जनता के बदलते मूड को देखते हुए ज़मीनी मुद्दों को धरातल पर उतारे और संतोष जनक काम करके दिखाएं।